शेयर ब्रोकर, सलाहकार या इन्वेस्टमेंट कंपनी की सलाह पर शेयर मार्केट में लगाया गया पैसा डूबता है तो इसके लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि शेयर मार्केट में निवेश करने के अपने रिस्क हैं और निवेश की गई रकम की वसूली के लिए शेयर ब्रोकर के खिलाफ FIR दर्ज कराना सही नहीं है.
हाई कोर्ट ने 'शेयर ब्रोकर एंड सिक्योरिटी कंपनी' के निदेशक जितेंद्र कुमार केशवानी की याचिका स्वीकार करते हुए उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को भी रद्द करने का आदेश दिया है.
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, केशवानी के खिलाफ इक्विटी शेयर ट्रांजैक्शन विवाद को लेकर साल 2018 में आगरा के एक थाने में IPC की धारा 420 और 409 के तहत FIR दर्ज की गई थी.
IPC में 420 फ्रॉड से जुड़ी धारा है, जबकि 409 संपत्ति पर प्रभुत्व और भरोसे के हनन से जुड़ी धारा है, जिसमें 10 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, 'कोई व्यक्ति ये दावा नहीं कर सकता है कि उसने किसी को कोई संपत्ति सौंपी है. वो ये भी नहीं कह सकता है कि ऐसा करने के लिए उसे लालच दिखाकर बेईमानी करते हुए धोखा दिया गया है.'
जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता ने जितेंद्र केशवानी की याचिका स्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा कि आवेदक एक शेयर ब्रोकर है और विरोधी पक्ष शेयरों में निवेश के परिणामों से पूरी तरह वाकिफ थे. सुनवाई के दौरान तर्क दिया गया कि FIR में IPC की धारा 420 और 409 का कोई मतलब नहीं है. दोनों पक्षकारों के बीच विवाद एक व्यापारिक लेनदेन से संबंधित था. इसलिए ये मामला SEBI एक्ट, 1992 के दायरे में आता है, जिसकी FIR नहीं होगी.
आवेदक एक शेयर ब्रोकर है और विरोधी पक्ष, शेयरों में निवेश के परिणामों से पूरी तरह परिचित था. उसकी आंखें खुली थी और मार्केट इन्वेस्टमेंट रिस्क के बारे में उसे अच्छी तरह पता था. इसलिए उसने आवेदक के माध्यम से निवेश किया था. शेयर मार्केट के अपने जोखिम है. इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि आवेदक को विपक्षी पक्षकार ने कोई संपत्ति सौंपी थी. इसलिए आवेदक के खिलाफ 420 और 409 के तहत कोई अपराध नहीं बनता.इलाहाबाद हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि एक ही आरोप के आधार पर किसी व्यक्ति को IPC की धारा 409 के साथ-साथ धारा 420 के तहत अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि दोनों अपराध विरोधाभासी है. हाई कोर्ट ने कहा कि SEBI एक्ट, एक विशेष अधिनियम है, जो IPC या CrPC जैसे सामान्य अधिनियम से ऊपर प्रभावी होगा.
हाई कोर्ट ने आवेदक जितेंद्र कुमार केशवानी के आवेदन को स्वीकार करते हुए आगरा के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित पूरी आपराधिक कार्यवाही और चार्जशीट को रद्द करने का आदेश दिया है.