जून से जे पी मॉर्गन इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड्स शामिल होने वाले हैं, बावजूद इसके भारतीय डेट मार्केट में विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली मई में भी जारी है. मार्केट एनालिस्ट मानते हैं कि इस बिकवाली की वजह मौजूदा लोकसभा चुनाव के नतीजों को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता, अमेरिकी बॉन्ड का बढ़ना और जियो पॉलिटिकल तनाव है.
पिछले साल सितंबर में ऐलान हुआ था कि भारतीय बॉन्ड्स को जे पी मॉर्गन अपने इंडेक्स में शामिल करेगा, उसके बाद घरेलू सरकारी सिक्योरिटीज में जबरदस्त खरीदारी देखने को मिली थी. जिसके बाद से अप्रैल में भारतीय गिल्ट्स (डेट म्यूचुअल फंड्स) में विदेशी निवेशक नेट सेलर बन गए. पिछले महीने अकेले 10,949 करोड़ रुपये की बिकवाली हुई, जो दिसंबर 2021 के बाद सबसे ज्यादा है. मई में अब तक FPIs ने 1,602 करोड़ रुपये की सिक्योरिटीज बेची हैं.
एक अनुमान के मुताबिक - इस जून में जब भारतीय बॉन्ड्स को जे पी मॉर्गन के GBI-इमर्जिंग मार्केट्स में शामिल किया जाएगा, साथ ही ब्लूमबर्ग के इमर्जिंग मार्केट्स लोकल करेंसी इंडेक्स में भी इसको शामिल किया जाएगा, इससे 40-50 बिलियन डॉलर का निवेश आने की उम्मीद है.
बॉन्ड मार्केट में बिकवाली ने इक्विटी सेगमेंट की तस्वीर को दिखाया है, जिससे जिससे बाजार में घबराहट बढ़ गई है और अस्थिरता का आकार अपने एक साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है.
इस साल निवेश की रफ्तार में कमी के बावजूद, तेजी का रुख बना हुआ है, साल-दर-साल निवेश बढ़कर 43,307 करोड़ रुपये रहा है. जनवरी में 19,837 करोड़ रुपये का निवेश आया, फरवी में 22,419 करोड़ रुपये का निवेश आया जो कि 7 साल में सबसे ऊंचा मंथली निवेश है.
जब पिछले साल सितंबर में ये ऐलान हुआ था कि भारतीय बॉन्ड्स को जे पी मॉर्गन इंडेक्स में शामिल किया जाएगा, तब से लेकर अबतक डेट मार्केट में 83,789 करोड़ रुपये का निवेश आ चुका है.
रॉकफोर्ट फिनकैप के फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर वेंकटकृष्णन श्रीनिवासन ने कहा कि जब जब चुनाव होते हैं, अक्सर ही अनिश्चितता का माहौल पैदा होता है. ऐसे में निवेशकों को इंतजार करना होता है, जबतक की राजनीतिक तस्वीर स्थिर नहीं हो जाती है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ने से पूंजी प्रवाह भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट्स से दूर हो सकता है.
ARETE कैपिटल के वाइस प्रेसिडेंट माताप्रसाद पांडे का कहना है कि एक बड़ा ही दिलचस्प ट्रेंड दिखने को मिला है, सरकारी सिक्योरिटीज में बिक्री लंबी अवधि के बजाय ज्यादातर छोटी अवधि के बॉन्ड में होती है.
उन्होंने कहा कि जब ब्याज दरें कम होना शुरू होंगी, तो बेशक उन्हें छोटी अवधि के बॉन्ड्स के मुकाबले लंबी अवधि के बॉन्ड्स से ज्यादा फायदा होगा. इसलिए लंबी अवधि के बॉन्ड्स में एलोकेशन बढ़ाना ज्यादा सही लगता है.
श्रीनिवासन ने कहा कि शॉर्ट-टर्म बिकवाली के बावजूद, लंबी अवधि ट्रेंड्स घरेलू और वैश्विक स्तर पर व्यापक आर्थिक और राजनीतिक विकास पर निर्भर होंगे. एक बार जब चुनावी अस्थिरता थमेगी और अगर आर्थिक फंडामेंटल्स मजबूत बने रहे, FPIs जून तक वापस लौटकर आएंगे और मौजूदा बिकवाली का ट्रेंड उलट जाएगा. ये ट्रेंड कई बातों पर निर्भर करेगा,जिसमें चुनावी नतीजे, वैश्विक आर्थिक हालात और रिजर्व बैंक की पॉलिसी शामिल है.