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डॉनल्ड ट्रंप की जीत से टेस्ला के शेयरों को लेकर हैं बुलिश, तो जानें सीधे अमेरिका में कैसे खरीद सकते हैं शेयर

LRS यानी लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के जरिए कोई व्यक्ति अमेरिकी सिक्योरिटीज में निवेश कर सकता है. इससे सालभर में एक व्यक्ति अधिकतम 250,000 डॉलर का लेनदेन कर सकता है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी09:34 PM IST, 06 Nov 2024NDTV Profit हिंदी
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डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में जीत हासिल की. अमेरिकी बाजारों में तेजी का असर टेस्ला के शेयरों पर भी पड़ा है. पिछले 6 महीने में इसके शेयरों में 36% से अधिक की तेजी आई है. निवेशकों ने एक बार फिर इक्विटी में निवेश को लेकर दिलचस्पी दिखाई है. खासकर अमेरिका में, जहां टेक्नोलॉजी क्षेत्र में सफलताओं कई शानदार कहानियां लिखी जा रही हैं.

अमेरिकी बाजारों में आई इस तेजी का फायदा भारतीय निवेशक भी उठा सकते हैं. अमेरिकी एक्सचेंजों से शेयर खरीदने के लिए जरूरी प्रक्रिया का पालन करना होगा. हम इससे जुड़ी हर जानकारी आपको बताएंगे कि कैसे आप अमेरिकी बाजार में निवेश कर सकते हैं.

लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम रूट

अगर कोई भारतीय नागरिक विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड शेयरों में निवेश करने का इच्छुक है तो वो LRS यानी लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के जरिए निवेश कर सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से साल 2004 में इसे विदेशी मुद्रा नीति के तहत शुरू किया गया था. जिससे देश के बाहर पैसे भेजने की प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाया जा सके.

LRS के जरिए कोई व्यक्ति सालभर में प्रति व्यक्ति केवल 250,000 डॉलर यानी करीब 2.7 करोड़ रुपये का ही लेनदेन कर सकता है. LRS के जरिए निवेश की जाने वाली अधिकतम राशि भी यही है. इसका भुगतान आप इंस्टॉलमेंट में भी कर सकते हैं.

इस स्कीम के साथ जुड़े कई दिशा-निर्देशों का पालन करना भी जरूरी है. जिसे विदेश में पैसे भेजते समय करना जरूरी है. उदाहरण के लिए आपका बैंक आपसे ये प्रूफ मांग सकता है कि आप जो राशि ट्रांसफर करना चाहते हैं वो कहां से आई और आपने उस पर टैक्स चुकाया है या नहीं.

डायरेक्ट इंवेस्टमेंट

अमेरिकी शेयरों में डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट का मतलब है अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड शेयरों को खरीदना. टेस्ला में सीधे निवेश करने के लिए भारतीय निवेशकों के पास दो विकल्प हैं

पहला किसी घरेलू ब्रोकर के साथ विदेशी ट्रेडिंग खाता खोलना है जो अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजारों तक पहुंचने में मदद कर सके. HDFC सिक्योरिटीज, ICICI सिक्योरिटीज और कोटक सिक्योरिटीज जैसे घरेलू ब्रोकर ऐसी सुविधाएं मुहैया कराते हैं.

विदेशी ट्रेडिंग खाता खोलने के लिए KYC से गुजरना पड़ता है. और साथ ही करेंसी एक्सचेंज फीस भी देनी पड़ती है.

डायरेक्ट इन्वेटमेंट का दूसरा तरीका है कि, किसी विदेशी ब्रोकर के पास सीधे खाता खोलना है, जिसकी भारत में उपस्थिति हो, जैसे चार्ल्स श्वाब, इंटरएक्टिव ब्रोकर्स वगैरह.

इनडायरेक्ट इंवेस्टमेंट

जो भारतीय निवासी अमेरिकी शेयर बाजार में सीधे निवेश करने के इच्छुक नहीं हैं, वो म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश करके अप्रत्यक्ष रूप से निवेश कर सकते हैं.

टैक्स

विदेशी स्टॉक में निवेश के टैक्स के 2 पहलू हैं.

पहले प्रभाव में निवेशक को निवेश करते समय ही 20% की दर से TCS भरना पड़ता है. ये तब होता है जब निवेशक एक साल के भीतर ही 7 लाख रुपये से अधिक धनराशि विदेश में भेजता है. इसलिए निवेश करते समय इसे ध्यान में रखना चाहिए.

दूसरे पहलू में विदेशी स्टॉक एक्सचेंज पर खरीदे गए शेयरों पर होने वाले लाभ पर भी टैक्स लगता है. शेयरों की बिक्री से होने वाले लाभ को कैपिटल गेन्स में बांटा जाता है. इस मामले में शेयर अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड हैं, जो भारत में मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज नहीं हैं, इसलिए छोटी अवधि और लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ में वर्गीकरण के लिए होल्डिंग अवधि 24 महीने है. 24 महीने से पहले बेचे गए शेयरों पर अल्पकालिक पूंजीगत लाभ को व्यक्ति की आय में जोड़ा जाएगा. लंबी अवधि के कैपिटल गेन्स पर इंडेक्स प्रॉफिट के साथ 20% की दर टैक्स लगाया जाएगा.

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