भागदौड़ भरी जिंदगी और तमाम जरूरतें पूरी करने की जद्दोजहद के बीच वर्क-लाइफ बैलेंस भी जरूरी है. पिछले कुछ समय से वर्किंग आवर्स यानी 'काम के घंटों' को लेकर जारी बहस के बीच भारतीय उद्योग जगत भी वर्क-लाइफ बैलेंस के महत्व पर जोर दे रहा है.
पिछले दिनों इन्फोसिस के को-फाउंडर NR नारायण मूर्ति ने जहां हफ्ते में 70 घंटे काम की बात छेड़ नई बहस को जन्म दिया था, वहीं इस बहस के बीच विप्रो (Wipro Ltd.) के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन रिशद रिशद प्रेमजी 'वर्क-लाइफ बैलेंस' अवधारणा के मुखर समर्थक के तौर पर उभरे हैं. रिशद का मानना है कि इससे वर्कफोर्स को मदद मिलती है.
बेंगलुरु टेक समिट 2024 में रिशद प्रेमजी ने एक बार फिर दोहराया कि वो वर्क-लाइफ बैलेंस की अवधारणा में विश्वास करते हैं और इसे 'अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण' मानते हैं.
कोविड-19 महामारी की शुरुआत से पहले ही प्रेमजी का मानना था कि वर्क-लाइफ बैलेंस एक ऐसी चीज है, जिसे लोगों को खुद परिभाषित करना होता है. इकोनॉमिक टाइम्स ने उनके हवाले से कहा, 'संगठन कभी भी आपके लिए इस पर काम नहीं करेंगे. इसलिए आपको इसका अर्थ खुद ही परिभाषित करना होगा और सीमाएं खींचनी होंगी.'
उन्होंने कहा, 'इससे मतलब है कि वर्क-लाइफ बैलेंस केवल एक अवधारणा नहीं है, आप काम के दौरान अपने समय के साथ क्या कर सकते हैं, इसकी स्वतंत्रता भी है.'
वर्क-लाइफ बैलेंस पर रिशद प्रेमजी के विचार NR नारायण मूर्ति के विचारों से मेल नहीं खाते, जिन्होंने पिछले दिनों '70 घंटे के वर्क-वीक' पर अपनी बात रखी थी.
बेंगलुरु टेक समिट में बोलने वाले प्रेमजी ने न केवल वर्क-जीवन बैलेंस का समर्थन किया, बल्कि कथित तौर पर ये भी कहा कि एक हाइब्रिड वर्क मॉडल से लोगों को अपने काम को बेहतर बनाने में मदद मिलती है.
विप्रो के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन ने कहा कि उनकी कंपनी में मैनेजर्स को कर्मचारियों की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. उन्होंने कहा कि उन्हें वर्क-लाइफ बैलेंस पर कर्मचारियों के साथ खुली बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
वहीं दूसरी ओर विरोध और बहस के बीच नारायण मूर्ति अपनी बात पर कायम हैं. CNBC-TV18 ग्लोबल लीडरशिप समिट में मूर्ति ने कहा कि उन्होंने अपना विचार नहीं बदला है. वे मानते हैं कि भारतीयों को हर हफ्ते 70 घंटे काम करना चाहिए. उन्होंने कहा, 'मुझे खेद है, मैंने अपना विचार नहीं बदला है. मैं इसे अपने साथ कब्र में ले जाऊंगा.'
मूर्ति ने 1986 में देश में हुए छह-दिवसीय सप्ताह (Six-Days Work Week) से पांच-दिवसीय सप्ताह (Five-Days Work Week) बदलाव पर भी निराशा व्यक्त की.
रिशद प्रेमजी की टिप्पणी विशेष रूप से तब आई है, जब IT कंपनियां अपने यहां वर्क फ्राॅम होम पॉलिसी खत्म किए जा रही है और कर्मचारियों को ऑफिस लौटने का निर्देश दिया है.