ADVERTISEMENT

सिर्फ EY नहीं; कई दिग्गज कंपनियों में सामने आई खराब माहौल की शिकायतें; ज्यादा काम की पैरवी करने वाले कब करेंगे अच्छे वर्क कल्चर की वकालत?

जे पी मॉर्गन चेज जैसी कंपनी हफ्ते में 80 घंटे वर्किंग पर अपनी पीठ थपथपा रही है. जबकि पहले कर्मचारियों को 100 घंटे तक काम करना पड़ रहा था.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी11:30 AM IST, 21 Sep 2024NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
Follow us on Google NewsNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदी

लोग एक बेहतर जीवन की उम्मीद में नौकरियों में आते हैं. उन्हें आस होती है कि कड़ी मेहनत के ऐवज में उनके परिवार का 'कल' सुरक्षित होगा. लेकिन क्या हो कि अगर काम करने की जगह का वर्क कल्चर उनका 'आज' ही खराब करने पर उतारू हो जाए! जरा देश-दुनिया की इन घटनाओं पर गौर फरमाएं:

  • EY इंडिया में काम करने वाली अन्ना सेबेस्टियन की टॉक्सिक वर्क कल्चर के प्रेशर में जान चली गई. उन्होंने 4 महीने पहले ही कंपनी ज्वाइन की थी. इस घटना के बाद पूरे भारत में टॉक्सिक वर्क कल्चर पर चर्चा तेज हो गई है.

  • बैंक ऑफ अमेरिका में काम करने वाले 35 साल के लियो ल्यूकेनास भी वर्क प्रेशर का शिकार हो गए और हार्ट अटैक के चलते उनकी मौत हो गई. उन्हें हफ्ते में करीब 100 घंटे तक काम करना पड़ता था. इसके बाद अमेरिका में बड़ा हंगामा हुआ.

  • भारत में भी बैंक कर्मचारियों पर डेडलाइन और ओवरवर्क का जबरदस्त प्रेशर होता है. 2023 में HDFC मैनेजर का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे ऑनलाइन मीटिंग में गाली-गलौज करते नजर आ रहे हैं. भारी आलोचना के बीच बैंक ने मैनेजर को बर्खास्त कर दिया था.

  • इसी तरह बंधन बैंक और कैनरा बैंक के अधिकारियों के वीडियो भी सामने आए थे, जहां वे कथित 'नॉन परफॉर्मेंस' के लिए अपने जूनियर्स को बुरे तरीके से डांटते हुए नजर आ रहे हैं.

  • हैदराबाद में HSBC में काम करने वाली निकिता कुमारी ने टॉक्सिक वर्क कल्चर के चलते पैनिक अटैक्स और मेंटल हेल्थ इश्यूज का सामना किया, जिसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी. अपनी आपबीती उन्होंने लिंक्डइन पर शेयर की थी.

ये वे कुछ घटनाएं हैं, जिनमें टॉक्सिक वर्क कल्चर पर बड़ी चर्चा शुरू हुई. हालांकि देश के बाहर तो कुछ एक्शन दिखा भी, लेकिन भारत में काम की जगह के माहौल को सुधारने के लिए अभी बड़े बदलाव होना बाकी हैं.

बाकी ऐसी घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है, जिनमें बड़ी-बड़ी कंपनियों में खराब एनवायरनमेंट के खिलाफ आवाज तो उठाई गई, लेकिन वो सोशल मीडिया की एक-दो पोस्ट में इतिहास बन कर रह गईं.

जापान में एक शब्द चलता है 'कारोशी'. इसका मतलब है 'ओवरवर्क डेथ्स'. मतलब काम की जगह पर टॉक्सिक माहौल में फिजिकल और मेंटल स्ट्रेस के चलते होने वाली मौतें. जापान सरकार ने इसे सामाजिक-आर्थिक समस्या मानकर मेंटल हेल्थ को एड्रेस करने वाली नीतियां बनाईं. शायद भारत में भी आज ऐसे ही कुछ सुधारों की जरूरत है.

अन्ना सेबेस्टियन की मौत से हिला देश

EY में काम करने वाली अन्ना सेबेस्टियन की 20 जुलाई 2024 को पुणे में मौत हो गई थी. उनकी मां अनीता ऑग्सटीन ने कंपनी के चेयरमैन राजीव मेमानी को खत लिखा, तब इस पर पूरे देश की नजर गई.

दरअसल खत में अनीता ने बताया कि जून, 2024 तक अन्ना को नींद और खाने से जुड़ी समस्याएं होने लगी थीं. जब अनीता और उनके पति पुणे गए तब वे अन्ना को सीने में दर्द की शिकायत पर डॉक्टर के पास भी लेकर गए.

कार्डियोलॉजिस्ट ने अन्ना में कोई हार्ट रिलेटेड समस्या नहीं पाई और कहा कि उनकी मुख्य दिक्कत नींद की कमी है. कार्डियोलॉजिस्ट ने ये भी कहा कि अनियमित खाने की आदत के चलते एसिडिटी और एसिड रिफ्लक्स से भी अन्ना को दिक्कत आ रही है. 20 जुलाई को दूसरी मंजिल पर चढ़ते वक्त बीच में अन्ना चक्कर खाकर गिर गईं और उनकी मृत्यु हो गई.

अनीता सेबेस्टियन के मुताबिक वर्क स्ट्रेस समेत अन्य वजहों से अन्ना की मौत हुई. अन्ना को उनकी मैनेजर की तरफ से अतिरिक्त काम दिया जाता था, जिसके चलते अन्ना स्ट्रेस में थीं.

भारत में 70% कर्मचारी अपने काम से अंसतुष्ट

टॉक्सिक वर्किंग एनवायरनमेंट की बड़ी समस्या को कुछ सर्वे ने बखूबी बताया.

हैप्पीएस्ट प्लेसेस टू वर्क ने 'हैप्पीनेस एट वर्क' नाम की एक चर्चित रिपोर्ट जारी की है. इससे पता चला है कि 70% भारतीय कर्मचारी अपनी नौकरी अंसतुष्ट हैं, जबकि 54% तो नौकरी छोड़ना भी चाहते हैं.

सबसे ज्यादा बुरा हाल रियल एस्टेट, मीडिया-एंटरटेनमेंट, रिटेल जैसे सेक्टर्स की है, जहां 75% से 80% कर्मचारी नाखुश हैं. फाइनेंशियल सर्विसेज, बैंकिंग, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स में भी 70% कर्मचारी खुश नहीं हैं.

इसी तरह YourDost ने 5,000 कर्मचारियों का जुलाई में एक सर्वे किया. इससे पता चला कि 21 से 30 साल की उम्र के बीच के कर्मचारी सबसे ज्यादा तनाव में हैं. मतलब इंडस्ट्री में नए-नए आने वाले युवाओं को सबसे ज्यादा तनाव है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने 2023 में एक एंटीसिपेटरी बेल पर सुनवाई करते हुए टॉक्सिक वर्क कल्चर और इससे जुड़ी मौतों को सामाजिक समस्या बताया था. कोर्ट ने कहा था कि इसके निदान के लिए सरकार, लेबर यूनियन्स, कॉरपोरेट्स और स्वास्थ्य अधिकारियों को मिलकर सही नीतियां बनाने की जरूरत है.

लेकिन क्या बड़ी कंपनियां हालात को बदलने के लिए तैयार हैं?

2023 में इंफोसिस के नारायण मूर्ति ने युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे तक काम करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में लंबे घंटों तक काम करने की परंपरा रही है और युवाओं को देश के हित में ज्यादा काम करना चाहिए.

लेकिन क्या लंबे घंटों की वकालत के दौरान वर्क कल्चर का ख्याल रखा जा रहा है. पहले ही कर्मचारियों पर लंबे घंटों का दबाव है.

जे पी मॉर्गन चेज जैसी कंपनी हफ्ते में 80 घंटे वर्किंग पर अपनी पीठ थपथपा रही है. जबकि पहले कर्मचारियों को 100 घंटे तक काम करना पड़ रहा था. 80 घंटे वाला कदम भी बैंक ऑफ अमेरिका के कर्मचारी लियो ल्यूकेनास की मौत के बाद उठाया गया. हाल में फाइनेंशियल फर्म ने वर्क डिस्ट्रीब्यूशन बैलेंस देखने के लिए एक बैंकर की नियुक्ति की है.

लेकिन इस बीच RPG ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका जैसे लोग भी हैं, जो भारत के वर्किंग कल्चर में बड़े बदलाव की वकालत कर रहे हैं.

'हैप्पीनेस एट वर्क' के मुताबिक नौकरी से असंतुष्ट होने की मुख्य वजहों में बॉस-सहकर्मियों के साथ विवाद, खुलकर अपनी बात ना कर पाना, व्यक्तिगत रुचियों के लिए समय ना मिल पाना, नौकरी की अनिश्चितता और काम करने में आजादी ना होना शामिल हैं.

हर्ष गोयनका ने ही इस रिपोर्ट की भूमिका लिखी है. उन्होंने ट्विटर पर टॉक्सिक वर्क कल्चर को खत्म करने के लिए अहम सुझाव भी दिए हैं.

  • कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता दें: मेंटल हेल्थ प्रोग्राम्स, मैनेज किए जा सकने वाले वर्कलोड और वेलनेस इनीशिएटिव्स को लागू किया जाए.

  • नए लोगों को मेंटरशिप सपोर्ट दिया जाना जरूरी, ताकि वे अपनी नई भूमिका और माहौल में एडजस्ट कर सकें.

  • थकान ना होने दें: ज्यादा काम करने को ग्लोरिफाई करना बंद करें, एफिशिएंसी को पुरस्कृत करें, ना कि लंबे घंटों को.

  • ओपन कम्युनिकेशन: ऐसा माहौल बने, जिसमें कर्मचारियों की चिंताओं का समाधान हो सके. उन्हें बदले की कार्रवाई का डर ना हो.

  • जवाबदेह नेतृत्व: टॉक्सिक वर्क एनवायरनमेंट के लिए लीडर्स को जवाबदेही तय की जाए.

  • काम और निजी जीवन में बैलेंस को प्रोत्साहन: वर्क और पर्सनल टाइम के बीच बाउंड्रीज स्पष्ट करें.

उम्मीद है कि अन्ना सेबेस्टियन की मौत जाया नहीं जाएगी और देशभर में वर्क कल्चर पर छिड़ी बहस से कुछ ठोस बदलाव आएंगे.

NDTV Profit हिंदी
फॉलो करें
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT