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चैरिटी के नाम पर विकास विरोधी एजेंडा चला रहे हैं बड़े NGOs! टैक्स कार्रवाई से विदेशी फंडिंग पर हुए बड़े खुलासे: रिपोर्ट

द इंडियन एक्सप्रेस ने दस्वावेजों की समीक्षा की है, जिससे ये पता चलता है कि पांच में से चार NGO के लिए पांच साल के दौरान जो फंडिंग आई थी, उसमें से 75% फंडिंग विदेशी स्रोतों से थी.
NDTV Profit हिंदीमोहम्मद हामिद
NDTV Profit हिंदी11:31 AM IST, 03 Oct 2024NDTV Profit हिंदी
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देश में काम करने वाले कई बड़े गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के ऑपरेशंस पर कार्रवाई के दौरान इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के सामने उनके आपसी लिंक्स को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. IT डिपार्टमेंट ने अपनी छानबीन के बाद कई गंभीर आरोप लगाए हैं. इसमें वित्तीय गड़बड़ियों के अलावा NGOs पर देश में विकास विरोधी एजेंडे चलाने का भी आरोप है. चैरिटी के नाम पर NGOs किसी और ही काम में लिप्त हैं. उन्हें जो भी फंड मिलता है उसका एक बड़ा हिस्सा विदेशी होता है, जिसका इस्तेमाल वो देश के कॉरपोरेट घरानों के प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाने के लिए करते हैं. द इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट दी है.

चैरिटी का नाम, कुछ और है काम! 

ऑक्सफैम, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, एनवायरोनिक्स ट्रस्ट, लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट और केयर इंडिया सॉल्यूशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के कार्यालयों में 7 सितंबर, 2022 को तलाशी के बाद शुरू की गई जांच में आरोप लगाया गया है कि ये NGOs इसमें शामिल रहे हैं. इनमें ऐसी गतिविधियां भी हैं, जो देश में आर्थिक और विकास के कामों को रोकती हैं.

द इंडियन एक्सप्रेस ने दस्तावेजों की समीक्षा की है, जिससे ये पता चलता है कि पांच में से चार NGO के लिए पांच साल के दौरान जो फंडिंग आई थी, उसमें से 75% फंडिंग विदेशी स्रोतों से थी. ये बात भी सामने आई है कि विदेशी फंड्स पर उनकी निर्भरता इन संगठनों के कामकाज पर भी असर डालती है, जिन कामों के लिए ये संगठन बने थे, वो ठीक उसके उलट उद्देश्य पर काम कर रहे हैं. इनकम टैक्स विभाग के दावों से पता चलता है कि ये NGOs न केवल वित्तीय रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, बल्कि उनके प्रमुख भी आपस में जुड़े हुए हैं और अपने-अपने मिशन भी एक दूसरे से साझा करते हैं.

साल 2015 से 2021 के दौरान केयर इंडिया ने अपनी फंडिंग का 92% हिस्सा विदेश से हासिल किया, जबकि एनवायरोनिक्स ट्रस्ट ने 95%, LIFE ने 86% और ऑक्सफैम ने 78% पैसा विदेशों से हासिल किया था. एनवायरोनिक्स को लेकर एक दावा ये भी है कि इन 6 वर्षों के दौरान जो पैसा आया, उसमें तीन साल तक 100% फंडिंग विदेशी थी.

100 पन्नों से ज्यादा के इनकम टैक्स चिट्ठियों (IT Letters) के मुताबिक इन NGOs के खिलाफ फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (FCRA) के उल्लंघन के गंभीर आरोप हैं. इनमें उनके सालाना रिटर्न में गड़बड़ियां और विदेशी फंड का गलत इस्तेमाल भी शामिल है. इन निष्कर्षों के आधार पर इन संगठनों के FCRA लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे, जिसे लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में कानूनी लड़ाई चल रही है.

IT ने लगाए हैं बेहद गंभीर आरोप

IT लेटर्स में ये आरोप लगाया गया है कि इन NGOs की ओर से संयुक्त रूप से इस बात का प्रयास किया गया कि प्रदर्शनकारियों को सपोर्ट किया जाए और जो तमाम प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं, उन्हें रोका जाए. NGOs ने मनचाहे परिणाों को हासिल करने के लिए इस मामले में एक दूसरे का सपोर्ट किया, जिससे प्रदर्शन हुए और कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी. IT लेटर में NGOs और उनके आरोपों को बताया गया है.

Oxfam: IT लेटर के पेज नंबर 141 में कहा गया है कि ऑक्सफैम इंडिया ने भारत में कंपनियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कैम्पेन को बढ़ावा देने के लिए काम किया, खासतौर पर अदाणी ग्रुप निशाने पर रहा. लेटर में कहा गया कि ऑक्सफैम इंडिया ने ऑक्सफैम ऑस्ट्रेलिया के उस मिशन को सपोर्ट किया जिसमें अदाणी ग्रुप को माइनिंग से रोकना शामिल था. साथ ही, अदाणी पोर्ट्स की डीलिस्टिंग में ऑक्सफैम इंडिया का सीधा हित जुड़ा हुआ था, और ये बात बिल्कुल साफ-साफ दिखती थी, क्योंकि इसे लेकर ठोस सबूत मौजूद हैं. ये ऑक्सफैम की ओर से चैरिटी के नाम पर किया जाने वाला बेहद डरावना काम है, जिसमें वो ऑस्ट्रेलिया में काम करने वाली भारतीय कंपनियों को निशाना बनाती है और उनके खिलाफ विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर साजिशें रचती है.

Centre For Policy Research: IT लेटर के पेज नंबर 115 में दावा किया गया है कि इसके फंड कलेक्शन और विदेशी डोनेशन के मैनेजमेंट में तमाम खामियां हैं. CPR छत्तीसगढ़ में कोल माइनिंग के खिलाफ हसदेव आंदोलन में शामिल रहा है. ये जनअभिव्यक्ति सामाजिक विकास संस्था (JASVS) के जरिए आंदोलनों में भागीदार रहा है. अब देखने वाली बात ये है कि JASVS को साल 2019 से 2023 के दौरान जो भी फंड मिला, उसका 83% हिस्सा CPR से गया. IT डिपार्टमेंट के मुताबिक CPR को उसके नमाति एनवायरमेंटल जस्टिस प्रोग्राम में मुकदमेबाजी के लिए साल 2016 से 10.19 करोड़ रुपये का फंड आया, जोकि पूरा विदेशी था. अमेरिकी बेस्ड नामित इंक के लिए CSR भारत में उसका इकलौता सहयोगी था. IT विभाग का दावा है कि थिंक टैंक का ध्यान रिसर्च पर कम और मुकदमेबाजी पर ज्यादा लगता है. जिससे उसके घोषित उद्देश्य कमजोर हो रहे हैं.

Environics: IT लेटर के पेज नंबर 104 में इस ट्रस्ट के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं वो गजब दिलचस्प हैं. साल 2020 में इसने ओडिशा में JSW उत्कल स्टील प्लांट का विरोध करने के लिए स्थानीय लोगों का इस्तेमाल किया. 711 स्थानीय लोगों में से हर एक को 1,250 रुपये दिए गए, ताकि वो विरोध में शामिल हो सकें. दावा ये भी किया गया है कि एनवॉयरोनिक्स और लंदन बेस्ड सर्वाइवल इंटरनेशनल मिलकर झारखंड में अदाणी के गोड्डा प्लांट के खिलाफ साजिश कर रहे हैं, इसके लिए वो यहां के लोगों को 'एंटी अदाणी मूवमेंट' के लिए जोड़ रहे हैं. चिट्ठी में कहा गया है कि एनवॉयरोनिक्स डेपलमेंट प्रोजेक्ट्स को रोकने के लिए अपने फंड्स का गलत इस्तेमाल कर रहा है.

LIFE: ये भी कहा जा रहा है कि लाइफ विदेशी गैर सरकारी संगठनों, विशेष रूप से अर्थ जस्टिस के साथ करीबी से जुड़ा हुआ है, और उस पर कानूनी रास्ते से भारत में कोयला प्रोजेक्ट्स को रोकने का आरोप है.

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का कहना है कि ये NGO विकास विरोधी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए आपसी फंडिंग और समर्थन के साथ मिलकर काम कर रहे हैं.

इन आरोपों पर LIFE के संस्थापक ऋत्विक दत्ता ने गैर सरकारी संगठनों के बीच आपसी संबंधों के दावों का खंडन किया है, और जोर देकर कहा है कि संगठन स्वतंत्र रूप से काम करता है और ऑक्सफैम, CPR या केयर इंडिया के साथ सहयोग नहीं करता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि एनवायरोनिक्स ट्रस्ट के अधिकारियों ने कोई टिप्पणी नहीं दी, जबकि ऑक्सफैम, CPR और CISSD से प्रतिक्रिया के अनुरोधों का भी जवाब नहीं मिला है

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