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Lady Justice New Statue: आंखों से उतरी पट्टी, तलवार की जगह अब संविधान; क्या हैं न्याय की देवी की नई मूर्ति के मायने?

CJI चंद्रचूड़ ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में न्याय की देवी की नई मूर्ति का अनावरण किया.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी02:36 PM IST, 17 Oct 2024NDTV Profit हिंदी
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'अब भारत में कानून अंधा नहीं होगा'. जी हां, सही सुना.

दरअसल सुप्रीम कोर्ट परिसर में गुरुवार सुबह CJI ने 'लेडी जस्टिस स्टेच्यू (न्याय की देवी की मूर्ति)' की नई प्रतिमा का अनावरण किया. इस प्रतिमा की आंखों पर पट्टी नहीं है. साथ ही तलवार की जगह पर संविधान की प्रति थमाई गई है. CJI DY चंद्रचूड़ ने ये बदलाव करवाए हैं.

दरअसल लंबे समय से ये विमर्श चल रहा था कि न्याय की देवी की प्रतीकात्मक चीजें आज के वक्त के हिसाब से फिट नहीं बैठतीं.

क्या दर्शाते हैं नए प्रतीक?

जैसा ऊपर बताया, वक्त बदलने के साथ आम धारणा में प्रतीकों के मायने मूल अर्थ से कुछ उलट ही हो गए. प्रतिमा की आंखों पर पट्टी का प्रतीकात्मक अर्थ था कि कानून सबको बराबर मानता है. अमीर-गरीब, जाति-धर्म, नस्ल या प्रभाव के भेद से परे, कानून सबके लिए एक है. कानून की नजर में किसी के लिए भेद नहीं है.

अब पट्टी हटाने को कानून के राज में पारदर्शिता से जोड़ा गया है. मतलब पट्टी का हटना और खुली आंखें न्याय में पारदर्शिता दिखाती है.

दूसरा बड़ा बदलाव मूर्ति में तलवार की जगह संविधान की प्रति थमाना है. दोधारी तलवार कानून की ताकत का प्रतीक थी, जो न्याय दिलाने में मददगार है. अब संविधान की प्रति ताकत के ऊपर कानून के राज (Rule Of Law) की प्राथमिकता को दर्शाती है.

जबकि दूसरे हाथ में तराजू को बरकरार रखा गया है. तराजू यहां कोर्ट के सामने पेश किए गए सबूतों की निष्पक्ष जांच का प्रतिनिधित्व करता है. मतलब कानून, कोर्ट में सच और झूठ को तौलने के क्रम में हर पक्ष को जांचा जाता है.

कहां से आई न्याय की देवी की मूर्ति की धारणा?

दरअसल आज की लेडी ऑफ जस्टिस की प्रेरणा ग्रीक और इजिप्शियन देवियां रही हैं. ग्रीक देवी थेमिस कानून, व्यवस्था और न्याय का प्रतीक रही हैं.

जबकि इजिप्शियन देवी Ma'at एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में 'सत्य के पंख' के साथ नजर आती हैं. हालांकि आज की न्याय की देवी रोमन गॉडेस ऑफ जस्टिस, 'जस्टिसिया' ज्यादा नजदीक नजर आती हैं. आज के लीगल सिस्टम की शुरुआत अंग्रेजों के दौर में हुई थी, उसी वक्त' न्याय की देवी' की मूर्ति भी भारत पहुंची.

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