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मौसम के बिगड़ते मिजाज को ठीक करना क्यों आज सबसे बड़ी चुनौती है

मौसम वैज्ञानिक पिछले कुछ समय से जो आशंका जता रहे थे, वो अब सही साबित होती दिख रही है. जहां तक भारत की बात है, इस साल बिगड़े मौसम ने यहां भी बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी02:11 PM IST, 18 Dec 2023NDTV Profit हिंदी
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आज दुनिया के सामने कुछेक सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming). धरती के लगातार बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन को लेकर दुबई में सम्मेलन हुआ. दुनिया चिंता जता रही है. मौसम वैज्ञानिक पिछले कुछ समय से जो आशंका जता रहे थे, वो अब सही साबित होती दिख रही है. जहां तक भारत की बात है, इस साल बिगड़े मौसम ने यहां भी बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है. इन बातों को और विस्तार से देखे जाने की जरूरत है.

COP28 में चेतावनी

पहले बात जलवायु परिवर्तन को लेकर दुबई में हुए शिखर सम्मेलन की. सम्मेलन की शुरुआत में ही ये साफ हो चुका था कि साल 2023 रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म रहने वाला है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने इसकी पुष्टि की. WMO का कहना है कि इस साल अक्टूबर के अंत तक पृथ्वी पूर्व-औद्योगिक स्तर (1850-1900) की तुलना में पहले से ही 1.4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रही. इसकी वजह भी स्पष्ट है. कहा गया है कि ऐसा ग्लोबल वार्मिंग और मौजूदा अल नीनो (El Niño) के मिले-जुले प्रभाव के कारण हुआ है.

दुबई में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ( UNFCCC) के 28वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP28) में ये तथ्य बताए गए हैं. हालांकि पहले की रिपोर्ट में भी इस बात की संभावना जाहिर की जा चुकी थी. सम्मेलन 30 नवंबर से लेकर 12 दिसंबर तक हुआ था. मौसम और जलवायु परिवर्तन को लेकर अभी कई और रिपोर्ट देखने को मिलेंगी.

देश में बिगड़े मौसम से तबाही

सम्मेलन शुरू होने से ठीक पहले, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने एक रिपोर्ट जारी की. ये रिपोर्ट भारत में इस साल के शुरुआती नौ महीनों में खराब मौसम के बुरे असर को दिखाती है. इसमें बताया गया है कि इन नौ महीनों में भारत में करीब-करीब हर दिन मौसम की मार से लगभग 3,000 लोगों की जान चली गई.

'डाउन टू अर्थ' की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में जनवरी से सितंबर, 2023 तक 86% दिनों में मौसम आफत पैदा करने वाला था. अलग-अलग तरह की प्राकृतिक आपदाओं में 2,923 लोग जान गंवा बैठे. लगभग 20 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई. 80,000 घर नष्ट हो गए. 92,000 से अधिक जानवर मारे गए. संस्थान ने बताया कि वास्तविक तस्वीर और भयावह हो सकती है, क्योंकि हर जगह का आंकड़ा मिल नहीं सका. साफ तौर पर जैसा इस साल देश ने देखा, वह एकदम 'असामान्य' है.

कैसी-कैसी आपदाएं

मौसम से जुड़ी आपदाएं अलग-अलग तरह की हैं. उन नौ महीनों में कभी भयंकर गर्मी की मार पड़ी, कभी शीतलहर की. कभी चक्रवात ने तबाही मचाई, कभी भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने जीना मुहाल किया. बिजली गिरने से भी मौतें हुईं. मौसम ने करीब-करीब हर दिन, किसी न किसी इलाके में तबाही पैदा की. पहले इनकी फ्रीक्वेंसी कम हुआ करती थी, लेकिन हाल में बहुत बढ़ चुकी है.

गरीबों पर ज्यादा असर

अगर हम बहुत लंबे दौर की बात करें, तो पहले एक्सट्रीम वेदर (Extreme Weather) से जुड़ी घटनाएं कभी-कभार हुआ करती थीं. लेकिन अब ये साफ तौर पर बदल चुका है. अब अलग-अलग तरह की कई आपदाएं जल्दी-जल्दी दस्तक दे रही हैं. रिपोर्ट कहती है कि पहले मौसम की जो मार 100 साल में एक-अदद बार पड़ती थी, अब हर पांच साल या उससे कम समय में पड़ने लगी है. नतीजतन, आपदाओं की वजह से हर महीने एक नया रिकॉर्ड बन जा रहा है. इन सबकी कीमत सबसे ज्यादा गरीबों को चुकानी पड़ रही है.

गरीबों पर ज्यादा असर होने का एक और बुरा पहलू है. गरीब तबका बार-बार होने वाली इन घटनाओं से निपटने की अपनी क्षमता भी तेजी से खोता जा रहा है. इन्हें तबाही के आंकड़ों से भी समझा जा सकता है.

किन राज्यों में कितनी तबाही

  • 'एक्सट्रीम वेदर' से सबसे ज्यादा लोगों की मौत बिहार (642) में हुई. इसके बाद हिमाचल प्रदेश (365) और उत्तर प्रदेश (341) का नंबर आता है. हालांकि मौसम की तबाही वाले सबसे ज्यादा दिन (138) मध्य प्रदेश को देखने पड़े. यहां आपदा की घटनाओं में 249 लोगों की मौत हुई.

  • पंजाब में जानवरों की सबसे ज्यादा मौतें (करीब 63,000) दर्ज की गईं. इस तरह, पशुधन के मामले में करीब दो-तिहाई नुकसान अकेले पंजाब को हुआ. हिमाचल प्रदेश में खराब मौसम की वजह से सबसे ज्यादा मकान (करीब 15,000) बर्बाद हुए.

  • दक्षिण के राज्यों में केरल में 'एक्सट्रीम वेदर' वाले दिनों (67) और मौतों की संख्या (60) सबसे ज्यादा देखी गई. फसल क्षेत्र (62,000 हेक्टेयर से अधिक) पर सबसे ज्यादा असर तेलंगाना में पड़ा. तेलंगाना में बड़ी तादाद में पशु भी हताहत (645) हुए. कर्नाटक को भी भयंकर तबाही का सामना करना पड़ा, जहां 11,000 से ज्यादा घर ढह गए.

  • उत्तर और पश्चिम भारत में यूपी में सबसे ज्यादा 113 दिन मौसम खराब रहा. हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान पर भी तबाही का गहरा असर दिखा.

  • अगर पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत तो देखें, तो असम में खराब मौसम से जुड़ी आपदाओं की सबसे ज्यादा घटनाएं (102) दर्ज की गईं. यहां 159 जानवरों की मौत हुई और 48,000 हेक्टेयर से ज्यादा फसल बर्बाद हो गई. नगालैंड में 1,900 से ज्यादा घर नष्ट हो गए.

हर मौसम में आफत

इस साल जनवरी में औसत (1981-2010) की तुलना में तापमान हल्का गर्म था. लेकिन फरवरी का महीना बहुत गर्म रहा. दिन का तापमान औसत से 1.86ºC ज्यादा रहा. देशभर में इस साल सर्दियों के महीनों में 59 दिनों में से 28 दिनों में 'एक्सट्रीम वेदर' से जुड़ी घटनाएं हुईं. प्री-मॉनसून (मार्च-मई) के दौरान लगभग पूरे देश में बिजली, बारिश, तूफान, खासकर ओला गिरने की घटनाएं असामान्य रूप से देखी गईं. 92 में से 85 दिन मौसम की मार पड़ी.

मॉनसून (जून-सितंबर) सात दिन की देरी से पहुंचा. चक्रवात 'बिपरजॉय' के कारण कुछ पश्चिमी राज्यों में भारी बारिश हुई, जबकि पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) के असर से जुलाई में हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ आ गई. अगस्त में पर्वतीय इलाकों और पूर्वोत्तर भारत में भारी बारिश हुई, जबकि देश के बाकी हिस्से सूखे रहे. हालांकि बाद में बारिश की भरपाई हो गई.

कुल मिलाकर, उन नौ महीनों में हर तरह की आपदाएं देखी गईं. कुल 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में बिजली और तूफान ने कहर बरपाया. इनसे 711 लोगों की जान चली गई.

बाढ़ की तबाही ने किसी इलाके को नहीं छोड़ा. हिमाचल प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया. लोगों की जान गई, घर नष्ट हुए और कमाई का जरिया भी खत्म हो गया.

साफ है कि देश-दुनिया को अब जलवायु परिवर्तन को लेकर तुरंत सख्त कदम उठाने की जरूरत है. देखना होगा कि शिखर सम्मेलन नीतियां तय करने और उन पर अमल करने की बजाए कहीं रस्म-अदायगी का हिस्सा बनकर न रह जाएं.

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