देश में इस साल मॉनसून सीजन के दौरान झमाझम बारिश होगी. मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने इस साल सामान्य से ज्यादा बारिश होने का अनुमान जताया है. सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में IMD ने कहा कि इस साल मॉनसून के सामान्य से बेहतर रहने की संभावना है.
मौसम विभाग के मुताबिक, मॉनसून सीजन में अगस्त-सितंबर तक 'ला नीना' की स्थिति बनने की संभावना के साथ सामान्य से अधिक बारिश होने के अनुमान हैं. ज्यादातर परिस्थितियां मॉनसून के पक्ष में हैं और शुरुआती मॉनसून में अल-नीनो की स्थिति कमजोर होगी.
IMD के महानिदेशक (DG) डॉ. मृत्युंजय महापात्रा ने कहा, 'इस साल जून से सितंबर तक 106% लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) बारिश का अनुमान है. इस दौरान 87 सेमी बारिश की संभावना है.'
लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) में 87% से 104% तक की बारिश को सामान्य कहा जाता है. इस लिहाज से 106% सामान्य से ज्यादा बारिश का आंकड़ा है.
अच्छी बारिश के लिए IOD यानी इंडियन डाइपोल ओशन का पॉजिटिव होना, कारण बताया जा रहा है. मौसम विभाग ने कहा है कि अल-नीनो को रोकने वाला IOD अच्छी स्थिति में रहेगा. इससे बारिश की अच्छी मात्रा दर्ज की जाएगी. साथ ही, उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) में बर्फ का आवरण (Snow Cover) कम है. उन्होंने कहा, ये स्थितियां भारतीय दक्षिण-पश्चिम माॅनसून के लिए अनुकूल हैं.
इस बात की पूरी संभावना है कि मॉनसूनी बारिश अच्छी होगी. देश के 80% इलाकों में बारिश सामान्य से ऊपर रहने का अनुमान है. उत्तर पश्चिम, पूर्व, उत्तर पूर्वी भारत में सामान्य से कम बारिश का अनुमान है.डॉ मृत्युंजय महापात्रा, DG, IMD
देश में मॉनसून का प्रवेश कब होगा, इसको लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है. महापात्रा ने कहा, 'केरल में मानसून कब आएगा इसकी जानकारी मई के मध्य में दी जाएगी. वहीं, अल नीनो की स्थिति जून में दूर हो जाएगी.'
देश में होने वाली कुल बारिश में 70% हिस्सेदारी दक्षिण-पश्चिम माॅनसून की रहती है, जो एग्रीकल्चर सेक्टर के लिए अहम है. देश की GDP में एग्रीकल्चर का योगदान करीब 14% है.
IMD के DG ने कहा कि इस समय मध्यम अल नीनो की स्थिति बनी हुई है. अनुमान है कि मॉनसून का मौसम शुरू होने तक ये तटस्थ हो जाएगा. मॉडल इस बात का इशारा करते हैं कि इसके बाद ला लीना की स्थिति अगस्त-सितंबर तक स्थापित हो सकती है.
IMD ने कहा, 'एनालिसिस से पता चला है कि 22 ला नीना वर्षों में, 20 बार सामान्य या सामान्य से अधिक माॅनसून दर्ज किया गया था. केवल 1974 और 2000 में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई थी.'
उन्होंने कहा, '1951-2023 के बीच के आंकड़ों के आधार पर, देश में माॅनसून के मौसम में 9 ऐसे मौके आए, जब सामान्य से अधिक बारिश हुई और जब ला नीना के बाद अल नीनो घटना हुई.'
अमेरिकन जियोसाइंस इंस्टीट्यूट के अनुसार, अल नीनो और ला नीना का संदर्भ समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है, जिसका दुनिया भर में मौसम पर प्रभाव पड़ता है.
ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्य क्षेत्र में समंदर के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना को अल नीनो कहा जाता है. इसमें समंदर की सतह का तापमान 4-5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है.
पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ती हैं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है. भारत के संदर्भ में देखें तो अल नीनो स्थितियां शुष्क परिस्थितियों से जुड़ी हैं और ये देश में मॉनसून को कमजोर करती है. अल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो भारत में उस साल कम बारिश होती है.
भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर क्षेत्र की सतह पर हवा का दबाव निम्न होने पर ये स्थिति पैदा होती है. जब पूर्व से बहने वाली हवा काफी तेज होती है, तब समंदर की सतह का तापमान काफी कम हो जाता है. ला नीना से आमतौर पर उत्तर-पश्चिम में मौसम ठंडा और दक्षिण-पूर्व में मौसम गर्म होता है.
इसके चलते उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत अधिक नमी वाली स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि इंडोनेशिया और आसपास के इलाकों में काफी बारिश हो सकती है. भारत के संदर्भ में देखें तो इसके चलते ज्यादा ठंड पड़ती है और अच्छी बारिश होती है.