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'दुनिया का आर्थिक भूगोल अब पूर्व की तरफ बढ़ रहा है', मैकिंसे ने गिनाए 2030 में सबसे बड़ी कामकाजी आबादी वाले देश

मैकिंसे ने भारत के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा है कि बाकी देशों को भी उन प्रयासों को अपनाना चाहिए.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी02:54 PM IST, 26 Aug 2023NDTV Profit हिंदी
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भारत, चीन और इंडोनेशिया 2030 तक G20 देशों में दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी उम्र की आबादी (Working-Age Populations) वाली पांच अर्थव्यवस्थाओं में से होंगे.

'G20 अर्थव्‍यवस्‍थाओं में सतत और समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाली' अपनी रिपोर्ट में मैकिंसे ने कहा, 'स्‍पष्‍ट है कि दुनिया, इकोनाॅमिक ज्‍योग्राफी को पूर्वी देशों की ओर शिफ्ट होते देख रही है.'

मैकिन्से ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'दुनिया के देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं. ये निर्भरता पहले की तुलना में बढ़ी है. इसकी एक बड़ी वजह डिजिटल डेटा फ्लो कम्‍यूनिकेशन और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना भी है. भले ही भविष्य में आर्थिक केंद्रों के शिफ्ट होने की संभावना है, लेकिन मौजूदा समय में G20 अर्थव्यवस्थाओं में स्थिरता और समावेशन पर व्यापक और अलग-अलग रुझान मौजूद हैं.

कर्ज उच्चतम स्तर पर

रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद से कर्ज अब अपने उच्चतम स्तर पर है. G20 देशों के लिए डेट-टू-GDP रेश्‍यो अब 300% से अधिक है. देशों के भीतर असमानता (ये सबसे अमीर 10% लोगों और निचले 50% के बीच के अंतर से मापा जाता है) 20वीं सदी की शुरुआत के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है.

विकास का इंजन बना हुआ है भारत

चीन और भारत, G20 के लिए विकास के मुख्‍य इंजन बने हुए हैं, लेकिन अन्य देश भी इंक्लूजन और स्टेबिलिटी पर बेहतर स्कोर कर रहे हैं. यूरोपीय देश, जापान और कोरिया जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) से लेकर बैंक खातों के साथ जनसंख्या की हिस्सेदारी तक कई इंडीकेटर्स पर काफी आगे हैं. स्थिरता के मामले में, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन सबसे कम है. यूरोप के देशों में DGP में CO2 उत्सर्जन का अनुपात सबसे कम है.

आर्थिक सशक्तीकरण

मैकिंसे रिपोर्ट में विकास, समावेशन और स्थिरता जैसे मैट्रिक्स पर बेहतर स्कोर करने के लिए दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से को आर्थिक सशक्तीकरण की रेखा से ऊपर लाने की बात की गई है. हालांकि, आर्थिक सशक्तीकरण की रेखा विश्व बैंक की अत्यधिक गरीबी रेखा से भिन्न है.

मैकिंसे ने कहा कि इस रिसर्च में जिस आर्थिक सशक्तीकरण की अवधारणा का वर्णन किया गया है, उसमें ये सुनिश्चित करना शामिल है कि बुनियादी सुविधाओं की पूरी श्रृंखला तक हर किसी की पहुंच हो.

विश्व बैंक का अनुमान है कि अत्यधिक गरीबी रेखा 2.15 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन होगी.

हालांकि, मैकिंसे अन्य स्‍टडीज का भी हवाला देता है, जो बताते हैं कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं में क्रय शक्ति यानी खरीद की क्षमता, समानता की शर्तों पर, 12 डॉलर प्रति व्यक्ति/दिन पर लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं और मनमुताबिक खर्च करने की ताकत पा लेते हैं.

G20 देशों में गरीबी

मैकिंसे की रिपोर्ट के अनुसार, समग्र आधार पर G20 अर्थव्यवस्थाओं में आधी से अधिक आबादी या 260 करोड़ लोग, आर्थिक सशक्तीकरण की रेखा के अंतर्गत रहते हैं.

  • इसमें अत्यधिक गरीबी में रहने वाले 10 करोड़ लोग, उभरती अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक सशक्तीकरण की रेखा के नीचे रहने वाले 220 करोड़ लोग और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 30 करोड़ लोग शामिल हैं.

  • वैश्विक स्तर पर ऐसे लोगों की संख्या 470 करोड़ है. मैकिन्से के अनुसार, भारत और दक्षिण अफ्रीका में तीन-चौथाई से अधिक आबादी इस रेखा के नीचे रहती है.

  • 2020 तक, भारत की 77% आबादी या 107 करोड़ लोग और दक्षिण अफ्रीका की 75% आबादी या 44 करोड़ लोग आर्थिक सशक्तीकरण की रेखा के तहत रहते थे.

  • चीन, मैक्सिको, ब्राजील और इंडोनेशिया के मामले में ये संख्या 50% से अधिक है. यूरोप और उत्तरी अमेरिका में अधिक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 20-30% आर्थिक सशक्तिकरण रेखा से नीचे रहते हैं.

हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि G20 अर्थव्यवस्थाओं में सशक्तीकरण के अंतर को पाटने के लिए एक दशक से 2030 तक आवश्यक वस्तुओं पर खर्च में 21 ट्रिलियन डॉलर की संचयी वृद्धि की आवश्यकता होगी. भारत के मामले में, इस अंतर को पाटने के लिए 2021 और 2030 के बीच आवश्यक कुल अतिरिक्त खर्च 5.3 ट्रिलियन डॉलर है. ये इस दशक के दौरान GDP का 13% है. चीन के लिए, इसी अवधि में आवश्यक व्यय 4.8 ट्रिलियन डॉलर है.
मैकिन्‍से, अपनी रिपोर्ट में

स्थिरता और समावेशन

मैकिंसे ने कहा, बढ़ा हुआ खर्च स्थिरता और समावेशन में अंतर को पाटने का एक पहलू है, लेकिन इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए विभिन्न देशों की ओर से अन्य प्रयास भी जरूरी हैं.'

इन प्रयासों में इसने विभिन्न सार्वजनिक और निजी कार्यक्रमों की लिस्टिंग की है. इनमें से भारत ने 8 कार्यक्रमों से एक उदाहरण पेश किया है, जिन्‍हें विश्व के अन्‍य देशों में भी अपनाए जाने की जरूरत बताई गई है.

  • वित्तीय और डिजिटल समावेशन: मैकिंसे के अनुसार, जन-धन खातों (Jan-Dhan A/C), आधार (Aadhaar) और मोबाइल (Mobile) के माध्यम से भारत की पहल (JAM) ने वित्तीय समावेशन में सुधार किया है और सरकारी सब्सिडी के वितरण में पारदर्शिता बढ़ाई है.

  • किफायती आवास: निम्न और मध्यम आय वर्ग के आवास के लिए लक्षित सरकारी कार्यक्रमों (PM-Aawas) ने सामर्थ्य को बढ़ावा दिया है.

  • टीकाकरण: CoWin पोर्टल के माध्यम से भारत के प्रयासों ने एक समग्र टीकाकरण का इकोसिस्टम बनाने में मदद की है.

  • हेल्थकेयर: अपोलो हॉस्पिटल्स का ओमनी चैनल एंड-टू-एंड हेल्थकेयर सिस्टम हेल्थकेयर सिस्टम की गुणवत्ता, सामर्थ्य और पहुंच को बढ़ावा देता है.

  • पोषण संबंधी फसलें: घरेलू और वैश्विक स्तर पर बाजरा के बारे में जागरूकता और उत्पादन बढ़ाने की भारत की नवीनतम पहल से उच्च पोषण वाली फसलों के उत्पादन में सुधार होगा.

  • नवीकरणीय ऊर्जा: सरकार के माध्यम से भारत के अपने सोलर क्षमता विस्तार (12 वर्षों में 10 मेगावाट से 60 गीगावॉट से अधिक सौर क्षमता हासिल करने) को बिजली के लिए एक उदाहरण के रूप में पहचाना गया.

  • इलेक्ट्रिक वाहन: इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन प्रोवाइडर के रूप में ओला इलेक्ट्रिक के तेजी से प्रसार ने भारत के स्थाई गतिशीलता लक्ष्यों को जोड़ा है.

  • स्वच्छता: इंदौर नगर निगम ने कचरा प्रबंधन प्रणाली में एक उदाहरण पेश किया है. स्‍वच्‍छता का ये परिवर्तन G20 अर्थव्यवस्थाओं के लिए फॉलो करने लायक है.

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