चंद्रयान 3 की सफलता के बाद आदित्य L-1 पर सबकी नजर है. ये सोलर मिशन है. इसमें पृथ्वी से आगे सूर्य की ओर 15 लाख किमी की दूरी तय की जाएगी. ये दूरी चार महीने में तय होगी. आदित्य L-1 सोलर मिशन पांच साल तक डेटा इकट्ठा करेगा. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से इसे सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर लॉन्च किया जाएगा. आइए इस मिशन के बारे में विस्तार से जानते हैं.
आदित्य L-1 भारत का एक स्पेस मिशन है, जिस पर इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाईजेशन (ISRO) लगातार काम कर रहा है. ये भारत का पांचवां सबसे बड़ा स्पेस मिशन है. ये अंतरिक्ष यान पृथ्वी से 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर जाएगा, जहां लग्रांज 1 (लग्रांज इतालवी मूल के फ्रांसीसी गणितज्ञ थे, जिनका बीजगणित और कैलकुलस में योगदान था) या L1 बिंदु है. ये पृथ्वी और सूर्य के बीच है. लेकिन, ये केवल पृथ्वी और सूर्य के बीच के 150 मिलियन किलोमीटर का मात्र 1% है.
आदित्य-L1 मिशन में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) 1,475 किलोग्राम का अंतरिक्ष यान लेकर जाएगा, जो पृथ्वी के चारों ओर एक अंडाकार पथ में होगा. इस अंतरिक्ष यान में सात वैज्ञानिक उपकरण होंगे. यान की रफ्तार और रास्ते को बढ़ाया जाएगा, ताकि वो सूर्य की ओर जा सके. L1 बिंदु तक पहुंचने में लगभग चार महीने लगेंगे. फिर ये L1 के चारों ओर एक हैलो पथ में डाल दिया जाएगा. यान पांच साल तक डेटा इकट्ठा करेगा.
आदित्य L1 एक सूर्य मिशन है, जबकि चंद्रयान-3 एक चांद मिशन था. आदित्य L1 की दूरी चंद्रयान-3 से लगभग चार गुना ज्यादा है. ये यान चांद मिशन के यान से दो गुना से भी हल्का है. चंद्रयान-3 की तरह, इसकी रफ्तार और रास्ते को भी बढ़ाया जाएगा, जब तक कि ये सूर्य की ओर नहीं जा पहुंचता.
दो आकाशीय शरीरों के बीच पांच लग्रांज बिंदु होते हैं, L1 से L5 तक. ये बिंदु अंतरिक्ष में पार्किंग की जगह की तरह काम कर सकते हैं. पांच खास जगहें हैं, जहां एक छोटी चीज बड़े ग्रह के साथ एक स्थिर पैटर्न में घूम सकती है. लग्रांज बिंदु वो जगहें हैं, जहां यह छोटी चीज दोनों ग्रहों के साथ मिलकर चल सकती है. पांच लग्रांज बिंदुओं में, तीन अस्थिर हैं और दो स्थिर हैं. अस्थिर बिंदु हैं - L1, L2, और L3. स्थिर बिंदु हैं - L4 और L5.
पृथ्वी-सूर्य सिस्टम का L1 बिंदु सूर्य का निरंतर दृश्य देता है. इसका मतलब है कि लग्रांज बिंदु पर रखे यान को अपनी जगह बनाए रखने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. L1 बिंदु पर ऐसी स्थिति होती है, जिसमें यान की ज्यादा ऊर्जा नहीं जाती और वो अपने मुख्य काम, जैसे कि प्रयोग, पर ध्यान दे सकता है.
L1 वर्तमान में सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला उपग्रह SOHO का घर है. पृथ्वी-सूर्य सिस्टम का L2 बिंदु WMAP अंतरिक्ष यान का घर था, प्लैंक का वर्तमान घर और जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का भविष्य का घर था. नासा को L3 बिंदु का कोई इस्तेमाल मिलने की संभावना नहीं है क्योंकि ये हर समय सूर्य के पीछे छिपा रहता है. L4 और L5 बिंदुओं पर परिक्रमा करती पाई जाने वाली वस्तुओं को अक्सर ट्रोजन कहा जाता है.
सूर्य हमारा सबसे नजदीकी सितारा है और इसलिए हम उसे दूसरे सितारों से ज्यादा अच्छे से देख सकते हैं. सूर्य का अध्ययन करने से हमें दूसरे सितारों के बारे में भी ज्यादा जानकारी प्राप्त होगी. इससे हमारी इस ब्रह्मांड की समझ थोड़ी और बढ़ेगी. सूर्य से ही पृथ्वी पर सब जीवन को ऊर्जा मिलती है, लेकिन सूर्य में विस्फोटक घटनाएं भी होती हैं. ये घटनाएं हमारे उपग्रह और संचार तंत्र को नुकसान पहुंचा सकती हैं. सूर्य का अध्ययन करके हम ऐसी घटनाओं से पहले ही सावधान हो कर इन दुर्घटनाओं को रोक सकते हैं.
सूर्य का अध्ययन अंतरिक्ष से करना जरूरी है, क्योंकि पृथ्वी का वायुमंडल और चुम्बकीय क्षेत्र हानिकारक किरणों, जैसे UV किरण, को रोक देते हैं. इसका मतलब है कि सूर्य पर ये प्रयोग करने के लिए जरूरी सामग्री पृथ्वी पर उपलब्ध नहीं है. इसलिए, पृथ्वी से सूर्य का पूरा अध्ययन नहीं किया जा सकता.