मॉनसून ने इस बार देर से दस्तक दी है. अब इसका सीधा असर बुआई पर होता दिख रहा है. बुआई पिछले साल के स्तर से पिछड़ गई है, हालांकि इसमें तेजी आने की उम्मीद है. जून में कम बारिश हुई थी, जिससे अल-नीनो की संभावना बढ़ने के साथ 'सामान्य से कम' मानसून की चिंता बढ़ गई थी.
1-22 जून के दौरान लॉन्ग पीरियड एवरेज के बेस पर बारिश औसत से 30.1% कम हुई. हालांकि बारिश का बंटवारा असामान्य रहा.
बार्कलेज के एक रिसर्च पेपर के मुताबिक बिपरजॉय साइक्लोन के दस्तक देने के बाद उत्तर-पश्चिमी राज्य राजस्थान में भारी बारिश के कारण औसत से सामान्य बारिश में बढ़ोतरी देखी गई , वहीं मध्य, पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों के राज्यों में कम बारिश जारी है, जो खरीफ फसल उत्पादन का अधिकांश हिस्सा हैं.
शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2023 में बोया गया खरीफ फसलों का क्षेत्र 129.45 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 4.5% कम है. मॉनसून में देरी के कारण चावल, तिलहन, जूट, मेस्टा और कपास की बुआई का रकबा पिछले साल की समान अवधि की तुलना में कम था, लेकिन सीजन के आगे बढ़ने के साथ इसमें तेजी देखने को मिल सकती है.
बार्कलेज के नोट में कहा गया है कि चूंकि ज्यादातर बुआई जुलाई में होती है, इसलिए आने वाले हफ्तों में गतिविधि में तेजी आने की उम्मीद है क्योंकि बारिश देश के अन्य हिस्सों में कवर करेगा.
बैंक ऑफ बड़ौदा के एक नोट के मुताबिक खरीफ बुआई का मौसम जून-सितंबर में शुरू होता है और दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के साथ शुरू होता है. खरीफ फसलों की कटाई अक्टूबर-दिसंबर के महीनों में की जाती है और वर्ष में खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 50% हिस्सा होता है.
सामान्य मॉनसून मौजूदा जलाशय स्तर को बढ़ाता है जो रबी की बुआई के लिए महत्वपूर्ण है. केंद्रीय जल आयोग ( Central Water Commission) के अनुसार, 22 जून तक, 146 प्रमुख जलाशयों में भंडारण कुल क्षमता का लगभग 26% था, जो पिछले सप्ताह के 27% से थोड़ा कम था. चालू वर्ष का भंडारण एक वर्ष पहले की अवधि में उपलब्ध क्षमता का लगभग 92% और 10 साल के औसत भंडारण का 112% है.
क्वांटईको रिसर्च ने इस महीने की शुरुआत में छपे एक नोट में कहा था कि अल नीनो का खतरा तेजी से बढ़ने के साथ ही इसका मुकाबला करने के लिए हिंद महासागर के सकारात्मक द्विध्रुवीय (dipole) के विकास या अगस्त या उसके बाद अल नीनो की शुरुआत में देरी पर बहुत कुछ निर्भर करता है.
नोमुरा ने एक नोट में कहा कि गंभीर अल नीनो भारत में चावल उत्पादन को प्रभावित कर सकता है क्योंकि यह बुआई के पीक टाइम पर आएगा.
बैंक ऑफ बड़ौदा के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हाल की घटनाओं के साथ, सामान्य मॉनसून की संभावना और वर्षा का बंटवारा काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है, जिसमें लगातार उतार-चढ़ाव साफ दिख रहा है.