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MS Swaminathan: हरित क्रांति के जनक प्रोफेसर MS स्‍वामीनाथन नहीं रहे

स्वामीनाथन उन शख्सियतों में से थे, जो देश में बड़ा बदलाव लेकर आए.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी01:21 PM IST, 28 Sep 2023NDTV Profit हिंदी
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हरित क्रांति के जनक और प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक MS स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे. चेन्नई स्थित अपने आवास पर उन्‍होंने अंतिम सांसें ली.

स्वामीनाथन उन शख्सियतों में से थे, जो देश में बड़ा बदलाव लेकर आए. एक समय उनका चयन IPS के लिए हो गया था, लेकिन बंगाल में अकाल की घटना ने उनका मन बदल दिया और वे कृषि की ओर मुड़ गए.

एक दौर ऐसा था कि जब देश गेहूं के संकट से गुजर रहा था. खेती-किसानी के लिए उनकी नीतियां इतनी फायदेमंद साबित हुईं कि सिर्फ पंजाब में ही पूरे देश का 70% गेहूं उगाया जाने लगा. उन्‍होंने अनाज के लिए भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता को कम कर दिया और हरित क्रांति के अगुवा बने.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई लोगों ने उनके निधन पर शोक जताया है. PM मोदी ने अपने X पोस्‍ट में लिखा, 'डॉ MS स्वामीनाथन के निधन से गहरा दुख हुआ. हमारे देश के इतिहास में एक बेहद महत्वपूर्ण समय में, कृषि में उनके अभूतपूर्व कार्य ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया. उन्‍होंने हमारे देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की.'

पिता चाहते थे बेटा डॉक्‍टर बने, लेकिन...

7 अगस्त, 1925 को स्वामीनाथन का जन्म तमिलनाडु के कुम्भकोडम में हुआ. उनके पिता डॉ MK सम्बशिवन भी समाजसेवा के लिए जाने जाते थे. MK सम्बशिवन, महात्मा गांधी के अनुयायी थे और मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर आंदोलन भी चलाया था. वे पेशे से डॉक्‍टर (सर्जन) थे और चाहते थे कि बेटा भी डॉक्‍टर बने. पर स्‍वामीनाथन को तो कुछ और ही बनना था.

अकाल ने झकझोरा तो छोड़ दी IPS की नौकरी

स्‍वामीनाथन ने अपनी उच्च शिक्षा 1940 में महाराजा कॉलेज, तिरुवनंतपुरम में शुरू की. वहां से बायोलाॅजी में ग्रेजुएट हुए. आजादी से पहले 1943 में बंगाल में अकाल पड़ा. अकाल की तस्वीरों ने स्‍वामीनाथन को बुरी तरह से झकझोर दिया. ऐसी परिस्थितियों के बीच उन्होंने कृषि में आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया.

स्‍वामीनाथन कोयंबटूर चले गए और वहां कृषि कॉलेज (अब तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय) से पढ़ाई की. 1947 में ICAR के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) से वे जुड़े.

इस दौरान वे UPSC की परीक्षा में शामिल हुए और सफल भी हुए. पर अकाल की तस्‍वीरें उनके दिलो-दिमाग में छाई रही.

IPS की नौकरी छोड़ उन्‍होंने खेती-किसानी के लिए ही काम करने का फैसला लिया. इस बीच उन्‍हें यूनेस्को (UNESCO) की फेलोशिप मिली और वे कृषि में शोध के लिए नीदरलैंड चले गए.

जहां से पढ़ाई की, वहीं बने निदेशक

1950 में उन्‍होंने कैम्ब्रिज स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर के प्लांट ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई की. अपनी Ph.D. पूरी करने के बाद उन्‍होंने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय में पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएटशिप स्वीकार की. भारत लौटने के बाद 1972 में उन्हें उसी इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) का डायरेक्टर बनाया गया, जहां कभी वे छात्र रहे थे.

हरित क्रांति के लिए कई महत्‍वपूर्ण कदम

  • ICAR में रहते हुए उन्होंने पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में गेहूं के ऐसे बीजों की बुआई की जो अधिक उपज देते थे.

  • इसके अलावा उन्होंने खेती के लिए उन्‍होंने ट्रैक्टर्स का व्‍यापक इस्‍तेमाल शुरू किया. साथ ही अच्‍छी फसल के लिए उर्वरकों, कीटनाशकों का इस्तेमाल शुरू किया.

  • पंजाब से शुरू हुए इन कदमों से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. पंजाब में इतना ज्‍यादा गेहूं पैदा होने लगा कि देश की 70% जरूरतें पूरी की जा सके.

  • देश में गेहूं की कमी खत्‍म होने लगी और गेहूं के लिए दूसरे देशों पर निर्भरता काफी हद तक कम हो गई.

  • उन्होंने अपने कार्यकाल में कई एग्रीकल्‍चर इंस्टीट्यूट की शुरुआत की. उनके नाम पर अपना एक MS स्‍वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन भी है.

  • 1979 में वह कृषि मंत्रालय में प्रधान सचिव भी रहे. उनकी अध्‍यक्षता में स्‍वामीनाथन आयोग भी बनाया गया, जिसकी रिपोर्ट काफी महत्‍वपूर्ण मानी जाती है.

स्‍वामीनाथन की अध्‍यक्षता में बना किसान आयोग

अनाज की आपूर्ति और किसानों के हालात सुधारने के लिए 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने MS स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था. लंबे अध्‍ययन और मंथन के बाद स्वामीनाथन ने सरकार से कुछ सिफारिशें की थीं.

फसल उत्पादन मूल्य का 50% से ज्यादा कीमत किसानों को दिए जाने की सिफारिश की थी. उन्‍हें कम दामों पर अच्छी गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने और महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने की भी सिफारिश की थी.

उन्‍होंने खेती-किसानी से जुड़ी को लेकर जागरुकता और जानकारी बढ़ाने के लिए ज्ञान चौपाल आयोजित करने और आपदाओं से निपटने के लिए किसान जोखिम फंड बनाए जाने की बात भी कही थी. हालांकि स्‍वामीनाथन आयोग की कई सिफारिशें लागू नहीं हो पाईं.

पद्म अवार्ड और मैग्‍सेसे समेत कई पुरस्‍कार मिले

खेती-किसानी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए हुए यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम ने उन्हें फादर ऑफ इकोनॉमिक इकोलॉजी की उपाधि दी.

1961 में उन्‍हें भटनागर पुरस्कार, 1971 में मैग्सेसे पुरस्कार और 1987 में उन्हें दुनिया के पहले वर्ल्ड फूड प्राइज से सम्मानित किया गया. वर्ष 2000 में उन्‍हें फ्रैंकलिन रूजवेल्ट पुरस्कार मिला, जबकि 2021 में केरल विज्ञान पुरस्कार भी मिला.

स्‍वामीनाथन को पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण सम्‍मान से नवाजा जा चुका है. उन्‍होंने कई किताबें लिखी हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी उनकी दो किताबों का विमोचन कर चुके हैं.

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