मशहूर इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल के मुताबिक प्राचीन काल में रोमन साम्राज्य का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन नहीं, बल्कि भारत था. NDTV World Summit 2024 में बोलते हुए उन्होंने बताया कि भारत ना केवल अतीत में दुनिया के व्यापारिक केंद्र में था, बल्कि नालंदा जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ शिक्षा का भी बड़ा केंद्र था.
हाल में डेलरिम्पल की किताब 'The Golden Road: How Ancient India Transformed The World' का विमोचन हुआ है, जो काफी चर्चा में है.
डेलरिम्पल के मुताबिक 250 BC से 1200 AD तक लगभग एक हजार साल तक भारत दुनिया की धुरी था. उन्होंने अलग-अलग सबूत और उदाहरण देकर बताया है कि भारत के मजबूत रिश्ते इजिप्ट से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक थे.
वे कहते हैं, 'रोमन साम्राज्य के दौरान इजिप्ट तक भारत का व्यापार फैला था, ये भारत से करीब 6000 किलोमीटर की दूरी थी. दूसरी तरफ अंकोरवाट जैसे मंदिर मिले हैं, जिनमें भारतीय पौराणिक कथाओं के चित्र हैं. ये भी भारत के पूर्व में हजारों किलोमीटर दूर हैं.'
तो आखिर इसके बारे में ज्यादा क्यों नहीं पता कि भारत एक हजार साल तक एशिया के केंद्र में था. डेलरिम्पल कहते हैं कि मैकाले जैसे पश्चिमी लोगों और औपनिवेशिक ने अपने हितों के चलते भारतीय इतिहास के साथ छेड़छाड़ की और स्वदेशी साहित्य के बारे में कहा कि ये अंग्रेजी की किताबों के एक सेल्फ के बराबर है.
डेलरिम्पल सिल्क रूट का मैप दिखाते हैं. जो यूरोप और भारत के ऊपर मध्य एशिया से होते हुए चीन तक जाता है. कहा जाता है कि प्राचीन काल में यही व्यापार का मुख्य रास्ता था.
लेकिन डेलरिम्पल सिल्क रूट के रास्ते व्यापार की प्राथमिकता की थ्योरी को नकारते हैं. यहां तक कि वे उस वैकल्पिक रास्ते की बात को भी नकारते हैं, जिसके जरिए लाल सागर, अरब सागर में भारत को बायपास करते हुए रास्ता दक्षिण पूर्व एशिया से चीन तक जाता था. उन्होंने अपनी किताब 'गोल्डन रोड' में भी इसे नकारा है.
डेलरिम्पल ने इसके लिए रोमन सिक्कों का सहारा लिया है. दरअसल जिन भौगोलिक क्षेत्रों के बीच प्राचीन काल में व्यापारिक संबंध रहे हैं, अक्सर उन जगहों पर खुदाई में एक दूसरे की मुद्रा मिलती रही है.
डेलरिम्पल अपने दावे के पक्ष में ऑक्सफोर्ड के नए मैप को पेश करते हैं, इस मैप में दुनियाभर में जिन जगहों पर रोमन सिक्के मिले हैं, उन्हें हाईलाइट किया गया है. इस मैप में सबसे ज्यादा सिक्के यूरोप में दिखाई देते हैं, जिसका एक बड़ा हिस्सा खुद रोमन साम्राज्य के अंतर्गत आता था. इसके बाद शुरुआती शताब्दियों के ये रोमन सिक्के बड़ी संख्या में भारत में मिलते हैं, ये अफगानिस्तान से लेकर दक्षिण भारत तक मिलते हैं, मतलब साफ है कि शुरुआती शताब्दियों में भारत, रोमन साम्राज्य का मुख्य व्यापारिक साझेदार था.
आगे डेलरिम्पल इतिहासकार प्लिनी का हवाला देते हुए कहते हैं कि उन्होंने रोम से भारत को सोने के व्यापार के बारे में बताया है. इतना ही नहीं रोमन साम्राज्य के लोग भारत के पश्चिमी तट पर ज्यादातर बंदरगाहों से परिचित थे. डेलरिम्पल यहां जियोग्राफर स्ट्राबो का हवाला भी देते हैं, जो लाल सागर में 250 नावों के बारे में बताते हैं कि ये तब श्रीलंका जाने की तैयारी में थीं.
फिर डेलरिम्पल 'मुजिरियस पपायरस' की नई डिस्कवरी का जिक्र करते हैं. ये एक तरह का इनवॉइस था, जिसमें एक व्यापारी के ऑर्डर का जिक्र था. ये व्यापारी अलेक्जेंड्रिया के एक मर्चेंट को ये ऑर्डर भेज रहा था. 10 टन के इस ऑर्डर के तहत पेपर और आइवरी (हाथी दांत) जैसी लग्जरी चीजों को भेजा जा रहा था. इसी तरह अफगानिस्तान में भी इजिप्शियन कांच के अवशेष मिले हैं, जो इसके व्यापार के बारे में बताता है.
डेलरिम्पल के मुताबिक भारत ना केवल व्यापारिक बल्कि दुनिया का शैक्षणिक केंद्र भी था, जहां ह्वेनसांग जैसे यात्री पहुंचे. बल्कि नालंदा के ट्रेंड महायानी शिष्यों का चीन के राजदरबारों में भी प्रभुत्व रहा.