भारतीय रिजर्व बैंक ने मंगलवार को अल्टरनेटिव इंवेस्टमेंट फंड्स में निवेश करने वाले बैंकों को अपनी होल्डिंग्स को लिक्विडेट करने का निर्देश दिया है, जो फंड्स कर्ज लेने वाली कंपनी में निवेश करते हैं. RBI के मुताबिक ऐसा लोन एवरग्रीनिंग से निपटने के लिए किया गया है.
डेब्टर फर्म वो कंपनी है जिसे कर्जधारक ने मौजूदा समय में या पहले कभी पिछले 12 महीनों के दौरान लोन लिया हो. लोन एवरग्रीनिंग एक ही कर्जधारक को नया या अतिरिक्त लोन देना है जो पिछले लोन को चुकाने में भी असफल रहा है.
RBI ने सर्रकुलर में कहा कि बैंक उन AIFs में निवेश नहीं करेंगे जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से बैंक की डेब्टर कंपनी में निवेश करते हैं. अगर ऐसा कोई निवेश है तो बैंकों को 30 दिनों के अंदर AIF में अपनी लिक्विडेट कर देना चाहिए.
ऐसा नहीं करने पर बैंकों को ऐसे लोन्स के लिए 100% प्रोविजनिंग करनी होगी. गाइडलाइंस तुरंत प्रभाव से प्रभावी होंगी. इसके अलावा बैंकों का किसी AIF स्कीम की सबऑर्डिनेटिड यूनिट्स में निवेश भी पूरी तरह बैंक के कैपिटल से काटा जाएगा.
प्रायोरिटी डिस्ट्रिब्यूशन मॉडल के अंदर AIF इंवेस्टमेंट पोर्टफोलियो को दो हिस्सों में बांटता है जिसमें सीनियर इन्वेस्टर के पास सुपीरियर राइट्स होते हैं. फिर जूनियर इन्वेस्टर को भुगतान किया जाता है.
नुकसान की स्थिति में जूनियर इन्वेस्टर के मुकाबले सीनियर इन्वेस्टर को ज्यादा नुकसान होता है. पिछले साल नवंबर में सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने अस्थायी तौर पर प्रायोरिटी डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल्स वाले AIFs पर नई कैपिटल को मंजूर करने या नई एंटिटी में कैपिटल लगाने पर रोक लगा दी थी.