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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला! कहा- 'राज्यों को खनिज वाली जमीन पर टैक्स लगाने का अधिकार, रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं'

इस फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को फायदा होगा.
NDTV Profit हिंदीमोहम्मद हामिद
NDTV Profit हिंदी11:44 AM IST, 25 Jul 2024NDTV Profit हिंदी
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खनिज प्रधान राज्यों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत की खबर आई है. सुप्रीम कोर्ट ने खनिज वाली जमीनों पर रॉयल्टी लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों के पास ऐसा करने की क्षमता और शक्ति है.

सुप्रीम कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला ओडिशा, झारखंड, बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे खनिज समृद्ध राज्यों के लिए एक बड़ी जीत है. क्योंकि ये राज्य सरकारें अपने- अपने राज्यों में काम करने वाली माइनिंग कंपनियों से खनिजों पर टैक्स वसूल सकेंगी.

रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

9 जजों की बेंच का ये ऐतिहासिक फैसला 8:1 के बहुमत से आया है. जिसमें बेंच की अगुवाई कर रहे चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रॉयल्टी टैक्स के समान नहीं है. जबकि जस्टिस बी वी नागरत्ना ने फैसले पर अपनी असहमति जताई.

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने की इजाजत देने से 'आय कमाने के लिए राज्यों के बीच एक अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी, इससे बाजार का शोषण किया जा सकता है, इससे खनिज विकास के संदर्भ में संघीय प्रणाली टूट जाएगी'.

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को खनिज समृद्ध राज्यों की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में खनिज-युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने के राज्य सरकारों के अधिकार को बरकरार रखा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि MMDR एक्ट (Mines and Minerals (Development and Regulation) Act) में राज्य की टैक्स लगाने की शक्तियों पर सीमाएं लगाने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है. MMDR की धारा 9 के तहत रॉयल्टी टैक्स की प्रकृति में नहीं है.

कोर्ट ने कहा कि रॉयल्टी माइनिंग लीज (पट्टे) से आती है, ये आम तौर पर निकाले गए खनिजों की मात्रा के आधार पर तय की जाती है. रॉयल्टी की बाध्यता पट्टादाता और पट्टाधारक के बीच एग्रीमेंट की शर्तों पर निर्भर करती है.

कोर्ट ने कहा कि सरकार को दिए जाने वाले एग्रीमेंट भुगतान को टैक्स नहीं माना जा सकता. मालिक खनिजों को अलग करने के लिए रॉयल्टी लेता है. रॉयल्टी को लीज डीड से जब्त कर लिया जाता है और टैक्स लगाया जाता है. अदालत का मानना ​​है कि इंडिया सीमेंट्स के फैसले में रॉयल्टी को टैक्स बताना गलत है.

क्या था विवाद?

अब जरा मामला समझते हैं, दरअसल इसे लेकर पहले कंफ्यूजन था कि राज्यों में मौजूद खनिज जमीन पर जो मिनरल्स निकाला जा रहा है, क्या राज्य उस पर टैक्स लगा सकते हैं या नहीं. 1989 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कहा गया था कि रॉयल्टी एक टैक्स है.

सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले में 1989 के उस फैसले को पलटते हुए कहा कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है और राज्यों के पास ये शक्ति है कि वो अपनी जमीन पर मौजूद खनिज पर पर टैक्स लगा सकें, जो भी खनिज उनकी जमीन से निकाला जा रहा है वो उस पर सेस ले सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला केंद्र सरकार और माइनिंग कंपनियों के लिए एक झटका है. क्योंकि माइनर्स को अब ज्यादा टैक्स देना होगा और केंद्र सरकार खनिजों पर टैक्स लगाने के मामले में अपनी पकड़ खो देगी.

अब पूरा मामला समझिए

1957 में संसद की ओर से एक एक्ट लाया गया जिसको MMDR एक्ट 1957 कहते हैं, इसमें सेक्शन 9 कहता है कि जो भी खनिज वाली जमीन का मालिक होगा, उसे वो कंपनी रॉयल्टी देगी जो उस जमीन पर खनिज को निकालेगी. अब तमिलनाडु में इंडिया सीमेंट कंपनी अपनी मैन्युफैक्चरिंग शुरू करती है. तमिलनाडु सरकार 1958 में एक कानून लेकर आती है, जिसका नाम है, मद्रास पंचायत एक्ट 1958. जिसमें ये कहा गया कि इंडिया सीमेंट कंपनी जो 1 रुपये का भुगतान अबतक करती आ रही है, वो सिर्फ रॉयल्टी थी, अब कंपनी को नए मद्रास पंचायत एक्ट 1958 के तहत 45 पैसे और देना होगा, 45 पैसे टैक्स के तौर पर इंडिया सीमेंट को और देने होंगे.

अब सवाल ये खड़ा हुआ कि

  • क्या खनिज पर टैक्स वसूलने का अधिकार सिर्फ संसद को है या फिर राज्य सरकारें भी टैक्स वसूल सकती हैं.

  • दूसरा सवाल ये कि क्या रॉयल्टी एक टैक्स है, क्योंकि टैक्स के ऊपर ही सेस लगाया जाता है.

तमिलनाडु सरकार के इस फैसले से इंडिया सीमेंट की मुश्किलें बढ़ गईं, मामला मद्रास हाई कोर्ट पहुंच गया, लेकिन हाई कोर्ट से इंडिया सीमेंट को कोई राहत नहीं मिला. मामला बढ़ता गया और सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया.

1989 में सुप्रीम कोर्ट में 7 जजों की एक बेंच बनाई जाती है. पूरी सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला दिया कि संविधान की 7वीं सूची के मुताबिक खनिजों पर टैक्स लगाने का अधिकार संसद का है, न कि राज्य सरकारों का. कोर्ट ने साफ कर दिया कि रॉयल्टी एक टैक्स है. ये फैसला इंडिया सीमेंट के पक्ष में था.

इस पर काफी समय तक विवाद रहा कि रॉयल्टी टैक्स कैसे हो सकता है, एक केस साल 2004 की पांच जजों की बेंच के सामने आता है. कोर्ट कहती है कि 1989 में जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला था, उसका मतलब ये नहीं था कि रॉयल्टी टैक्स है. यानी रॉयल्टी अपने आप में कोई टैक्स नहीं है बल्कि रॉयल्टी के ऊपर जो सेस लगाया जा रहा है, वो टैक्स है.

अब सुप्रीम कोर्ट की दो बेंच और दो अलग तरह के फैसलों से पेंच फंस गया.

1992 में तमिलनाडु सरकार की तरह ही एक एक्ट बिहार सरकार भी लेकर आई थी, इस पर भी रॉयल्टी के ऊपर टैक्स लगाने की बात थी, ये मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. ऐसा करते करते करीब 80 याचिकाएं कोर्ट में आईं, इसके बाद 9 जजों की एक बेंच बनाई जाती है और 27 फरवरी को इसकी सुनवाई होती है. आज इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है. इसलिए ये फैसला अपने आप में ऐतिहासिक.

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