सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने को सहारा इंडिया परिवार (Sahara India Pariwar) की दो कंपनियों- सहारा इंडिया रियल एस्टेट और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट को अगले 30 दिनों के भीतर SEBI-सहारा फंड में 1,000 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट ने मुंबई में कंपनी की वर्सोवा लैंड के डेवलपमेंट के लिए एक JV में एंट्री करने के ग्रुप के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सहारा ग्रुप को 15 दिन के भीतर एक अलग एस्क्रो खाते (तीसरे पक्ष का खाता) में 1,000 करोड़ रुपये जमा कराने का निर्देश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को SEBI-सहारा फंड में 25,000 करोड़ रुपये का पेमेंट करने का निर्देश दिया था. अब तक सहारा ने लगभग 15,000 करोड़ रुपये का पेमेंट किया है. अभी 10,000 करोड़ रुपये बकाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सहारा को 1000 करोड़ जमा करने के लिए 30 दिन की मोहलत दी है. कोर्ट ने कहा है कि सहारा या तो 30 दिन में JV करें या वर्सोवा प्रॉपर्टी का लैंड डेवलपमेंट करार करे. 30 दिन के अंदर JV और डेवलपमेंट करार नहीं होने पर कोर्ट वर्सोवा प्रॉपर्टी बेचेगी.
कोर्ट के मुताबिक, सहारा ग्रुप की किसी भी कंपनी की प्रॉपर्टी बेचने पर पैसा सेबी-सहारा फंड में जमा होगा केस पर 1 महीने बाद फिर से सुनवाई होगी. बता दें सेबी-सहारा का मामला 2012 से कोर्ट में चल रहा है. सहारा को ₹25,000 करोड़ जमा करने थे मगर कंपनी ने सिर्फ ₹15,000 करोड़ जमा किए हैं.
सहारा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 2012 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐसा लगता है कि सहारा के सभी जमाकर्ता काल्पनिक हैं. उन्होंने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने ये मानकर काम किया है कि कोई जमाकर्ता नहीं है. सिब्बल ने कहा कि सहारा ने जमाकर्ताओं के सभी दस्तावेजों से भरे 127 ट्रक सेबी को भेजे थे. उन्होंने कहा कि 12 साल बीत चुके हैं और उन्होंने (SEBI) अभी तक वेरिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं की है.
दूसरी ओर, SEBI ने तर्क दिया कि सहारा का ये तर्क कि उसने अपने लगभग 95% जमाकर्ताओं को पहले ही पेमेंट कर दिया है. पूरी तरह से फर्जी है. SEBI की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने तर्क दिया कि सहारा उन कंपनियों के बैंक स्टेटमेंट नहीं दें पाया है जिनके माध्यम से उसने इन निवेशकों को पेमेंट किया है.
अगस्त 2012 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा की दो कंपनियों- सहारा इंडिया रियल एस्टेट और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट को आदेश दिया था कि वे 2 करोड़ से अधिक छोटे निवेशकों को 24,000 करोड़ रुपये 15% ब्याज के साथ वापस करें, जिन्होंने वर्ष 2008 और 2011 के बीच उनके ऑप्शनली कनवर्टिबल डिबेंचर में निवेश किया था.
2020 में, SEBI ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिसमें सहारा ग्रुप की दो कंपनियों और सुब्रत रॉय को रेगुलेटर को पेमेंट की जाने वाली राशि 62,000 करोड़ रुपये बताई गई थी.