ADVERTISEMENT

SC/ST के लिए कोटा के अंदर अलग से कोटा दिया जा सकता है, सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में सब-क्लासिफिकेशन यानी उप-वर्गीकरण के पक्ष में है.
NDTV Profit हिंदीमोहम्मद हामिद
NDTV Profit हिंदी11:50 AM IST, 01 Aug 2024NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
Follow us on Google NewsNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदी

सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण के भीतर अब कोटा को मंजूरी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला दिया कि राज्यों के भीतर नौकरियों में आरक्षण देने के लिए कोटा के भीतर कोटा दिया जा सकता है. यानी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर सब-क्लासिफिकेशन मान्य होगा. ये ऐतिहासिक फैसला CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने 6:1 के बहुमत से पारित किया, जिसमें न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई.

2004 के फैसले को पलटा

2004 के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला बहुत ही अहम है, क्योंकि ये फैसला ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 2004 के फैसले को पलट देता है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2004 के अपने फैसले में कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए SC/ST की सब कैटेगरी करने का अधिकार हीं है. अदालत के सामने अब मुद्दा एक बार फिर से कोटे के भीतर कोटे का था. अब अदालत ने साफ कर दिया है कि कोटा के भीतर कोटा दिया जा सकता है.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में सब-क्लासिफिकेशन यानी उप-वर्गीकरण के पक्ष में है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि "सब-क्लासिफिकेशन और सब-कैटेगराइजेशन के बीच अंतर है, और ये सुनिश्चित करने के लिए कि फायदा अधिक पिछड़े समूहों तक पहुंचे, राज्यों को आरक्षित श्रेणी समुदायों को सब-कैटेगराइज करना पड़ सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उप-वर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए. इस मामले में राज्य अपनी मर्जी नहीं चला सकते हैं. जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता, SC/ST के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. इनको अक्सर प्रणालीगत भेदभाव की वजह से सीढ़ी पर चढ़ने में सक्षम नहीं होते हैं. आर्टिकल 14 जाति के उप वर्गीकरण की अनुमति देता है.

SC के फैसले का मतलब समझिए

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए उप-वर्गीकरण को “कोटा के भीतर कोटा” कहा जाता है. यानी अगर एक समुदाय या श्रेणी के लोगों को आरक्षण दिया जा रहा है तो उसी श्रेणी का उप-वर्गीकरण करके उनके बीच आरक्षित सीटों का बंटवारा करना.

उदाहरण के तौर पर अगर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षण 15% तय है तो इस वर्ग में शामिल जातियों और उनके सामाजिक, आर्थिक पिछेड़ेपन के आधार पर अलग-अलग आरक्षण का दिया जाना.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का मतलब ये है कि SC के लिए 15% आरक्षण के भीतर, जिन जातियों को अधिक वंचित माना जाता है, उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक महत्व दिया जाएगा. जैसे कि 2006 में पंजाब ने अनुसूचित जाति के लिए निर्धारित कोटा के भीतर सार्वजनिक नौकरियों में वाल्मिकियों और मजहबी सिखों को 50% कोटा और पहली प्राथमिकता दी गई.

NDTV Profit हिंदी
फॉलो करें
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT