US Tariff Explained: अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को नए टैरिफ दरों का ऐलान किया. इस नीति के तहत अमेरिका के 180 से अधिक व्यापारिक साझेदार देशों पर आयात शुल्क (टैरिफ) लगाया गया है. गौर करने वाली बात ये है कि अमेरिका का कोई भी व्यापारिक साझेदार देश इस टैरिफ से अछूता नहीं है.
सभी आयातों पर न्यूनतम यानी बेसिक स्तर पर 10% शुल्क लागू किया गया है. इसके अलावा देश-विशेष शुल्क भी तय किए गए हैं. इस तरह भारत पर 27%, यूरोपियन यूनियन पर 20%, जबकि चीन पर तो 54% टैरिफ लगाया गया है. ये टैरिफ 5 अप्रैल से लागू होंगे, जबकि कुछ बढ़ोतरी 9 अप्रैल से प्रभावी होंगी.
अमेरिका की नई टैरिफ पॉलिसी दुनिया भर की इकोनॉमीज पर असर डाल सकती है. भारत के संदर्भ में देखें तो फार्मा, ऑटोमोबाइल, डेयरी, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योग इस फैसले से सीधे प्रभावित होंगे.
आइए टैरिफ के बारे में जरा विस्तार से समझ लेते हैं.
आसान शब्दों में कहें तो टैरिफ एक तरह का टैक्स होता है, जो किसी देश में इंपोर्टेड (Imported) यानी आयात किए गए वस्तुओं पर लगाया जाता है.
जब किसी देश में विदेशी सामानों की एंट्री होती है तो इंपोर्टर यानी आयात करने वाले को सरकार को ये टैक्स चुकाना पड़ता है.
सरकारें कई उद्देश्यों के लिए टैरिफ का इस्तेमाल करती हैं, जैसे घरेलू उद्योगों की सुरक्षा, रेवेन्यू जुटाना, व्यापार संतुलन बनाए रखना और अन्य देशों पर आर्थिक दबाव बनाना.
भारत भी घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने समेत अन्य उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए कई देशों पर टैरिफ लगाता है.
टैरिफ मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, एड वैलोरम और स्पेसिफिक. लेकिन इसे और भी कैटगरी में बांटा जा सकता है. इनका उपयोग सरकार अपनी व्यापार नीतियों के अनुसार करती है.
एड वैलोरेम टैरिफ (Ad Valorem Tariff): किसी प्रॉडक्ट के मूल्य का निश्चित प्रतिशत (जैसे 10%, 20% टैरिफ).
स्पेसिफिक टैरिफ (Specific Tariff): किसी प्रॉडक्ट की प्रति यूनिट पर तय शुल्क (जैसे 5 डॉलर/किलो या 10 डॉलर/लीटर).
कंपाउंड टैरिफ (Compound Tariff): एड वैलोरेम और स्पेसिफिक टैरिफ का मिश्रण.
एंटी-डंपिंग टैरिफ (Anti Dumping Duty): यदि कोई देश बहुत सस्ते दामों पर सामान बेचता है, तो उसे रोकने के लिए.
काउंटरवेलिंग ड्यूटी (CounterVailing Duty): किसी देश द्वारा अपने निर्यातकों को दी गई सब्सिडी की भरपाई करने के लिए.
रिसीप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff): ये एक तरह से पारस्परिक यानी 'जैसे को तैसा' टैरिफ हुआ. जैसे कोई देश, दूसरे देश के के प्रॉडक्ट्स पर टैरिफ लगाता है तो बदले में दूसरा देश भी टैरिफ लगाएगा.
अमेरिका ने रिसीप्रोकल टैरिफ पॉलिसी को लागू करने के कई कारण बताए हैं:
घरेलू इंडस्ट्रीज की सुरक्षा: सस्ते विदेशी प्रॉडक्टों को महंगा बनाकर अमेरिकी कंपनियों को संरक्षण देना.
अतिरिक्त रेवेन्यू कमाना: टैरिफ से अमेरिका की सरकार को आय होगी.
व्यापार असंतुलन कम करना: अमेरिका का मानना है कि चीन और अन्य देशों से अधिक आयात करने के कारण उसे नुकसान हो रहा था.
बेरोजगारी कम करना: ट्रंप प्रशासन का ये भी मानना है कि दूसरे देशों पर कम टैरिफ होने के चलते देश में रोजगार प्रभावित हो रहा है.
अन्य देशों पर दबाव बनाना: अमेरिका अन्य देशों को अपने अनुसार व्यापार नियमों में बदलाव के लिए बाध्य करना चाहता है.
अमेरिका ने टैरिफ अन्य देशों पर लगा रहा है, लेकिन इसका सीधा असर अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं पर भी पड़ता है. आइए देखें कि इस शुल्क का बोझ किसे उठाना होगा:
आयात करने वाला (Importer): टैरिफ अमेरिका में सामान लाने वाली कंपनियों द्वारा चुकाया जाता है.
उपभोक्ता (Consumer): कंपनियां ये अतिरिक्त खर्च ग्राहकों से वसूलती हैं, जिससे सामान महंगा हो जाता है.
विदेशी निर्यातक (Exporter): अगर कोई देश अमेरिकी बाजार में अपनी बिक्री बनाए रखना चाहता है, तो उसे अपने प्रॉडक्ट्स के दाम कम करने पड़ सकते हैं.
प्रोडक्शन री-लोकेशन: कुछ कंपनियां टैरिफ से बचने के लिए प्रॉडक्शन अमेरिका में ट्रांसफर कर सकती हैं. जैसे भारत के 'मेक इन इंडिया' अभियान के तहत विदेशी कंपनियां यहीं प्रोडक्शन करती हैं.
इस टैरिफ को लागू करने के लिए अमेरिका की कस्टम एजेंसियां कई तरह के तरीके अपना सकती हैं.
कस्टम ड्यूटी (Custom Duty) : अमेरिका के 328 बंदरगाहों पर कस्टम अधिकारी इस शुल्क की वसूली करेंगे.
आयातकों की सेल्फ-जांच (Self-reporting): कंपनियों को अपने आयात का सही मूल्य और विवरण बताना होगा.
गलत जानकारी पर सजा का प्रावधान: यदि कोई कंपनी गलत वैल्यूएशन पेश करती है, तो उसे भारी जुर्माना और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
धोखाधड़ी पर मुकदमा: जो कंपनियां जानबूझकर टैरिफ से बचने की कोशिश करेंगी, उन पर फाल्स क्लेम से जुड़े कानून के तहत केस हो सकता है.
ट्रंप ने भारतीय सामानों पर 26% टैरिफ लगाया है, जिसे 'डिस्काउंटेड रिसीप्रोकल टैरिफ' कहा जा रहा है. इसका मतलब ये है कि अगर भारत अमेरिका के प्रॉडक्ट्स पर 56% टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भारतीय सामानों पर इसका आधा यानी 26% टैरिफ लगाएगा.
इसका सीधा असर फार्मास्युटिकल्स, टेक्सटाइल, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों पर पड़ेगा. भारतीय निर्यातकों को अब अमेरिकी बाजार में अपने प्रॉडक्टों के दाम बढ़ाने पड़ सकते हैं, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है.
अमेरिका की ये नई नीति चीन, यूरोपीय संघ और भारत जैसे देशों के साथ ट्रेड टेंशन बढ़ा सकती है. भारत जैसे देशों को निर्यात में दिक्कत हो सकती है, जिससे आर्थिक ग्रोथ प्रभावित हो सकती है.
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अस्थिरता बढ़ सकती है, क्योंकि टैरिफ का असर ग्लोबल सप्लाई चेन पर भी पड़ेगा. अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए भी महंगाई बढ़ सकती है, क्योंकि कंपनियां टैरिफ की लागत ग्राहकों पर डाल सकती हैं.