भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में अपने कार्यकारी निदेशक (ED) के पद पर अचानक बदलाव किया है. पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार KV सुब्रमणियन को उनके तीन वर्षीय कार्यकाल से छह महीने पहले ही हटा दिया गया है. उनकी जगह फिलहाल विश्व बैंक में भारत के ED परमेश्वरन अय्यर को IMF बोर्ड में भारत का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया है.
ये बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब IMF बोर्ड 9 मई को पाकिस्तान को मिलने वाली वित्तीय मदद पर फैसला करने वाला है. इस कदम को जानकार, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को घेरने की दिशा में आक्रामक कूटनीति की तरह देख रहे हैं.
समाचार एजेंसी PTI के मुताबिक, IMF की इस अहम बैठक में पाकिस्तान के लिए 1.3 बिलियन डॉलर के नए 'क्लाइमेट रेजिलिएंस लोन प्रोग्राम' और 7 बिलियन डॉलर के बेलआउट पैकेज की पहली समीक्षा पर चर्चा होनी है. इस सहायता के खिलाफ भारत की आपत्ति स्पष्ट है. खासकर तब; जब भारत, पिछले महीने हुए पहलगाम आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानता है, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए थे.
सूत्रों के मुताबिक, अगर भारत ने समय रहते अपना प्रतिनिधि नहीं बदला होता तो IMF के नियमों के अनुसार श्रीलंका के वैकल्पिक ED हरिश्चंद्र पहथ कुम्बुरे गेदारा को भारत की सीट से मतदान का अधिकार मिल जाता, जिससे भारत की स्थिति कमजोर हो सकती थी.
सरकारी सूत्रों के अनुसार, सुब्रमणियन की छुट्टी के पीछे कई कारण हो सकते हैं. बताया जा रहा है कि उन्होंने IMF के डेटासेट पर सवाल उठाए थे, जिससे वाशिंगटन स्थित इस बहुपक्षीय संस्था में असहजता पैदा हुई. पहले भी उनके बयान, विशेषकर भारत के कर्ज को लेकर, IMF को रास नहीं आए थे. इसके अलावा, उनकी हालिया पुस्तक ‘India@100’ के प्रचार को लेकर भी कथित अनियमितताओं की बात सामने आई है.
सुब्रमणियन को नवंबर 2022 में IMF में भारत का ED नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल अक्टूबर 2025 तक चलना था. लेकिन अब ये जिम्मेदारी परमेश्वरन अय्यर को दी गई है, जो पहले स्वच्छ भारत मिशन के भी प्रमुख रह चुके हैं और प्रशासनिक अनुभव के साथ-साथ बहुपक्षीय संस्थानों में कार्य कर चुके हैं.
भारत ने सिर्फ IMF में ही नहीं, बल्कि FATF (Financial Action Task Force) में भी पाकिस्तान को दोबारा ‘ग्रे लिस्ट’ में डालने की कोशिशें तेज कर दी हैं. पाकिस्तान पहले 2018 से 2022 तक इस निगरानी सूची में रह चुका है, जिससे विदेशी निवेशकों में उसकी छवि को बड़ा नुकसान हुआ था.
जानकारों के मुताबिक, ये स्पष्ट है कि IMF में प्रशासनिक फेरबदल, असल में एक रणनीतिक कदम है, जिसके जरिए भारत न केवल पाकिस्तान को आर्थिक चोट देना चाहता है, बल्कि वैश्विक संस्थाओं में अपने प्रभाव को भी मजबूत करना चाहता है.