सर्दियों की एक सुबह थी. ईरान की राजधानी तेहरान में सड़कें लोगों से भरी थीं. लेकिन ये भीड़ किसी त्योहार की नहीं, बल्कि एक क्रांति की थी. सिर पर काली पगड़ी बांधे एक शख्स, जिसकी आंखों में इस्लामिक राज की आग थी- वो शख्स था अयातुल्ला खुमैनी.
जैसे ही शाह रजा पहलवी का पतन हुआ, ईरान बदल चुका था. और इसी पल से बदल गई इजरायल के साथ उसके संबंधों की कहानी.
इजराइल ने ईरान के रणनीतिक ठिकानों पर जो हमला किया है, उसमें कई वैज्ञानिक और कमांडर मारे गए हैं. इजराइल का कहना है कि हमला सिर्फ सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाकर किया गया. वहीं, ईरान ने जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है. ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने कहा है कि 'इसका जवाब जरूर देंगे.'
1948 में जब इजरायल बना, अरब देशों ने उसका विरोध किया. लेकिन ईरान ने 1950 में इजरायल को एक देश के रूप में मान्यता दे दी थी.
दोनों देशों के बीच न सिर्फ कूटनीतिक संबंध थे बल्कि व्यापार, सैन्य सहयोग और तेल समझौते भी थे. लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति ने सारी तस्वीर पलट दी.
ईरान अब एक शिया इस्लामी गणराज्य बन चुका था- एक ऐसा राष्ट्र, जो खुद को इस्लामी दुनिया का रहनुमा मानता था.
और फिर, अयातुल्ला खुमैनी ने इजरायल को 'शैतान' कह दिया. यहां से शुरू हुई दुश्मनी की कहानी जो अब तक खून और बारूद से लिखी जा रही है.
ईरान मानता है कि इजरायल ने फिलिस्तीन पर जबरन कब्जा किया है और उसे खत्म कर देना चाहिए. वहीं इजरायल, जो यहूदी राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है, ईरान को सबसे बड़ा खतरा मानता है.
इजरायल के लिए ये सिर्फ एक सुरक्षा की लड़ाई नहीं है, ये उसके अस्तित्व की लड़ाई है. और ईरान के लिए ये सिर्फ एक धार्मिक मामला नहीं, बल्कि वर्चस्व की जंग है.
कई सालों से ये लड़ाई सीधे मैदान में नहीं लड़ी जा रही, बल्कि छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) के जरिये लड़ी जा रही है.
ईरान पर हिज्बुल्लाह, हमास, इस्लामिक जिहाद और शिया मिलिशिया जैसे संगठनों को तैयार करने के आरोप लगते रहते हैं. ये संगठन इजरायल पर रॉकेट, मिसाइल और आत्मघाती हमले करते रहते हैं.
इजरायल भी पीछे नहीं रहता. वो लेबनान, गजा और सीरिया में ईरान समर्थित ठिकानों पर हवाई हमले करता है. ईरानी वैज्ञानिकों की रहस्यमयी हत्याएं और साइबर हमले-ये सब उसी छद्म युद्ध का हिस्सा हैं.
2020 के दशक में इजरायल की सबसे बड़ी चिंता है-ईरान का परमाणु कार्यक्रम. भले ही ईरान दावा करता है कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम शांति के लिए है, लेकिन इजरायल मानता है कि ईरान गुपचुप तरीके से बम बना रहा है.
इजरायल का सुरक्षा सिद्धांत साफ है-'कोई भी दुश्मन देश परमाणु हथियार न बनाए.' इसी सिद्धांत के तहत इजरायल पहले इराक और फिर सीरिया के न्यूक्लियर रिएक्टर नष्ट कर चुका है. अब नंबर ईरान का है.
अप्रैल 2024-इजरायल ने दमिश्क में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हमला कर दिया. ईरान के कई सैन्य अधिकारी मारे गए. जवाब में 13 अप्रैल को ईरान ने इतिहास में पहली बार सीधे इजरायल पर 300 से ज्यादा ड्रोन और मिसाइलें दागीं. ये हमला दुनिया के लिए एक चौंकाने वाला संदेश था-अब दुश्मनी छुपी नहीं रही, वो खुले में आ गई है.
अमेरिका और यूरोप खुलकर इजरायल के साथ हैं. वहीं रूस और चीन, ईरान के साथ दिखते हैं-चाहे खुले में न भी हों, लेकिन छाया की तरह पीछे जरूर खड़े हैं.
अरब देश कभी ईरान के खिलाफ खड़े होते हैं, तो कभी तटस्थ रहते हैं. सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों ने अब इजरायल से औपचारिक संबंध बना लिए हैं, जो ईरान के लिए एक और झटका है.
फिलहाल हालात ये संकेत नहीं देते कि ये लड़ाई कभी थमेगी. जानकारों का मानना है कि धर्म, राजनीति, वर्चस्व और सुरक्षा-चारों ऐसे मसले हैं जिन पर कभी सहमति बन ही नहीं सकती. जब तक फिलिस्तीन का मुद्दा हल नहीं होता और ईरान अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम से पीछे नहीं हटता, तब तक ये दुश्मनी जारी रहेगी.
जानकारों के मुताबिक, इजरायल और ईरान दोनों ये अच्छी तरह समझते हैं कि एक बड़ा युद्ध पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को तबाह कर सकता है, खासतौर पर तेल-गैस की आपूर्ति पर इसका असर पड़ेगा. इसलिए वे सीमित हमलों, छद्म युद्ध और साइबर लड़ाइयों में उलझे रहेंगे.
शब्दों से शुरू हुई ये जंग अब मिसाइलों और ड्रोन्स की भाषा बोल रही है. और जब तक इस कहानी के किरदार अपने-अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटते, तब तक ये कहानी चलती रहेगी.