अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने यूनिवर्सिटी-काॅलेज में नस्लीय और जातीय आधार पर एडमिशन दिए जाने पर रोक लगा दी है. गुरुवार 29 जून को सुनाए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए 'नस्ल' को आधार नहीं माना जाएगा.
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने बहुमत की राय में लिखा, 'छात्र के साथ, एक व्यक्ति के रूप में, उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए, नस्ल के आधार पर नहीं.' हार्वर्ड और यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलिना जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से जुड़े इस मामले में कोर्ट ने कहा, 'ऐसे एडमिशन प्रोग्राम की सख्त जांच होनी चाहिए.'
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना की है.
NDTV ने AFP के हवाले से लिखा है कि 'एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस (SFA) ने देश में उच्च शिक्षा के सबसे पुराने निजी और सार्वजनिक संस्थानों, खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और नॉर्थ कैरोलिना यूनिवर्सिटी (UNC) पर उनकी एडमिशन की नीतियों को लेकर मुकदमा दायर किया था.'
सुप्रीम कोर्ट ने SFA का पक्ष लेते हुए अपने फैसले में कहा कि यूनिवर्सिटी किसी आवेदक के व्यक्तिगत अनुभव पर विचार करने के लिए स्वतंत्र है. चीफ जस्टिस ने फैसले में लिखा, 'मुख्य रूप से इस आधार पर निर्णय लेना कि आवेदक गोरा है, काला है या अन्य है, ये अपने आप में नस्लीय भेदभाव है. हमारा संवैधानिक इतिहास उस विकल्प को बर्दाश्त नहीं करता है.'
भारत में SC-ST, OBC और आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के छात्रों को मिलने वाले आरक्षण की तरह अमेरिका में नस्लीय असमानता के आधार पर आरक्षण दिया जाता था. ये प्रथा अब खत्म कर दी गई. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का समर्थन भी हो रहा है और विरोध भी.
इस ऐतिहासिक फैसले ने दशकों से चली आ रही नीति को खत्म कर दिया है. इसे अमेरिकी शिक्षा तंत्र में सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक बताया जा रहा है. पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने इस फैसले का समर्थन किया है. उन्होंने दावा किया कि नीति को रद्द करने का निर्णय अमेरिका को बाकी दुनिया के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाएगा.
राष्ट्रपति जो बाइडन और अमेरिका के शिक्षा विभाग ने इसकी आलोचना की है. अमेरिका में भारतीय मूल के सांसद रो खन्ना ने इस फैसले की आलोचना की और इसे 'अन्याय' बताया. दूसरी ओर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने भी इस फैसले की आलोचना की है.
मिशेल ओबामा ने कहा, 'मेरा दिल किसी भी ऐसे युवा के लिए टूट जाता है, जो सोच रहा है कि उनका भविष्य क्या है और उनके लिए किस तरह के मौके खुले हैं.' बराक ओबामा ने अपने ट्विटर पर मिशेल ओबामा की पोस्ट शेयर करते हुए अपनी राय रखी.
बराक ओबामा ने लिखा, 'सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के मद्देनजर, हमारे प्रयासों को दोगुना करने का समय आ गया है.' उन्होंने लिखा, 'इस तरह की कार्रवाई कभी भी एक अधिक न्यायसंगत समाज की ओर अभियान में एक पूर्ण उत्तर नहीं थी. लेकिन छात्रों की पीढ़ियों के लिए, जिन्हें अमेरिका के अधिकांश प्रमुख संस्थानों से व्यवस्थित रूप से बाहर रखा गया था, उन्हें इस नीति ने यह दिखाने का मौका दिया कि हम भी उस सीट के हकदार हैं.'