हिंडनबर्ग रिपोर्ट के एक साल पूरे हो चुके हैं. पिछले साल 24 जनवरी, 2023 को शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग ने अदाणी ग्रुप के ऊपर तमाम आरोपों के साथ एक रिपोर्ट पब्लिश की थी.
इस रिपोर्ट के बाद अदाणी ग्रुप ने जबरदस्त उतार-चढ़ाव देखा. रिपोर्ट के बाद अदाणी ग्रुप पर चौतरफा हमले हुए थे, लेकिन आज ग्रुप बेहद मजबूती के साथ निकलकर सामने आया है.
इस मौके पर ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी ने बीती एक साल की यात्रा पर लेख लिखा है. इसमें उन्होंने अपने अनुभव, चुनौतियों और इनसे जूझने के तौर-तरीकों पर चर्चा की है.
उन्होंने लिखा, 'स्वघोषित रिसर्च रिपोर्ट में ऐसे आरोप लगाए गए थे, जो मेरे विरोधी मीडिया में अपने दोस्तों की मदद से लंबे वक्त से लगाते रहे हैं. सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी से बेहद चालाकी से आधी-अधूरी बातों को आपस में गूंथा गया.'
उन्होंने आगे लिखा, 'हमारे खिलाफ झूठ और आधारहीन आरोप लगाया जाना कोई नया नहीं है. एक समग्र प्रतिक्रिया देने के बाद मैंने इसके बारे में सोचना बंद कर दिया. लेकिन जैसा कहते हैं कि जब तक सच अपने जूते के फीते बांध रहा होता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया घूम चुका होता है. मैं सच्चाई की ताकत पर बड़ा हुआ हूं, लेकिन ये मेरे लिए झूठ की ताकत से जुड़ी सीख थी.'
'शॉर्ट सेलिंग का असर आमतौर पर फाइनेंशियल मार्केट तक ही सीमित रहता है, लेकिन ये दोतरफा हमला था; फाइनेंशियल के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्र में भी आरोप लगाए गए. ये हमारे पोर्टफोलियो के मार्केट कैप के एक बड़े हिस्से को खत्म करने के लिए पर्याप्त थे. कैपिटल मार्केट तार्किक से ज्यादा भावनात्मक होते हैं, मुझे दुख इस बात से ज्यादा होता है कि कई छोटे निवेशकों को भी अपनी बचत से हाथ धोना पड़ा.'
उन्होंने कहा, 'अगर हमारे विरोधी सफल हो जाते तो इसका असर कई अहम इंफ्रास्ट्रक्चर एसेट्स, बंदरगाह और एयरपोर्ट से लेकर पावर सप्लाई तक पड़ता, ये किसी भी देश के लिए घातक हो सकता है. लेकिन हमारी मजबूत एसेट्स, तेज-तर्रार ऑपरेशंस और हाई क्वालिटी डिस्क्लोजर्स, बेहतर जानकारी रखने वाली फाइनेंशियल कम्युनिटी ने हमारा साथ नहीं छोड़ा और मजबूती से हमारे साथ खड़ी रही.'
गौतम अदाणी लिखते हैं, 'इस युद्ध में हमारा सबसे बड़ा हथियार पर्याप्त लिक्विडिटी थी. हमारे 30,000 करोड़ रुपये के रिजर्व को और मजबूत करने के लिए हमने 40,000 करोड़ रुपये और जुटाए, जो हमारी अगले दो साल की डेट रीपेमेंट के बराबर थे. ये पैसा हमने अपनी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर जुटाया. इसके खरीदारों में GQG पार्टनर्स और QIA जैसे दिग्गज शामिल थे. इसके बाद हमने 17,500 करोड़ रुपये की मार्जिन लिंक्ड फाइनेंसिंग की प्रीपेमेंट कर अपने पोर्टफोलियो को बाजार की अनिश्चित्ताओं से सुरक्षित कर लिया. इस दौरान मैंने अपनी लीडरशिप टीम को बिजनेस पर फोकस करने के लिए कहा, जिसके FY24 के पहले हाफ में शानदार नतीजे रहे.'
हमने इस दौरान एक जोरदार एंगेजमेंट प्रोग्राम भी चलाया, जिसके तहत हमने अपने हिस्सेदारों से बातचीत की. शुरुआती 150 दिनों में ही हमारी फाइनेंस टीम ने दुनियाभर में 300 मीटिंग कीं. इसके चलते 104 एंटिटीज में 9 रेटिंग एजेंसीज ने रेटिंग्स बरकरार रखीं.
उन्होंने कहा, 'हमने अपना ध्यान पारदर्शी ढंग से तथ्यों को सामने रखने और हमारा पक्ष पेश करने पर लगाया. इससे हमारे ग्रुप के खिलाफ चलाए जा रहे नेगेटिव कैंपेन का प्रभाव कमजोर हुआ. इस चुनौतीभरे साल में भी हमारे शेयरहोल्डर्स में 43% का इजाफा हुआ. इस दौरान ग्रुप ने ग्रोथ मोमेंटम बनाए रखा और कई अहम प्रोजेक्ट लॉन्च किए.'
पलटकर देखूं तो एक कमी ये रही कि हमने अपने आउटरीच मैकेनिज्म पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं किया. हमारी फाइनेंस कम्युनिटी के बाहर बहुत कम लोग ये जानते थे कि अदाणी ग्रुप कितने बड़े स्तर और कितनी गुणवत्ता वाला काम कर रहा है. जबकि हम ये मानते रहे कि हमारे नॉन-फाइनेंशियल स्टेकहोल्डर्स भी हमारे बारे में जानते हैं. इस अनुभव ने इनके साथ प्रभावी ढंग से व्यवहार करने की जरूरत पर जोर दिया है.
बीते साल के कानूनी दांव-पेंच ने हमें कई अहम सीख दी हैं. हमें मजबूत बनाया है और भारतीय संस्थानों में हमारे विश्वास को दोहराया है. हमारे ऊपर ये हमला, जिसपर हमारी मजबूत प्रतिक्रिया बेशक एक केस स्टडी है. मुझे अपनी सीख साझा करनी जरूरी थी, क्योंकि आज हम हैं, कल कोई और सकता है.
आखिर में गौतम अदाणी लिखते हैं, 'मैं इस भ्रम में नहीं हूं कि हमारे ऊपर इस तरह के हमले अब खत्म हो जाएंगे. मेरा मानना है कि हम इस अनुभव से मजबूती के साथ उबरकर सामने आए हैं.'