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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विदर्भ फैक्टर का पेच, कम नहीं हैं चुनौतियां!

नागपुर, जो इस क्षेत्र का प्रमुख शहरी केंद्र है, RSS का मुख्यालय भी है. इसकी सियासी अहमियत का अंदाजा हर पार्टी को है.
NDTV Profit हिंदीजीतेंद्र दीक्षित
NDTV Profit हिंदी11:38 AM IST, 03 Sep 2024NDTV Profit हिंदी
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महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में कहा जाता है कि जो विदर्भ जीतता है, वही राज्य पर राज करता है. आज महाराष्ट्र की ज्यादातर प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का नेतृत्व विदर्भ के नेताओं के हाथ में है, जैसे कि चंद्रशेखर बावनकुले (BJP) और नाना पटोले (कांग्रेस). उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार भी विदर्भ से आते हैं.

नागपुर, जो इस क्षेत्र का प्रमुख शहरी केंद्र है, RSS का मुख्यालय भी है. महाराष्ट्र के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित इस इलाके की सियासी अहमियत चुनावों में तीव्र मुकाबले का कारण बनती है. आइए नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले विदर्भ की जमीनी स्थिति पर नजर डालते हैं.

62 सीटें, किसका दबदबा?

विदर्भ में 10 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें रामटेक, भंडारा-गोंदिया, गढ़चिरौली-चिमूर, अकोला, यवतमाल-वाशीम, चंद्रपुर, वर्धा, अमरावती, बुलढाणा और नागपुर शामिल हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को झटका लगा था. 10 में से सात सीटें विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी ने जीत ली थीं. BJP के दिग्गज नेता, जैसे सुधीर मुनगंटीवार और नवनीत राणा, हार का सामना करना पड़ा था.

अगर इन सभी लोकसभा सीटों को विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से विभाजित किया जाए, तो इस क्षेत्र में कुल 62 विधानसभा सीटें बनती हैं. 2019 के विधानसभा चुनावों में, महायुति ने 42 सीटें जीतीं जबकि MVA 15 सीटों पर सफल रही.

लोकसभा परिणामों को विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से देखने पर महायुति की स्थिति बेहद कमजोर नजर आती है. महायुति के उम्मीदवार केवल 22 सीटों पर आगे थे, जबकि MVA 35 सीटों पर आगे थी. कुल वोटों में, महायुति को 41.58% वोट मिले, लेकिन MVA को 44.82% वोट मिले. हालांकि 2019 के विधानसभा चुनावों में महायुति का वोट शेयर अधिक था.

विदर्भ की राजनीति

विदर्भ की राजनीति की एक खासियत यह है कि चुनावी मुकाबले मुख्य रूप से दो राष्ट्रीय पार्टियों, BJP और कांग्रेस, के बीच होते हैं. क्षेत्रीय पार्टियां, जैसे शिवसेना, NCP, या MNS, विदर्भ में अधिक प्रभाव नहीं बना पाई हैं.

2014 तक, यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, लेकिन पिछले दस वर्षों में BJP ने विदर्भ में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया. नागपुर मेट्रो जैसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के अलावा, इस क्षेत्र में कई शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थान भी स्थापित किए गए. गढ़चिरौली, भंडारा, गोंदिया, और चंद्रपुर जैसे जिले कभी नक्सलवाद के केंद्र थे.

हालांकि, 2014 की फडणवीस सरकार ने केंद्रीय बलों के सहयोग से इस विद्रोह को सख्ती से कुचल दिया, और आज अधिकांश जिलों को 'नक्सल-मुक्त' घोषित कर दिया गया है. माओवादियों के खिलाफ इस बड़ी जीत को BJP इस क्षेत्र में अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है. नक्सलियों के खत्म होने से यह क्षेत्र उद्योगों की स्थापना के लिए अनुकूल हो गया है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है.

किसानों की नाराजगी

लोकसभा चुनावों में महायुति के खराब प्रदर्शन का एक बड़ा कारण किसानों की नाराजगी थी. इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में किसान सोयाबीन और कपास का उत्पादन करते हैं. उनकी उपज के लिए अच्छी समर्थन मूल्य देकर, महायुति सरकार उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश कर रही है. मतदाता सूची में गड़बड़ियों के कारण महायुति की प्रमुख चिंताओं में से एक है.

2019 के चुनावों में जिन मतदाताओं ने वोट दिया था, उनके नाम वर्तमान सूची से गायब हैं. BJP ने अब मतदाता नामांकन अभियान शुरू किया है. पार्टी इस क्षेत्र के अपने दिग्गज नेताओं, जैसे नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस की छवि पर अपनी चुनावी कामयाबी की उम्मीद लगा रही है.

जहां BJP लोकसभा चुनावों के दौरान अपने प्रदर्शन के प्रभाव को उलटने की रणनीति बना रही है, वहीं कांग्रेस अपनी सफलता से उत्साहित है. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने महाराष्ट्र में केवल एक सीट जीती थी, लेकिन 2024 में यह 13 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. नाना पटोले के समर्थक उन्हें पहले से ही 'CM इन वेटिंग' कहने लगे हैं.

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