राजनीतिक पार्टियों को चंदा देना केवल एक राजनीतिक समर्थन का माध्यम नहीं रह गया है, बल्कि ये अब टैक्स बचाने का एक रास्ता भी बन गया है. पिछले कुछ हफ्तों में, हाई-सैलरीड लोगों के बीच टैक्स बचाने के इस नए तरीके को लेकर चर्चा बढ़ी है. हालांकि, ये प्रावधान पहले से ही इनकम टैक्स एक्ट, 1961 की धारा 80GGC के तहत मौजूद है.
ये प्रावधान उन डोनेशन्स पर टैक्स कटौती की सुविधा देता है, जो किसी व्यक्ति द्वारा राजनीतिक दलों या किसी भी इलेक्टोरल ट्रस्ट को दिए जाते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वो राजनीतिक दल, रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट, 1951 की धारा 29A के तहत रजिस्टर हो.
ये सवाल स्वाभाविक है कि इसमें नया क्या है? ये प्रावधान कई वर्षों से मौजूद है और समय-समय पर इसमें संशोधन भी हुए हैं. लेकिन अब, इस टैक्स बचत के तरीके में 'कैशबैक' जैसा फायदा भी देखा जा रहा है.
बीते कुछ वर्षों में, कई हाई-सैलरीड लोग इस प्रावधान का इस्तेमाल टैक्स बचाने के लिए कर रहे थे. टैक्स एक्सपर्ट अमित पटेल के अनुसार, पहले फर्जी या संदिग्ध चैरिटेबल ट्रस्ट को डोनेशन देकर 80G के तहत टैक्स कटौती का फायदा लिया जाता था, लेकिन अब ये ट्रेंड सीधे राजनीतिक दलों तक पहुंच चुका है. साथ ही, डोनेशन रिसीवर की वैधता साबित करना बेहद मुश्किल हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित करने के बाद इस ट्रेंड ने जोर पकड़ा. जबकि इलेक्टोरल बॉन्ड पारदर्शी नहीं थे, लेकिन अब हाई-सैलरीड लोग इस प्रावधान का इस्तेमाल टैक्स चोरी के लिए कर रहे हैं.
पिछले दो वर्षों में, कुछ एजेंट्स और दलाल इस प्रक्रिया में शामिल हुए हैं, जो खासतौर पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए काम कर रहे हैं. ये एजेंट 5-7.5% की कमीशन दर पर ये सेवा प्रदान कर रहे हैं.
इस प्रक्रिया को समझते हैं:
मान लीजिए कि कोई व्यक्ति हर साल 10 लाख रुपये का डोनेशन देना चाहता है.
वो एक एजेंट से संपर्क करता है, जो इस प्रक्रिया में मदद करता है.
पैसा बैंकिंग चैनल के माध्यम से राजनीतिक दल के खाते में ट्रांसफर किया जाता है.
5-7.5% का कमीशन काटकर बाकी रकम नकद में व्यक्ति को लौटा दी जाती है.
अगर कमीशन 5% है, तो व्यक्ति को 9.5 लाख रुपये वापस मिल जाते हैं और उसे 3.5-3.9 लाख रुपये की टैक्स बचत भी हो जाती है. नकद राशि का इस्तेमाल रोजमर्रा के खर्चों में किया जाता है और टैक्स डिपार्टमेंट की नजर से ये बचा रहता है.
मौजूदा टैक्स नियमों के तहत, कुल टैक्स कटौती व्यक्ति की कुल आय तक सीमित होती है. ये भी आवश्यक है कि भुगतान व्यक्ति के बैंक खाते से राजनीतिक दल के बैंक खाते में बैंकिंग चैनल (नेट बैंकिंग, क्रेडिट/डेबिट कार्ड, चेक, डिमांड ड्राफ्ट आदि) के माध्यम से किया जाए. इस कटौती का दावा करने के लिए इनकम टैक्स विभाग को भुगतान की रसीद प्रस्तुत करनी होती है.
हाल के वर्षों में, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कुछ लोगों को इस प्रक्रिया में धोखा भी दिया गया है. ऐसा तब हुआ जब टैक्स अधिकारियों ने संबंधित दस्तावेज मांगे और ये सामने आया कि कुछ राजनीतिक दल धारा 29A के तहत मान्यता प्राप्त नहीं थे.
टैक्स डिपार्टमेंट पहले ही 80G के दुरुपयोग को रोकने के लिए कार्रवाई कर चुका है और टैक्सपेयर्स के पुराने असेसमेंट दोबारा खोले गए हैं. इस मामले में भी ऐसा हो सकता है.
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, भारत में 57 क्षेत्रीय पार्टियां पंजीकृत हैं, जिनमें से 28 पार्टियों ने 20,000 रुपये से अधिक की डोनेशन की घोषणा की है. वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 216.76 करोड़ रुपये के डोनेशन 2,119 डोनर खातों से आए.
इसी अवधि में, 1,827 व्यक्तियों ने क्षेत्रीय दलों को और 8,567 व्यक्तियों ने राष्ट्रीय दलों को दान दिया. इस रिपोर्ट में BRS, TDP, DMK, CPI और अन्य क्षेत्रीय दलों को सबसे ज्यादा डोनेशन प्राप्त करने वाला बताया गया है.
राजनीतिक दलों को प्राप्त डोनेशन टैक्स मुक्त होते हैं, जिससे इस प्रावधान का दुरुपयोग बढ़ रहा है. टैक्स एक्सपर्ट TP ओस्टवाल के अनुसार, 'राजनीतिक दलों की इस छूट को सीमित करना जरूरी है. उन्हें चैरिटेबल ट्रस्ट की तरह 70-80% धनराशि राजनीतिक उद्देश्यों पर खर्च करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए.'
इसके अलावा, सरकार को राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन और उनके खातों की समीक्षा करनी चाहिए. वर्तमान में, बड़ी और राष्ट्रीय पार्टियां इस तरह की टैक्स बचत के लिए छोटे क्षेत्रीय दलों का उपयोग कर रही हैं.
हाई टैक्स स्लैब के कारण, हाई-सैलरीड व्यक्ति इस प्रावधान का दुरुपयोग कर रहे हैं. कंपनियों पर पहले से ही टैक्स लगता है, फिर उनके द्वारा वितरित डिविडेंड पर भी टैक्स लिया जाता है. इन सभी कारणों से टैक्स का बोझ बढ़ता जा रहा है.
हो सकता है कि अब वित्त मंत्री को हाई-सैलरीड लोगों के लिए अधिकतम टैक्स दर को कम करने पर विचार करना पड़े. साथ ही, राजनीतिक दलों को टैक्स से पूरी तरह छूट देने की व्यवस्था पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत है ताकि इस प्रावधान के दुरुपयोग को रोका जा सके.