हर साल लोग इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Return) फाइल करते हैं. अक्सर इससे टैक्सपेयर्स को तनाव भी हो जाता है. सैलरी वाले लोगों के लिए अहम है कि वो टैक्स फाइलिंग शुरू करने से पहले सभी जरूरी डिटेल्स को तैयार कर लें. इससे पूरी प्रक्रिया आसान हो जाएगी. इससे ये सुनिश्चित होगा कि टैक्स रिटर्न में दी गईं डिटेल्स सही हैं. आइए जानते हैं कि सैलरीड लोगों को किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए.
अगर किसी व्यक्ति ने नौकरी बदली है, तो जो पहली चीज हर सैलरीड टैक्सपेयर को इकट्ठा करनी है, वो है फॉर्म 16. ये उस पूरी डिटेल्स का आधार है, जिसे व्यक्ति को टैक्स रिटर्न में डालना होता है. ये इसे बेहद अहम दस्तावेज बनाता है. फॉर्म 16 में व्यक्ति को कमाई गई इनकम की सभी डिटेल्स के साथ वो सारे डिडक्शन मिलेंगे, जिनके लिए वो क्लेम कर सकते हैं. इस फॉर्म में व्यक्ति को उसकी सैलरी के लिए किए गए सभी टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (TDS) की डिटेल्स भी मिलती हैं. इस तरह इससे उस राशि का प्रूफ भी मिलता है, जिसका टैक्स के तौर पर भुगतान किया गया है. कर्मचारी को फॉर्म 16 में जिक्र की गई डिटेल्स को चेक करना होता है. उसे देखना होगा कि ये कमाई गई राशि से मेल खाती है या नहीं.
मौजूदा समय में, ज्यादातर टैक्सपेयर्स ओल्ड टैक्स रिजीम में ही हैं. बहुत कम ही न्यू टैक्स रिजीम में आए हैं. FY22-23 के लिए ऐसी उम्मीद है कि वो ओल्ड टैक्स रिजीम के तहत ही अपना रिटर्न फाइल करेंगे. न्यू टैक्स रिजीम मौजूदा वित्त वर्ष के लिए ही लागू है. जिन लोगों के पास हाउसिंग लोन है और वो इसके तहत बेनेफिट क्लेम करने जा रहे हैं, उन्हें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि वो अपने बैंक या वित्तीय संस्थान से हाउसिंग लोन पर ब्याज और कैपिटल रिपेमेंट सर्टिफिकेट लें. ये उस राशि का प्रूफ है, जिसे आप डिडक्शन के तौर पर क्लेम कर सकते हैं और इससे आपको टैक्स में इस्तेमाल की जाने वाली राशि के बारे में अंदाजा मिल जाएगा.
बहुत से लोगों का बैंकों में जमा और दूसरा निवेश होता है, जहां से कुछ इनकम आती है. इसे इनकम टैक्स रिटर्न में दिखाना होता है और इन डिटेल्स को हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका इंट्रेस्ट सर्टिफिकेट लेना होता है. इससे काम आसान हो जाता है, क्योंकि इसमें सेविंग्स बैंक इंट्रेस्ट के ब्रेकअप के साथ जमा पर कमाया गया दूसरा ब्याज भी होगा. तो, इसे सही दिखाया जा सकेगा. सेविंग्स बैंक अकाउंट पर कमाए गए ब्याज पर सालाना 10,000 रुपये तक का डिडक्शन है, तो इसे क्लेम किया जाना चाहिए. फॉर्म 16A में इन जमा पर TDS दिखेगा, जिससे ये सुनिश्चित होगा कि क्लेम करने वाले टैक्स क्रेडिट में भी सही राशि दिख सके.
व्यक्ति की कई तरह की इनकम हो सकती हैं. इनमें कुछ निवेश जैसे म्यूचुअल फंड या डायरेक्ट इक्विटी से डिविडेंड जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं. इस इनकम पर कुल इनकम और TDS पता करने के लिए कंपनी या म्यूचुअल फंड से जानकारी की जरूरत होती है. इसमें कुछ छोटी इनकम भी शामिल हो सकती है, जो कुछ दूसरे छोटे-मोटे काम के जरिए कमाई गई है. इसके अलावा निवेश और एसेट्स की बिक्री के जरिए कमाए गए कैपिटल गेंस को भी मौजूद होना चाहिए. ऐसे कैपिटल गेंस की डिटेल्स ब्रोकर या म्यूचुअल फंड से लेनी होगी.
ये महत्वपूर्ण है कि एक बार जब इन डिटेल्स को जमा कर लिया गया है, तो उसे AIS के साथ टैली करना होगा. AIS इनकम टैक्स विभाग के पास उपलब्ध होता है. टैक्स रिटर्न और AIS में दी गई डिटेल्स में फर्क नहीं होना चाहिए, वरना टैक्सपेयर को नोटिस मिल सकता है. AIS में सभी एंट्रीज को चेक करना चाहिए. इसके बाद ये सुनिश्चित करें कि जो कलेक्ट हुआ है, उसके साथ ये मेल खाए और इससे रिटर्न की भी जल्द प्रोसेसिंग होगी. गड़बड़ी के मामले में, इसे टैक्स विभाग की जानकारी में लाकर सही करना होगा.
(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)