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ETF में निवेश से पहले समझ लें ट्रेडिंग प्राइस का पेंच, वरना हो सकता है नुकसान

किसी ETF की ट्रेडिंग प्राइस वो कीमत है, जिस पर बाजार में कारोबार के दौरान उसकी यूनिट्स की खरीद-बिक्री होती है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी02:36 PM IST, 10 Aug 2023NDTV Profit हिंदी
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म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में निवेश करने वाले छोटे निवेशकों में एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) काफी लोकप्रिय हैं. एक्सचेंज पर ट्रेडिंग होने की वजह से इससे इनमें निवेश करना और प्रॉफिट बुक करना, दोनों ही आसान माना जाता है. लेकिन, ETF में निवेश करने से पहले इनके प्राइसिंग मैकेनिज्म को अच्छी तरह समझ लेना जरूरी है, वरना आपको अपने निवेश पर नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. लेकिन ETF की प्राइसिंग को समझने से पहले जान लेते हैं कि ETF कहते किसे हैं.

ETF क्या है और क्या हैं इसमें निवेश के फायदे

 एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) के नाम से जाहिर है कि ये ऐसे म्यूचुअल फंड हैं, जिनकी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टिंग और ट्रेडिंग होती है. यही वजह है कि इनमें पैसे लगाना और निकालना आसान है. ट्रेडिशनल म्यूचुअल फंड की तुलना में ETF में निवेश ज्यादा कॉस्ट इफेक्टिव (cost-effective) भी माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि आमतौर ETF निफ्टी 50, सेंसेक्स जैसे किसी प्रमुख इंडेक्स, सेक्टोरल इंडेक्स की नकल (Mimic) करते हैं. वहीं, गोल्ड ETF फिजिकल गोल्ड की प्राइस को फॉलो करते हैं. ये सभी पैसिव मैनेजमेंट वाले फंड हैं. इसलिए इनकी मैनेजमेंट कॉस्ट, जिसे टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) कहते हैं, काफी कम रहती है. 

ETF की ट्रेडिंग प्राइस और NAV में क्या फर्क है? 

किसी ETF की ट्रेडिंग प्राइस वो कीमत है, जिस पर बाजार में कारोबार के दौरान उसकी यूनिट्स की खरीद-बिक्री होती है. जबकि नेट एसेट वैल्यू (NAV) से उस फंड के परफॉर्मेंस का पता चलता है. NAV का कैलकुलेशन करने के लिए उस ETF की कुल होल्डिंग (शेयर, बॉन्ड, कैश वगैरह) को जोड़कर उसमें से टोटल एक्सपेंस रेशियो (TER) को घटा देते हैं. इस तरह जो आंकड़ा आता है, उसे कुल यूनिट्स की संख्या से भाग देने पर उस फंड की NAV निकल आती है.

ट्रेडिंग प्राइस और NAV में अंतर की वजह 

ETF की ट्रेडिंग प्राइस तय करने में NAV का सबसे बड़ा रोल होता है, लेकिन इसके अलावा कई और फैक्टर्स भी कीमतों पर असर डालते हैं. मिसाल के तौर पर बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव, मार्केट एक्सपेक्टेशंस और फंड यूनिट्स की डिमांड और सप्लाई का असर भी ETF की ट्रेडिंग प्राइस पर पड़ता है. मिसाल के तौर पर अगर किसी ETF की यूनिट्स के खरीदार ज्यादा होंगे और बेचने वाले कम, तो उसकी ट्रेडिंग प्राइस ऊपर जाने की संभावना होगी. वहीं, खरीदार कम और बेचने वाले ज्यादा होंगे, तो ट्रेडिंग प्राइस गिरने के आसार रहेंगे.

बाजार में तेजी से उथल-पुथल का असर 

आम तौर पर स्टेबल मार्केट में यानी स्थिरता के माहौल में ETF की ट्रेडिंग प्राइस और NAV में 1 फीसदी से ज्यादा अंतर नहीं होता, लेकिन बाजार में तेजी से उथल-पुथल होने पर ETF की ट्रेडिंग प्राइस में भी अचानक उतार-चढ़ाव आने लगते हैं. जबकि NAV को एडजस्ट होने में समय लगता है. ऐसी हालत में ETF की खरीद-फरोख्त NAV की तुलना में प्रीमियम या डिस्काउंट पर होने के आसार रहते हैं. सैद्धांतिक तौर पर तो ETF की ट्रेडिंग प्राइस और NAV के बीच 2 फीसदी से ज्यादा अंतर नहीं होना चाहिए.

लेकिन कई बार ये फर्क ज्यादा भी हो जाता हैं. मिसाल के तौर पर 11 अप्रैल 2023 को आईडीबीआई गोल्ड ETF (IDBI Gold ETF) की NAV 5,561.08 रुपये और ट्रेडिंग प्राइस  5,725.10 रुपये थी. यानी NAV की तुलना में ट्रेडिंग प्राइस पूरे 164 रुपये ज्यादा थी. इसी तरह, 15 मार्च 2022 को एडेलवीज ईटीएफ-निफ्टी बैंक (ETF- Edelweiss ETF-Nifty Bank) की ट्रेडिंग प्राइस 3,750 रुपये हो गई थी, जबकि इसकी NAV थी 3,578 रुपये. इस तरह मार्केट प्राइस फंड की NAV से पूरे 172 रुपये अधिक थी. यानी अगर आपने इन तारीखों को ये दोनों ETF खरीदे होते, तो आपको 164 रुपये और 172 रुपये का भारी प्रीमियम चुकाना पड़ता. जिसका सीधा असर आपको मिलने वाले रिटर्न पर पड़ता.

अगर इसका उल्टा हो, यानी मार्केट में खरीदार कम होने की वजह से अगर कोई ETF उसकी NAV के मुकाबले डिस्काउंट पर मिल जाए, तो आपको फायदा भी हो सकता है. लेकिन यहां भी एक पेंच है. हो सकता है आप ETF की यूनिट डिस्काउंट पर खरीद लें, लेकिन इसी तरह अपनी यूनिट बेचते समय उसे कम कीमत पर बेचने का रिस्क भी बना रहेगा. 

क्या है इस रिस्क से बचने का उपाय?

अगर आप थोड़ी सी सावधानी बरतें तो ETF को उसकी NAV के मुकाबले ऊंचे प्रीमियम पर खरीदने या भारी डिस्काउंट पर बेचने से बच सकते हैं. इसके लिए आपको किसी भी ETF की यूनिट्स खरीदने या बेचने से पहले उसकी इंट्रा-डे नेट एसेट वैल्यू यानी i-NAV चेक करनी होगी. सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने निवेशकों का जोखिम कम करने के लिए जुलाई 2022 में इसकी शुरुआत की थी. किसी भी ETF की सामान्य NAV तो अगले दिन मिलती है, लेकिन i-NAV को कारोबारी दिन के दौरान लगभग हर 15 सेकंड पर अपडेट किया जाता है. यानी i-NAV को चेक करके निवेशक जान सकते हैं कि ETF की मौजूदा ट्रेडिंग प्राइस और उसकी NAV में कितना अंतर है, उसमें कितना प्रीमियम या डिस्काउंट चल रहा है. किसी भी ETF की i-NAV चेक करने के लिए आपको उस फंड हाउस की वेबसाइट पर जाना पड़ेगा, जहां आप ताजा i-NAV देखकर निवेश का फैसला कर सकते हैं.  

(Data Source: AMFI, Value Research)

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