पिछले कुछ अरसे के दौरान देश में इक्विटी सेविंग्स फंड (Equity Savings Funds) की तरफ निवेशकों का रुझान बढ़ा है. इसकी बड़ी वजह है मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान इनकम टैक्स के नियमों आए बदलाव.
नए नियमों के मुताबिक 1 अप्रैल 2023 या उसके बाद डेट फंड में किए गए निवेश पर मिले रिटर्न पर स्लैब रेट के हिसाब से इनकम टैक्स देना होगा, फिर आपने उस फंड को चाहे कितने भी समय तक होल्ड किया हो.
डेट फंड पर किसी तरह का इंडेक्सेशन बेनिफिट (Indexation Benefit) भी नहीं मिलेगा. इस बदलाव से पहले डेट फंड को 36 महीने से ज्यादा रखने के बाद बेचने पर अधिकतम 20% टैक्स लगता था. जिन म्यूचुअल फंड्स का 35% से ज्यादा निवेश डेट इंस्ट्रूमेंट्स में हो, वे सभी डेट फंड की कैटेगरी में आते हैं.
टैक्स नियमों में इन बदलावों की वजह से रिटेल निवेशकों में डेट फंड का आकर्षण पहले से कम हुआ है और उनका रुझान इक्विटी सेविंग्स फंड्स की तरफ बढ़ा है. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इक्विटी सेविंग्स फंड को भी डेट फंड्स की तरह ही कम रिस्क वाला निवेश माना जाता है, लेकिन इसमें टैक्स बेनिफिट इक्विटी फंड की तरह मिलते हैं. यही वजह है कि आम निवेशकों में इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है.
इक्विटी सेविंग्स फंड का मतलब है ऐसा हाइब्रिड फंड (Hybrid Fund), जो मुख्य तौर पर इक्विटी में निवेश करने के साथ ही डेट और आर्बिट्राज (arbitrage) में भी इन्वेस्ट करता हो. आर्बिट्राज में निवेश सेफ्टी और रिटर्न के मामले में डेट की तरह होता है, फिर भी असल में वह इक्विटी निवेश ही है.
इक्विटी सेविंग्स फंड का प्योर इक्विटी और आर्बिट्राज का निवेश मिलाकर 65% से ज्यादा हो जाता है. यही वजह है कि इसे इक्विटी फंड्स की कैटेगरी में रखा जाता है. नियमों के तहत किसी भी फंड को टैक्स बेनिफिट के लिहाज से इक्विटी फंड की कैटेगरी में तभी रखा जा सकता है, जब उसका कम से कम 65% हिस्सा भारतीय इक्विटी में लगा हो.
अब हम समझते हैं कि नए टैक्स नियमों ने किस तरह इक्विटी सेविंग्स फंड में निवेश को अधिक फायदेमंद बना दिया है. मान लीजिए आपने इक्विटी सेविंग्स फंड में 1 साल से ज्यादा समय के लिए निवेश किया और आपका कुल रिटर्न 1 लाख रुपये से कम है, तो इक्विटी फंड होने की वजह से आपको इस पर कोई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स नहीं देना पड़ेगा.
अगर रिटर्न 1 लाख रुपये से ज्यादा हुआ, तो भी सिर्फ 10% LTCG टैक्स देना पड़ेगा. इसके अलावा इंडेक्सेशन का बेनिफिट भी मिलेगा. लेकिन वही रकम अगर आपने डेट फंड में लगाई, तो पूरे रिटर्न पर टैक्स स्लैब के हिसाब से 20 या 30% तक टैक्स देना पड़ सकता है.
फिर चाहे आपने फंड को कितने भी समय तक होल्ड किया हो. आपको इस पर इंडेक्सेशन का भी फायदा भी नहीं मिलेगा. इक्विटी फंड में लंबी अवधि तक नियमित निवेश करने पर रिटर्न भी आमतौर पर डेट के मुकाबले अधिक मिलता है, जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे.
इक्विटी सेविंग्स फंड में निवेश के फायदों को समझने के साथ ही इससे जुड़े रिस्क फैक्टर्स को जानना भी जरूरी है. इक्विटी सेविंग्स फंड का 20 से 40% तक निवेश प्योर इक्विटी में होता है. बाकी 60 से 80% निवेश डेट और आर्बिट्राज में बंटा होता है. इक्विटी में एक्सपोजर की वजह से इसमें शॉर्ट टर्म में उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक है. हालांकि प्योर इक्विटी फंड के मुकाबले ये जोखिम कम होता है. यह भी ध्यान में रखें कि इक्विटी सेविंग्स फंड में पैसे लगाने का पूरा लाभ लेने के लिए इसमें लंबी अवधि यानी कम से कम 3 से 5 साल तक निवेश बनाए रखा जरूरी है. इक्विटी और आर्बिट्राज में इनवेस्टमेंट के कारण इक्विटी सेविंग्स फंड का एक्सपेंस रेशियो भी ज्यादा हो सकता है. इन तमाम बातों पर गौर करने के बाद ही कोई भी फैसला करें तो बेहतर रहेगा.
अगर आप तमाम पहलुओं को जानने-समझने के बाद इक्विटी सेविंग्स फंड में निवेश करने पर विचार कर रहे हैं, तो पिछले 3 साल के दौरान सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाले टॉप 10 इक्विटी सेविंग्स फंड के आंकड़े आपकी मदद कर सकते हैं. हालांकि यह जरूर ध्यान रखें कि पिछला प्रदर्शन भविष्य में मिलने वाले रिटर्न की गारंटी नहीं है. इन्हीं फंड्स के पिछले 5 साल के रिटर्न के आंकड़े बताते हैं कि इक्विटी फंड्स के परफॉर्मेंस में उतार-चढ़ाव आना स्वाभाविक है.