यह बात तो ज्यादातर अनुभवी निवेशक जानते हैं, कि इक्विटी में निवेश करना है, तो मार्केट रिस्क का सामना करने की तैयारी रखनी ही पड़ती है. इस जोखिम के बावजूद ऊंचे रिटर्न के लिए बड़ी संख्या में लोग इक्विटी में निवेश करना पसंद करते हैं, फिर वो चाहे सीधे स्टॉक्स में निवेश हो या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स के जरिये किया जाने वाला इन्वेस्टमेंट. इक्विटी में निवेश करते समय कई बार ये कंफ्यूजन भी रहता है कि रिटेल इन्वेस्टर्स को किस सेगमेंट में पैसे लगाने चाहिए? उनके लिए लार्जकैप और मिडकैप ही बेहतर हैं, या ज्यादा मुनाफे के लिए उन्हें स्मॉलकैप और माइक्रोकैप में भी निवेश करना चाहिए? इस सवाल पर आगे और बात करेंगे, लेकिन पहले देखते हैं कि पिछले 10 साल में माइक्रोकैप, स्मॉलकैप, मिडकैप और लार्जकैप के रिटर्न का हाल बताने वाले अलग-अलग इंडेक्स क्या संकेत दे रहे हैं.
क्या सिर्फ रिटर्न के आधार पर करें फैसला ?
ऊपर दिए आंकड़ों से साफ है कि पिछले 10 साल के दौरान कमाई के मामले में निफ्टी माइक्रोकैप 250 इंडेक्स और निफ्टी स्मॉलकैप 250 इंडेक्स ने निफ़्टी मिडकैप इंडेक्स और निफ्टी 100 (लार्जकैप) इंडेक्स को काफी पीछे छोड़ दिया है. यानी औसत सालाना रिटर्न के लिहाज से माइक्रोकैप और स्मॉलकैप, बाकी दोनों इंडेक्स से काफी आगे नजर आ रहे हैं. लेकिन क्या आम निवेशकों को सिर्फ रिटर्न के आधार पर फैसला करते हुए लार्जकैप और मिडकैप के मुकाबले माइक्रो और स्मॉलकैप को प्राथमिकता देनी चाहिए? अगर रिटर्न के साथ ही साथ निवेश से जुड़े रिस्क पर भी विचार करेंगे, तो रिटेल इन्वेस्टर ऐसा नहीं करेंगे. दरअसल, माइक्रोकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स ने रिटर्न भले ही बेहतर दिए हों, लेकिन उनमें निवेश के साथ कई और ऐसी बातें भी जुड़ी हैं, जिनके बारे में जानना जरूरी है.
माइक्रोकैप और स्मॉलकैप में ज्यादा रिटर्न के साथ ही मिडकैप और लार्जकैप के मुकाबले जोखिम भी ज्यादा रहता है. खास तौर पर माइक्रोकैप स्टॉक्स में निवेश का जोखिम तो स्मॉलकैप से भी काफी अधिक होता है. स्मॉल और माइक्रोकैप में निवेश से जुड़े कुछ निगेटिव पहलू भी हैं, जिन पर विचार करना जरूरी है :
1. लिक्विडिटी की कमी: स्मॉल और माइक्रोकैप कंपनियों के शेयर्स में लार्जकैप और मिडकैप के मुकाबले कम ट्रांजैक्शन होते हैं, जिससे शेयरों को खरीदना और बेचना कठिन हो सकता है.
2. अस्थिरता: स्मॉलकैप और माइक्रोकैप स्टॉक्स में अस्थिरता अधिक होती है, जिससे निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ जाता है.
3. अनिश्चित भविष्य : कई बार छोटी कंपनियों, खास तौर पर माइक्रोकैप कंपनियों का भविष्य काफी अनिश्चित होता है. इनमें से कई कंपनियां तो लंबे समय तक बाजार में टिक भी नहीं पातीं. लिहाजा उनके शेयरों में निवेश काफी रिस्की हो जाता है.
5. ट्रैकिंग एरर: स्मॉलकैप और माइक्रोकैप स्टॉक्स में निवेश करने इंडेक्स फंड्स में ट्रैकिंग एरर की आशंका ज्यादा होती है.
मिड और लार्जकैप क्यों बेहतर हैं?
1. ज्यादा स्थिरता और मजबूती: मिडकैप और लार्जकैप स्टॉक्स को स्मॉल और माइक्रोकैप की तुलना में ज्यादा स्थिर और मजबूत माना जाता है.
2. कम जोखिम: मिडकैप और लार्जकैप कंपनियों का आकार स्मॉल और माइक्रोकैप के मुकाबले बड़ा होता है, जिससे इनमें बाजार के उतार-चढ़ाव को सहने की क्षमता अधिक होती है.
3. बेहतर लिक्विडिटी: लार्जकैप और मिडकैप स्टॉक्स में लिक्विडिटी ज्यादा होती है, जिससे इन्हें खरीदने और बेचने में कोई समस्या नहीं होती.
4. ट्रैकिंग एरर कम: लार्जकैप और मिडकैप इंडेक्स को ट्रैक करने वाले फंड्स में ट्रैकिंग एरर स्मॉलकैप और माइक्रोकैप की तुलना में कम होता है.
किसमें निवेश करना चाहिए?
स्मॉलकैप या माइक्रोकैप में निवेश करके ज्यादा रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन इनमें जोखिम काफी अधिक होता है. खास तौर पर माइक्रोकैप में तो रिस्क सबसे ज्यादा रहता है. ऐसे में रिटेल निवेशकों के लिए मिडकैप और लार्जकैप में निवेश करना बेहतर होता है, क्योंकि इनमें स्थिरता और जोखिम कम होता है. आम तौर पर रिटेल निवेशकों को यही सलाह दी जाती है कि वे लार्जकैप और मिडकैप पर ज्यादा फोकस करें और स्मॉलकैप को पोर्टफोलियो में 5-10 फीसदी से ज्यादा जगह न दें. जिन निवेशकों की रिस्क लेने की क्षमता अधिक है और वे ज्यादा रिटर्न के लिए जोखिम उठाना चाहते हैं, उन्हें भी माइक्रोकैप की तुलना में स्मॉलकैप में निवेश करना चाहिए. ज्यादा से ज्यादा वे ऐसे स्मॉलकैप फंड्स का चुनाव कर सकते हैं, जो अपने पोर्टफोलियो में कुछ माइक्रोकैप स्टॉक्स को भी शामिल करते हों. लेकिन याद रखें कि निवेश से जुड़ा हर फैसला करने से पहले जोखिम का आकलन करना जरूरी है.