अगर आप 50 लाख रुपये या उससे ज्यादा कीमत की कोई प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं तो यहां दी गई जानकारी को ध्यान से पढ़ना और समझना आपके लिए बेहद जरूरी है. अगर आपने ऐसा नहीं किया तो, भारी आर्थिक नुकसान उठाने की नौबत भी आ सकती है. दरअसल अगर आप 50 लाख रुपये या उससे ज्यादा कीमत वाली कोई भी प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो आपको प्रॉपर्टी विक्रेता को पेमेंट करते समय बिक्री मूल्य की 1% रकम, TDS काटकर सरकार के पास जमा करानी पड़ती है.
वैसे तो यह नियम आमतौर पर लोगों को मालूम होता है और अगर पता न भी हो, तो प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में मदद करने वाले प्रॉपर्टी एजेंट या वकील इसकी जानकारी दे देते हैं. लेकिन इस नियम से जुड़ी एक बारीकी के बारे में जागरुकता थोड़ी कम है. हम यहां उसी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में बताने जा रहे हैं.
50 लाख रुपये या उससे ज्यादा कीमत वाली प्रॉपर्टी खरीदते समय प्रॉपर्टी वैल्यू का 1% TDS काटने का नियम तो है, लेकिन यह नियम उसी हालत में लागू होता है, जब प्रॉपर्टी बेचने वाले के पास एक वैलिड और एक्टिव पैन नंबर मौजूद हो. यहां ‘वैलिड और एक्टिव पैन’ पर गौर करना जरूरी है.
इसका मतलब ये है कि आप प्रॉपर्टी बेचने वाले के जिस पैन नंबर का डिटेल दे रहे हैं, वह भुगतान करते समय वैलिड और एक्टिव होना चाहिए. अगर आधार से लिंक न होने या किसी भी और कारण से विक्रेता का पैन नंबर, भुगतान के समय वैलिड और एक्टिव नहीं है, तो वैसी हालत में नियमों के तहत TDS की अनिवार्य कटौती 1% से बढ़कर सीधे 20% हो जाती है! यानी अगर आपने प्रॉपर्टी के लिए भुगतान करते समय विक्रेता का पैन नंबर तो लिया, लेकिन उसके पैन की वैलिडिटी चेक नहीं की, तो यह नियम आपके लिए मुश्किल की बड़ी वजह बन सकता है. कैसे, इसे हम एक उदाहरण की मदद से समझते हैं.
मान लीजिए आलोक ने संजय से 60 लाख रुपये में एक घर खरीदा. भुगतान करते समय आलोक ने संजय का पैन डिटेल लिया और 1% TDS काटकर बाकी पैसों का भुगतान कर दिया. इसके बाद आलोक ने काटे गए 1% TDS की रकम को फॉर्म 26QB भरकर संजय के पैन डिटेल के साथ जमा कर दिया. हालांकि भुगतान करते समय संजय का पैन नंबर आधार से लिंक न होने के कारण डी-एक्टिवेट हो चुका था, यानी उस वक्त वो नंबर वैलिड नहीं था. लेकिन आलोक ने भुगतान करते समय संजय के पैन नंबर की वैलिडिटी चेक नहीं की. लिहाजा, उसे इसका पता नहीं चला.
अब ऐसे में आयकर विभाग की तरफ से कुछ दिनों बाद आलोक को सेक्शन 200A के तहत नोटिस दिए जाने के पूरे आसार हैं कि आपने एक निष्क्रिय पैन नंबर वाले व्यक्ति को भुगतान करते समय 1% TDS काटा, जबकि आपको 20% TDS काटकर जमा करना चाहिए था. इसलिए अब आपको बाकी 19% TDS का भुगतान करना होगा. इसके साथ ही आलोक से TDS की बकाया रकम पर 1%/माह की दर से दंडात्मक ब्याज (Penal Interest) का भुगतान करने और सेक्शन 271C के तहत बकाया टैक्स की रकम के बराबर जुर्माना देने की डिमांड भी की जा सकती है.
आयकर विभाग का नोटिस मिलने के बाद आलोक के सामने प्रॉपर्टी बेचने वाले संजय से इसकी भरपाई की मांग करने का विकल्प मौजूद है, क्योंकि संजय ने निष्क्रिय पैन नंबर देकर गलती की थी. लेकिन प्रॉपर्टी का सौदा पूरा हो जाने और भुगतान कर दिए जाने के बाद टैक्स नोटिस में मांगी गई रकम विक्रेता से वसूल पाना आसान नहीं होगा. इसके अलावा इनकम टैक्स के नियमों में भी विक्रेता के पैन नंबर की वैलिडिटी चेक करके सही ढंग से TDS की कटौती करने और फिर उसे जमा कराने की जिम्मेदारी प्रॉपर्टी खरीदने वाले पर डाली गई है. इसीलिए, कम TDS काटने और जमा कराने का नोटिस प्रॉपर्टी के खरीदार को मिलता है, निष्क्रिय पैन नंबर देने वाले को नहीं.
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अगर आपने नोटिस मिलने के बाद विक्रेता को बताया कि उसका पैन निष्क्रिय है, जिसके बाद उसने अपने पैन को फिर से एक्टिव करा लिया, तो भी 1% की बजाय 20% TDS की देनदारी खत्म नहीं हो जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि टीडीएस की देनदारी इस बात पर निर्भर होती है कि भुगतान करते समय विक्रेता के पैन का स्टेटस क्या था. यानी भुगतान के वक्त अगर पैन निष्क्रिय है और बाद में उसका स्टेटस बदलकर ‘वैलिड’ हो भी जाता है, तो भी 20% TDS तो देना ही पड़ेगा.
इसीलिए जरूरी है कि प्रॉपर्टी खरीदते समय या किसी भी और काम के लिए भुगतान करते समय, अगर आपको नियमों के तहत टीडीएस काटकर जमा करने की जिम्मेदारी दी गई है, तो भुगतान करने से पहले, पेमेंट पाने वाले का पैन स्टेटस जरूर चेक कर लें. वरना बाद में आपको आर्थिक नुकसान के साथ ही साथ मानसिक परेशानी का सामना भी करना पड़ सकता है.