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FD में करते हैं निवेश, तो रिटर्न फाइल करते समय इन बातों का रखें ध्यान

टैक्स रिटर्न फाइल करते समय ऐसा अक्सर होता है कि इनकम छूट जाती है या गणना करने में मुश्किल आती है. इसलिए इसे ध्यान से करना जरूरी है, जिससे टैक्स रिटर्न में सही आंकड़ा भरा जा सके. आइए जानते हैं कि इसे कैसे करना चाहिए.
NDTV Profit हिंदीअर्णव पंड्या
NDTV Profit हिंदी07:27 PM IST, 05 Jul 2024NDTV Profit हिंदी
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बहुत से लोगों के पोर्टफोलियो में फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) शामिल होती है. अगर कोई व्यक्ति नियमित तौर पर FD में निवेश नहीं करता है, तो भी ऐसा कई बार देखा जाता है कि वो कुछ समय के लिए बेहतर ब्याज के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) में पैसा डाल देता है. इससे उसे कुछ इनकम हासिल होती है.

लेकिन टैक्स रिटर्न (Income Tax Return) को फाइल करते समय ऐसा अक्सर होता है कि इनकम छूट जाती है या गणना करने में मुश्किल आती है. इसलिए इसे ध्यान से करना जरूरी है जिससे टैक्स रिटर्न में सही आंकड़ा भरा जा सके. आइए जानते हैं कि इसे कैसे करना चाहिए.

फिक्स्ड डिपॉजिट से ब्याज

जब कोई निवेशक फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश करता है तो इनकम बढ़ना शुरू हो जाती है और इसका भुगतान ब्याज के तौर पर होता है. ब्याज दो मुख्य फैक्टर्स पर निर्भर करता है. पहला फिक्स्ड डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज.

दूसरा, कितने समय के लिए डिपॉजिट किया गया है. निवेशक को एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो वित्त वर्ष के दौरान किसी भी समय FD में पैसा लगा सकते हैं. ब्याज का कैलकुलेशन वित्त वर्ष के आखिरी दिन तक करना होगा. इससे ही ये पता चल सकेगा कि कितनी इनकम हुई है.

ब्याज का भुगतान

सबसे बड़ी और आम गलतियों में से एक जो निवेशक करते हैं, उनमें FD से जुड़ा ब्याज शामिल है. जब फिक्स्ड डिपॉजिट की बात आती है तो निवेशक दो तरीकों से ब्याज ले सकता है. एक पेआउट ऑप्शन है जिसमें पेआउट कई अंतराल पर होता है.

दूसरा कम्युलेटिव ऑप्शन है जहां डिपॉजिट की मैच्योरिटी पर ब्याज का भुगतान किया जाता है. पेआउट ऑप्शन में बहुत से टैक्सपेयर उनको मिली राशि को जोड़ लेते हैं और इसे इनकम मान लिया जाता है.

अब मुश्किल उस समय आती है जब पेआउट पीरियड तिमाही के आखिर में नहीं होता है और आखिरी पेआउट फाइनेंशियल ईयर की 31 मार्च को नहीं आता. अगर साल के लिए आखिरी ब्याज को कैलकुलेट किया जाता है और 31 मार्च को भुगतान होता है तो फिर इसमें साल की पूरी अर्निंग्स शामिल होती है.

बैंकों का ब्याज देने का अपना खुद का तरीका होता है और बहुत से लोग उस तारीख के आधार पर पैसा डालते हैं जब डिपॉजिट किया गया था. इससे कुछ समयावधि बच जाती है.

आइए इसे एक उदाहरण के जरिए समझते हैं. पहले मामले को देखें जहां हर तिमाही में डिपॉजिट पर ब्याज का भुगतान होता है. अगर भुगतान किया गया ब्याज 560 रुपये/ तिमाही है, फिर साल के लिए आखिरी भुगतान 31 मार्च को होगा और इस मामले में आगे कोई कमाई नहीं होती है.

इसके मुकाबले अगर 15 मार्च को भुगतान किया गया था तो फिर न सिर्फ साल के लिए कमाए गए ब्याज में पेआउट शामिल होगा. बल्कि 31 मार्च तक बाकी बचे 16 दिनों के लिए जमा ब्याज होगा.

अर्णव पंड्या

(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)

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