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हाई नेटवर्थ निवेशकों का डेट फंड्स पसंदीदा ऑप्शन, लेकिन बदले टैक्स नियमों के बीच सावधानी जरूरी

डेट फंड्स में लंबी मैच्योरिटी प्रोफाइल होती है, जो बहुत से निवेशकों के लिए पसंदीदा विकल्प होता है. लेकिन ये सभी लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है.
NDTV Profit हिंदीअर्णव पंड्या
NDTV Profit हिंदी11:15 AM IST, 26 Aug 2023NDTV Profit हिंदी
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महंगाई दरों में बढ़ोतरी ने एक बार फिर ब्याज दरों में किसी तरह की गिरावट पर विराम लगा दिया है. जहां ये छोटी अवधि में परेशान करने वाला लग सकता है. वहीं ये निवेशकों के लिए भी एक अवसर है कि वो ज्यादा यील्ड वाले निवेश को शामिल करके लंबी अवधि के लिए अपना डेट पोर्टफोलियो तैयार कर सकते हैं.

डेट फंड्स (Debt Funds) में लंबी मैच्योरिटी प्रोफाइल होती है, जो बहुत से निवेशकों के लिए पसंदीदा विकल्प होता है. लेकिन ये सभी लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है. खासतौर पर, हाल ही में डेट फंड्स के लिए टैक्सेशन नियमों में बदलाव के बाद उन लोगों के लिए सही नहीं है, जो ज्यादा टैक्स वाले ब्रैकट में आते हैं.

हाई नेटवर्थ वाले निवेशक

देश में हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल (HNI) की संख्या बहुत ज्यादा है और आम तौर पर उनकी आय ज्यादा रहती है. अन्य निवेशकों की तरह, उन्हें भी उनके पोर्टफोलियो में डेट के एक्सपोजर की जरूरत होती है. ज्यादा ब्याज दरों के माहौल में उनके लिए सही विकल्प डेट फंड्स ही होते हैं, क्योंकि जब ब्याज दरों में बदलाव होगा और गिरावट देखने को मिलेगी, तो वो बेहतर रिटर्न दे सकते हैं.

खासतौर पर ये उन फंड्स के लिए सच है, जिनकी पोर्टफोलियो होल्डिंग्स में लंबी अवधि की मैच्योरिटी होती है. एक्सपर्ट्स और फंड मैनेजर्स का अनुमान है कि 7 साल की मैच्योरिटी वाले इंस्ट्रूमेंट के लिए, यील्ड में हर 100 बेसिस प्वॉइंट्स की गिरावट पर अतिरिक्त 700 बेसिस प्वॉइंट्स वापस मिलेंगे. ये काफी है, क्योंकि इसका मतलब है कि इकोनाॅमी में जब दरें असल में गिरती हैं तब लंबी अवधि के डेट फंड्स में डबल डिजिट का रिटर्न मिल सकता है.

टैक्स की मुश्किल

डेट फंड्स के लिए 1 अप्रैल 2023 से नया टैक्स स्ट्रक्चर लागू है. इसके मुताबिक, फंड में आपकी होल्डिंग कितने लंबे समय से भी है, उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स के तौर पर माना जाएगा और राशि को व्यक्ति की आय में जोड़ा जाएगा और उस पर अधिकतम मार्जिनल रेट पर टैक्स लगाया जाएगा.

इसका मतलब होगा कि जिन लोगों की इनकम बहुत ज्यादा है और वो सबसे ज्यादा स्लैब सरचार्ज का हिस्सा हैं, उन पर टैक्स ऊंची दर पर लगेगा, जो 39% भी हो सकता है. जब इसे डेट फंड रिटर्न पर अप्लाई किया जाता है, तो कुल रिटर्न में बड़ी गिरावट आएगी.

हाइब्रिड एक्सपोजर

एक तरीका, जिससे हाई नेट इन्वेस्टर्स अपना डेट एक्सपोजर पूरा कर सकते हैं, वो है हाइब्रिड रूट के जरिए. इसका फायदा ये है कि फंड्स की कैटेगरी के आधार पर इक्विटी फंड्स पर टैक्स लग सकता है, जहां एक्सपोजर 65% से ज्यादा है.

हाइब्रिड होल्डिंग्स को सही से देखना होगा, क्योंकि ये डेट फंड्स के लिए सीधी रिप्ल्समेंट नहीं है. लेकिन निवेशक एक्सपोजर की जगह डेट कंपोनेंट को ले रहा है.

उदाहरण के लिए, अगर पोर्टफोलियो में डेट का एक्सपोजर 15 लाख रुपये है और 30 लाख रुपये को ऐसे फंड्स में आवंटित किया जाता है, तो फिर 25% डेट होल्डिंग्स पर निवेशक को केवल 7.5 लाख रुपये का डेट एक्सपोजर मिल रहा है. इससे 7.5 लाख रुपये बचते हैं, जो डेट की तरफ जाएंगे. एक अन्य फैक्टर, जिस पर विचार करना चाहिए, वो है निवेशक जिस स्तर पर जोखिम ले रहा है.

स्थिरता और नेट रिटर्न

चुने गए फंड के टाइप से हाई नेट वर्थ इन्वेस्टर्स पर बड़ा असर पड़ेगा. इस बात का ध्यान रखना होगा कि कुल डेट एक्सपोजर लिमिट पूरी हों, क्योंकि इसमें चुने गए फंड्स के डेट एक्सपोजर के आधार पर इंडिविजुअल कैलकुलेशन की जरूरत पड़ेगी. पोर्टफोलियो के साइज की वजह से इन निवेशकों के लिए टैक्स में कटौती अहम है और इससे आखिर में बड़ी सेविंग्स हो सकती है.

लेखक अर्णव पंड्या Moneyeduschool के फाउंडर हैं.

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