रिटायरमेंट प्लानिंग (Retirement Planning) व्यक्ति के फाइनेंशियल प्लानिंग की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. ये काफी अहम होता है. बहुत से लोगों का मानना है कि पोर्टफोलियो में रिटायरमेंट के लिए एक इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट मदद कर सकता है. लेकिन ये सही नहीं है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बहुत से निवेश के विकल्प रखने चाहिए. आइए जान लेते हैं कि व्यक्ति को रिटायरमेंट की प्लानिंग कैसे करनी चाहिए.
व्यक्ति रिटायरमेंट के लिए जो भी निवेश कर रहा है उसे लंबी अवधि के आउटलुक को ध्यान में रखकर करना जरूरी है. रिटायरमेंट के बाद की अवधि भी 25 से 30 साल तक हो सकती है. इसलिए लोगों को ये बात ध्यान में रखनी चाहिए. ऐसा निवेश करना चाहिए जिससे छोटी अवधि के बदलाव या असर से पूरी प्रक्रिया पर असर नहीं पड़े. लेकिन ये लंबे समय के लिए काम आए.
बहुत से लोग रिटायरमेंट प्लानिंग करते समय एक ही एसेट क्लास को लेते हैं. वो अपने पोर्टफोलियो में कोई भी जोखिम नहीं चाहते. बहुत से अन्य लोग इससे ठीक उल्टा करते हैं. लेकिन व्यक्ति को डेट और इक्विटी दोनों पर ध्यान देना चाहिए. डेट से पोर्टफोलियो में स्थिरता मिलती है. जबकि इक्विटी से कुछ समय में ग्रोथ मिलेगी. ये जरूरी है क्योंकि लंबी अवधि के लिए रिटर्न अच्छा होना चाहिए.
निवेशक को रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए एक विकल्प पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. इसकी वजह सीधी है. ये बड़ा लक्ष्य है. तो इसके लिए ज्यादा राशि की जरूरत भी पड़ेगी. तो एक ऑप्शन से काम नहीं चलेगा. इससे जोखिम बढ़ेगा क्योंकि अगर निवेश के संबंध में कुछ भी गलत होता है तो पूरी रिटायरमेंट प्लानिंग गड़बड़ हो जाएगी.
रिटायरमेंट प्लानिंग से जुड़ी सबसे बड़ी गलतफहमियों में से एक ये है कि गोल पूरा करने के लिए आपको एक खास रिटायरमेंट ऑप्शन चाहिए. इसमें ऐसे अलग-अलग प्रोडक्ट्स में भी निवेश कर सकते हैं जिनका आम तौर पर निवेशक इस्तेमाल करते हैं.
अर्णव पंड्या
(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)