निवेश के फैसले अक्सर परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं. निवेशकों को समय-समय पर कई तरह के बदलावों को झेलना पड़ता है. कई बार निवेशक सोचते हैं कि निवेश शुरू करने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना चाहिए ताकि स्थिति और स्पष्ट हो और निवेश सुरक्षित रहे. जरूरी नहीं कि यह रणनीति श्रेष्ठ हो. बाजार को समय में बांधना असंभव है और इसलिए जब फंड पास में रहे तभी निवेश करना बेहतर है. निवेश में नियमितता बनी रहनी चाहिए. किसी अन्य चीज के मुकाबले यह कहीं ज्यादा जरूरी है.
कई निवेशक निश्चित रकम आने के बाद ही निवेश की शुरुआत करने की सोच रखते हैं. वे सोचते हैं कि छोटी रकम के निवेश से कोई बड़ा फर्क नहीं आने वाला. इस सोच से वास्तव में निवेश शुरू करने में बहुत देर हो जाती है. बढ़ सकने वाली रकम नहीं बढ़ पाती और इसका बड़ा असर आखिर में इकट्ठा होने वाली रकम पर पड़ता है. यहां तक कि हर महीने हजार रुपये के निवेश से 12 फीसदी सालाना ब्याज की दर से 25 साल में 18.78 लाख रुपये जमा हो जाते हैं. छोटी रकम जोड़ते रहने से एक तय समय के बाद बड़ा फंड इकट्ठा हो जाता है.
जब शेयर बाजार में उथल-पुथल होती है तो निवेशक डर जाते हैं और वे सोचते हैं कि रकम लगाने का यह समय सही नहीं है क्योंकि इससे नुकसान हो सकता है. वास्तव में उथल-पुथल का समय और कमजोर शेयर बाजार का वक्त ही निवेश के लिए श्रेष्ठ होता है. कभी भी एक ही बार में सारी राशि बाजार में नहीं डालना चाहिए. नियमित रूप से निवेश करना हमेशा बेहतर होता है. स्थिरता का इंतजार करें और तब निवेश की प्रक्रिया शुरू करें.
बुरा वक्त कुछ नहीं होता बल्कि यह अवसर होता है जब कम कीमत पर होल्डिंग्स अपने नाम की जा सके. ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे यह बताया जा सके कि बाजार का रुख कब पलटेगा.
ज्यादातर लोग मानते हैं कि उनके पास जीवन में निवेश के लिए बहुत समय है. खासकर युवा अवस्था में यह सोच अधिक रहती है. कामकाज के लिए दशकों का समय सामने देखते हुए लोग सोचते हैं कि जीवन का शुरुआती समय आनंद उठाने के लिए होता है और सारे मुश्किल काम बाद में किए जा सकते हैं. इस तरह का इंतजार सबसे बुरा होता है. इसके बुरे परिणाम होते हैं. निवेशक अपनी निवेश यात्रा शुरू तक नहीं कर पाता है और इस तरह वह अपनी रकम के कई गुणा बढ़ जाने का अवसर खो देता है. जब जीवन में इसका अहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
कई तरह के एसेट होते हैं जिन्हें व्यक्तिगत पोर्टफोलियो में जोड़े जा सकते हैं. बहरहाल जरूरत के हिसाब से सही सोच के साथ एसेट का चुनाव करने के बजाए निवेशक अक्सर उस कीमत पर ध्यान देते हैं जिस पर उन्हें एसेट खरीदना होता है. इसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ जाता है और अंतिम परिणाम यह होता है कि निवेश वास्तव में हो नहीं पाता.
(अर्णव पंड्या मनी एडु स्कूल के संस्थापक हैं)