भारत सरकार ने कोयला आधारित पावर प्लांट्स में फ्लू गैस डी-सल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम को लेकर बड़ा रिफॉर्म किया है. सरकार ने जो नया फैसला लिया है, उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण से पीछे हटने के रूप में नहीं, बल्कि डेटा और जमीनी हकीकत पर आधारित एक संतुलित नीति बदलाव के रूप में देखा जा रहा है.
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साफ किया है कि अब FGD सिस्टम सिर्फ उन्हीं पावर प्लाटंस में अनिवार्य होगा जो घनी आबादी वाले शहरों या प्रदूषण से अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों में स्थित हैं. इस फैसले के बाद देश के करीब 80% कोयला आधारित पावर प्लांट, जो कम सल्फर वाले घरेलू कोयले पर आधारित हैं, इस नियम से मुक्त रहेंगे.
यह बदलाव कई भारतीय शोध संस्थानों की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है। रिपोर्ट में पाया गया कि जिन क्षेत्रों में FGD नहीं लगाए गए, वहां भी सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर राष्ट्रीय मानकों के भीतर है. वहीं, यदि सभी संयंत्रों में FGD लगाए जाते, तो अगले पांच वर्षों में करीब 7 करोड़ टन अतिरिक्त कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है. इसका कारण होता अधिक चूना पत्थर की खुदाई और सिस्टम चलाने में ज्यादा ऊर्जा की खपत.
इस संशोधन का एक और अहम पहलू यह है कि इससे बिजली उत्पादन की लागत में प्रति यूनिट ₹0.25 से ₹0.30 तक की कमी आएगी. इसका सीधा लाभ आम उपभोक्ताओं को मिलेगा, साथ ही आर्थिक संकट से जूझ रही बिजली वितरण कंपनियों को भी राहत मिलेगी. विशेषज्ञों ने इस कदम को “वास्तविकता-आधारित नियमन” बताया है, जिसमें पर्यावरण संतुलन और उपभोक्ता हित दोनों का ध्यान रखा गया है.
दुनिया के अन्य बड़े देश भी इसी दिशा में सोच रहे हैं. अमेरिका, यूरोप और चीन जिन्होंने कभी FGD तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया था अब क्षेत्रीय जरूरतों के हिसाब से नियम तय कर रहे हैं. चीन ने 2004 से 2012 के बीच व्यापक FGD लगाया था, लेकिन अब वह से बारीक PM 2.5 प्रदूषक कणों में कमी और पूरे सिस्टम की दक्षता पर ज्यादा जोर दे रहा है.
कुछ आलोचक मानते हैं कि इस तरह के बदलाव स्वच्छ हवा के लक्ष्यों को धीमा कर सकते हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि यह नई नीति उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती है जहां प्रदूषण वास्तव में गंभीर है, और बाकी संसाधनों को उन उपायों पर लगाया जा सकता है जो ज्यादा असरदार हैं जैसे बिजली से धूल हटाने का प्रबंधन, रियल-टाइम मॉनिटरिंग और रिन्यूएबल एनर्जी ग्रिड को मज़बूत करना है.
कोयले पर निर्भर अन्य विकासशील देशों के लिए भारत का ये मॉडल प्रेरणा बन सकता है जहां नीति जमीन से जुड़ी हो, किफायती हो और हर फैसले ठोस आंकड़ों के आधार पर लिए जाएं.