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रुपये की कमजोर से निराश नहीं बल्कि इसका स्वागत करना चाहिए: साजिद चिनॉय

JP मॉर्गन के साजिद चिनॉय ने कहा कि जब हम चाहते हैं कि निर्यात बढ़े और देश के बाजार चीनी आयात से नहीं भरें तो मजबूत करेंसी नहीं चाहिए.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी07:22 PM IST, 23 Sep 2024NDTV Profit हिंदी
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JP मॉर्गन में इंडिया चीफ इकोनॉमिस्ट साजिद चिनॉय ने कहा कि भारतीय रुपये की स्थिर रहने की उम्मीद है, लेकिन इसमें कमजोरी का भी स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इससे भारत की प्रतिस्पर्धा करने की ताकत बढ़ती है. JP मॉर्गन के इंडिया इंवेस्टर्स समिट में NDTV Profit के नीरज शाह से बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक का मौजूदा पॉलिसी एक्शन सही है क्योंकि ये ब्रॉड ट्रेड-वेटेड रियल इफेक्टिव इंट्रस्ट रेट पर आधारित होना चाहिए.

चिनॉय ने ये बताईं वजहें

चिनॉय ने कहा कि जब हम चाहते हैं कि निर्यात बढ़े और चीनी आयात से बाजार नहीं भरें तो मजबूत करेंसी नहीं चाहिए. भारत की ग्रोथ की तर्ज पर मजबूत करेंसी की जरूरत नहीं है. RBI ये सुनिश्चित कर रही है कि पिछले हफ्ते ब्रॉड ट्रेडर वेटेड एक्सचेंज रियल रेट फ्लैट या स्थिर रहे.

केंद्रीय बैंक कीमत या मात्रा कंट्रोल कर सकता है. उन्होंने कहा कि RBI का फोकस कीमत पर है और यही सही है. इसके साथ भारत, अमेरिकी फेड से अलग रुख अपना सकता है. इंट्रेस्ट रेट डिफरेंशियल रेट के घटने की वजह भारी फॉरेक्स रिजर्व का होना है. इससे RBI को अमेरिकी फेड को फॉलो नहीं करने की आजादी मिलती है.

भारत को भारी रिजर्व से फायदा: चिनॉय

चिनॉय के मुताबिक किसी वैश्विक घटना हो जाने पर भारत की स्थिति एशियाई देशों के बीच बेहतर होगी. इसके पीछे वजह केंद्रीय बैंक के पास मौजूद भारी रिजर्व है. एशिया में ज्यादातर अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के पहले के स्तर पर पहुंच गई हैं. ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं सुस्ती के दौर में हैं.

उन्होंने कहा कि एशिया में बहुत से देश एक साल पहले ढील देने वाले थे लेकिन वो ऐसा नहीं कर सके क्योंकि वो छोटी अर्थव्यवस्थाएं हैं.

अर्थशास्त्री ने कहा कि फेड में जो होता है, उससे उन्हें सीधा असर पड़ सकता है और अमेरिका के साथ पॉलिसी रेट्स डिफरेंशियल ऐतिहासिक निचले स्तर पर हैं. भारत बड़े रिजर्व की वजह से अलग कैंप में है.

उन्होंने आगे कहा कि इसलिए फेड के एक्शन का भारत पर अन्य देशों की तरह असर नहीं होता है. फेड के बाद RBI के लिए दरों में कटौती करना आसान हो जाता है, लेकिन ये मुख्य तौर पर घरेलू ग्रोथ-महंगाई पर निर्भर करेगा. अमेरिकी फेड के दरें घटाने के बाद एशिया के कई देशों में दरों में कटौती देखने को मिल सकती है.

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