केंद्रीय बैंक RBI ने सभी बैंकों और लेंडर्स को लोन देने और ब्याज वसूलने की प्रक्रियाओं की समीक्षा (Review) करने का निर्देश दिया है. सोमवार को जारी रिजर्व बैंक के सर्कुलर में कहा गया है कि ब्याज वसूलने के लिए लोन लेने वाले ग्राहकों के साथ बैंकों का जो व्यवहार है, वो तय मानकों के अनुसार नहीं है.
RBI ने कहा है, 'ब्याज वसूलने के लिए लेंडर्स की जो प्रैक्टिस चल रही है, उसमें निष्पक्षता और पारदर्शिता नहीं दिखती. ये रिजर्व बैंक के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं.'
RBI ने लेंडर्स को ग्राहकों से वसूले गए अतिरिक्त ब्याज की राशि और अन्य शुल्क (Charges) भी वापस करने को कहा है. केंद्रीय बैंक ने कहा, 'जहां भी तय मानकों के विरुद्ध प्रैक्टिस सामने आई हैं, वहां RBI ने अपनी सुपरवाइजरी टीमों के माध्यम से विनियमित इकाइयों (Regulated Entities) को सलाह दी है कि ग्राहकों को इस तरह के अतिरिक्त ब्याज और अन्य शुल्क वापस किए जाएं.'
कुछ लेंडर्स की ओर से ब्याज वसूलने के लिए अनुचित तरीकों का सहारा लेने के मामले सामने आने के बाद RBI ने ये निर्देश जारी किए हैं. सभी निर्देश तत्काल प्रभाव से लागू हो गए हैं.
बता दें कि पिछले कुछ महीनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें कुछ फिनटेक कंपनियां और लोन ऐप्स की ओर से ब्याज वसूली के लिए धमकी देने और एजेंट भेजकर डराने जैसे मामले सामने आए हैं. पिछले साल कुछ परिवारों में लोन और भारी-भरकम ब्याज के चलते खुदकुशी के मामले भी सामने आए थे.
लोन एग्रीमेंट की मंजूरी की तारीख से ब्याज लगाना, न कि पैसे उपलब्ध कराने की तारीख से.
चेक की तारीख से ही ब्याज वसूलना, जबकि ग्राहक को चेक कई दिनों बाद ही मिलता है.
लोन वितरण या री-पेमेंट के मामले में, कुछ लेंडर्स ने उस अवधि के बजाय पूरे महीने के लिए ब्याज लगाया, जहां लोन बकाया था.
ग्राहकों से एक या अधिक किश्तें एडवांस में लेना. ये देखा गया कि रेगुलेटेड इंटिटी एडवांस में एक या अधिक किश्तें जमा कर रहे थे, जबकि ब्याज वसूलने के लिए लोन की पूरी राशि का अनुमान लगा रहे थे.
इन गड़बड़ियाें को देखते हुए केंद्रीय बैंक ने सभी लेंडर्स से न केवल अपनी प्रैक्टिसेज का रिव्यू करने को कहा है, बल्कि जहां भी जरूरी हो, करेक्टिव एक्शन लेने को भी कहा है. RBI ने लोन वितरण के कुछ मामलों में, जारी किए गए चेक के बदले ऑनलाइन अकाउंट ट्रांसफर का इस्तेमाल करने को कहा.
इससे पहले भी, RBI ने गाइडलाइंस जारी कर सभी लेंडर्स को ग्राहकों से लोन डिफॉल्ट्स पर किसी अन्य नॉन-कंप्लायंट केसेस के मामलों में पेनल्टी वसूलने से रोक दिया था.