भारत में एग्रीगेटर बेस्ड ऐप्स और सर्विसेज में लगातार इजाफा हो रहा है. इससे लाइफ आसान होती है, लेकिन कई बार मामला उल्टा भी हो जाता है. जैसे आखिरी मौके पर ऐप की मदद से राइड बुक कर आप ऑफिस लेट होने से बच सकते हैं, आपको टैक्सी-ऑटो नहीं खोजना होगा. लेकिन इनका एक दूसरा पहलू भी है. दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्रा स्नेहा (नाम परिवर्तित) कहती हैं, 'मैं नियमित ओला और उबर का इस्तेमाल करता हूं. लेकिन इनसे जुड़ी दिक्कतें खत्म ही नहीं होतीं. खासतौर पर ई-रिक्शा और ओला ऑटो सर्विस में ये लोग अकसर वक्त पर नहीं आते. 10 में से 9 बार ये राइड रद्द कर देते हैं.'
वे आगे कहती हैं, 'हमें एक साथ 5-6 राइड बुक करनी पड़ती हैं, क्योंकि ये कैंसिल हो जाती हैं. इसमें एक-दो घंटे खराब हो जाते हैं. यहां तक कि जब राइड कंफर्म हो जाती है, तब भी वे कम से कम 20 मिनट लेट आते हैं. जबकि ऐप पर दिखाया जाता है कि ये राइड 5 मिनट ही दूर हैं.'
दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक और छात्र कहते हैं, 'मैं इन राइड्स पर अब और भरोसा नहीं कर सकता. इस इश्यू को लगातार उठाने के बावजूद ऐप पर जितना किराया दिखाया जाता है, ये उससे ज्यादा मांगते हैं, इसके लिए ये लोग ट्रैफिक को वजह बताते हैं.' जबकि हाल में दिल्ली के स्टेट कंज्यूमर फोरम ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर उबर राइड लेट होती है और अगर इसका ऊचित समाधान नहीं किया जाता, तो इसे सर्विस में कमी माना जाएगा. ऐसा दूसरी राइड एग्रीगेटर ऐप्स पर भी लागू होगा.
अल्फा पार्टनर्स के मैनेजिंग पार्टनर अक्षत पांडे के मुताबिक कानून उबर जैसे ऐप्स के लिए शिकायत निवारण सिस्टम बनाना अनिवार्य करता है. भले ही ये ऐप राइडर्स और स्वतंत्र चालकों को कनेक्ट करते हैं, लेकिन फिर भी ये कंपनियां समस्याओं के समाधान के लिए जवाबदेह हैं, क्योंकि ये सर्विस देते हैं और प्लेटफॉर्म होस्ट करते हैं. लेकिन सोलोमन & कंपनी की सौम्या ब्रजमोहन के मुताबिक कानूनी परिभाषा में स्पष्टता ना होने के चलते कैब एग्रीगेटर्स अपनी जवाबदेही से बच जाते हैं.
ऐसी ही कई शिकायतें हैं. जैसे कहीं यात्रा के बीच में यात्रियों को राइड कैंसिल करने पर मजबूर किया गया और अतिरिक्त कैश की मांग की गई. कहीं यात्रा पूरी होने के बाद टोल-टैक्स के नाम पर अतिरिक्त पैसे लिए गए, जबकि ऐप में ऐसा कुछ नहीं दिखाया जाता.
कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 और कंज्यूमर प्रोटेक्शन (ई-कॉमर्स) रूल्स 2020 के मुताबिक कैब एग्रीगेटर्स को कंज्यूमर्स की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता तो इसे 'सर्विस में कमी (Deficiency In Service)' माना जाएगा. ऐप्स को अधिकार दिया गया है कि वे अपने मैकेनिज्म के जरिए कैंसिलेशन, ओवरचार्जिंग या गलत व्यवहार की शिकायतों का निवारण करें. बर्जियां लॉ में पार्टनर केतन मुखिजा के मुताबिक, अगर कंज्यूमर तब भी संतुष्ट नहीं होते तो वे उपभोक्ता आयोग पहुंच सकते हैं.
साईं कृष्णा & एसोसिएट्स में पार्टनर अमीर दत्ता के मुताबिक 48 घंटे में शिकायतों का निवारण किया जाना चाहिए. साथ ही एक दिए गए वक्त में इनका समाधान किया जाना चाहिए. आमतौर पर ये एक महीना होता है. सराफ & पार्टनर्स में पार्टनर अल्ताफ फातिमा कहती हैं कि उपभोक्ता अपनी समस्याओं को लेकर डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रीड्रेसल कमीशन या कंज्यूमर कोर्ट जा सकते हैं. इंटरनल रीड्रेसल मैकेनिज्म के जरिए इन मुद्दों का पर्याप्त समाधान किया जाना चाहिए.