आरक्षण मामले पर पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को बड़ा झटका दिया है. जातीय गणना के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने का प्रावधान किया था, जिसे पटना हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है. हाई कोर्ट के फैसले से पूर्व-निर्धारित आरक्षण की सीमा ही बिहार में लागू रहेगी
दरअसल, बिहार सरकार ने राज्य में आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाकर 65% कर दी थी. वहीं इसमें सामान्य आर्थिक रूप से पिछड़े (EWS) का 10% जोड़ दें तो कुल आरक्षण 75% हो जाएगा.
जातीय गणना (Bihar Caste Survey) के बाद पिछड़ा वर्ग (BC), अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC-ST) के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई थी. बिहार सरकार के इसी फैसले को हाई कोर्ट ने आज रद्द कर दिया है.
बिहार सरकार के फैसले के मुताबिक, राज्य सरकार की सीधी भर्तियों (नौकरियों) में 65% सीटें आरक्षित कोटे की कर दी गई थीं, जबकि ओपन मेरिट कैटगरी में महज 35% सीटें बची थीं. आरक्षित 65% में से अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के लिए 25%, पिछड़ा वर्ग (BC) के लिए 18%, अनुसूचित जाति (SC) के लिए 20% और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 2% सीटें आरक्षित रखने का प्रावधान था.
केंद्र सरकार की रिजर्वेशन पॉलिसी के मुताबिक, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27%, अनुसूचित जाति (SC) के लिए 15% और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 7.5% आरक्षण का प्रावधान है. इसके अलावा मानक रूप से नि:शक्त के लिए 4% आरक्षण है. वहीं, साल 2019 में हुए संशोधन के बाद सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े अभ्यर्थियों के लिए अलग से EWS कोटा लाया गया और 10% आरक्षण दिया गया.
पटना हाई कोर्ट का मानना है कि आरक्षण की जो सीमा (50%) पहले से ही निर्धारित है, उसे बढ़ाया नहीं जा सकता है. ये मामला संवैधानिक है, इसलिए इस मामले पर आगे सुनवाई होगी. सुनवाई के बाद ही इस मामले पर कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा. NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने माना कि सरकार का फैसला, नियमावली के खिलाफ है. हालांकि बिहार सरकार इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर जा सकती है, जहां इस मामले में सुनवाई होगी.
बिहार में जो गणना हुई, उसे जातिगत जनगणना की बजाय, जातिगत सर्वे कहा गया था. इस मामले को राजनीतिक रंग दिया गया. इस पर कोर्ट ने कहा कि ये 'राइट टू इक्विलिटी' यानी बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है.
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी तो ये संवैधानिक बेंच ही तय करेंगी. इससे जिससे ये साफ हो गया है कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास जाएगा. जहां बेंच ये फैसला करेगी कि बिहार सरकार क्या आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा सकती है या नहीं.
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने कहा कि अब इस मामले में बिहार सरकार ऊपरी अदालत जा सकती है, जो कि उनका अधिकार है. लेकिन बेसिक सवाल ये है कि जो आरक्षण बढ़ाया गया था, वो संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 से विपरीत था. इंदिरा साहनी केस में ये तय कर दिया गया कि किसी भी परिस्थिति में तीन कैटेगरी SC, ST और OBC के लिए इसे 50% से ज्यादा नहीं किया जा सकता.