SEBI ने अनिल अंबानी और 24 दूसरी एंटिटीज की शेयर बाजार की गतिविधियों पर 5 साल का बैन लगा दिया है. रिलायंस होम फाइनेंस (RHFL) से फंड साइफनिंग की जांच के बाद लगाए गए बैन के तहत अनिल अंबानी अब किसी भी लिस्टेड कंपनी में डायरेक्टर या कोई अहम पद भी नहीं ले पाएंगे. दूसरी तरफ RHFL पर 6 भी महीने का बैन लगाया गया है.
अनिल अंबानी पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है, जबकि फंड साइफनिंग स्कैम में शामिल सभी एंटिटीज पर कुल मिलाकर 625 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा है. उन्हें 45 दिन के भीतर पेनल्टी भरनी होगी.
मार्केट रेगुलेटर ने इस संबंध में 222 पेज का ऑर्डर जारी किया है. SEBI के साथ-साथ दो फॉरेंसिक ऑडिटर्स की जांच में भी SEBI की जांच की तरह ही चीजें सामने आई थीं.
दरअसल PWC कंपनी का फॉरेन ऑडिटर हुआ करता था, लेकिन इसने बाद में इस्तीफा दे दिया था. जबकि RHFL के क्रेडिटर 'बैंक ऑफ बड़ौदा' ने ग्रांट थॉर्नटन को फॉरेंसिक ऑडिटर नियुक्त किया था. जानते हैं दोनों की रिपोर्ट में क्या सामने आया था.
18 अप्रैल 2019 को कंपनी के CEO और CFO को लिखे खत में PWC ने कहा कि 'जनरल पर्पज वर्किंग कैपिटल लोन्स' के तहत RHFL जो लोन देती है, उनकी मात्रा में 31 मार्च, 2018 से 31 मार्च, 2019 के बीच जबरदस्त इजाफा हुआ है. इस तरह के कर्ज में अमाउंट 900 करोड़ रुपये से बढ़कर 7,900 करोड़ रुपये पहुंच गया.
PWC ने लोन लेने वालों के बारे में गंभीर चिंताएं जताई थीं. जैसे; इस तरह के कर्जदारों की नेट वर्थ नेगेटिव है, इनकी लिमिटेड या लगभग ना के बराबर आय और मुनाफा है, इस तरह की कंपनियों में RHFL से कर्ज लेने और उसे आगे बांटने के अलावा कोई बिजनेस गतिविधि नहीं है.
PWC ने ये भी बताया था कि इन कर्जदारों ने जितना कर्ज लिया है, उसकी तुलना में इनकी इक्विटी कैपिटल काफी कम है. फिर कुछ कर्जदार कंपनियों को तो RHFL द्वारा लोन दिए जाने के कुछ वक्त पहले ही बनाया गया है.
कुछ मामलों में लोन सैंक्शन की तारीख और एप्लीकेशन की तारीख एक ही थी. जबकि कई में तो एप्लीकेशन देने के पहले ही लोन सैंक्शन की तारीख दर्ज थी.
PWC ने ग्रुप कंपनियों को इस तरह के लोन सैंक्शन किए जाने के पीछे की वजह भी जाननी चाही थी.
PWC ने ये भी पूछा कि इस तरह के कर्जों को मॉनिटर करने के लिए कौन सी प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है.
PWC ने ये भी पूछा था कि क्या RHFL ने अपने डेट रीपेमेंट में कोई डिफॉल्ट किया है या नहीं.
खास बात ये रही कि 9 मई 2019 को लिखे खत में RHFL ने ग्रुप कंपनियों को कर्ज दिए जाने से इनकार किया था. इस खत में RHFL ने कहा था कि कर्ज, प्रोमोटर्स की ताकत, उनके प्रोजेक्ट और कोलैटरल के आधार पर दिए गए हैं. अतीत में भी RHFL पैसा वसूलने में कामयाब रही है.
ग्रांट थॉर्नटन को क्रेडिटर बैंक ऑफ बड़ौदा ने फॉरेंसिक ऑडिट के लिए नियुक्त किया था.
थॉर्नटन ने अपनी दो रिपोर्ट्स में 2 जनवरी 2020 और 6 मई 2020 को बताया था कि RHFL ने संभावित तौर पर 1 अप्रैल 2016 से 30 जून 2019 के बीच अप्रत्यक्ष तौर पर खुद से संबद्ध एंटिटीज को लोन दिए.
पहली रिपोर्ट से पता चलता है कि इस अवधि में कंपनी ने अलग-अलग एंटिटीज को 14,577.7 करोड़ रुपये के जनरल पर्पज कॉरपोरेट लोन दिए. इसमें से 12,487 करोड़ रुपये 47 PILEs को कर्ज के तौर पर दिए गए थे.
ग्रांट थॉर्नटन ने ये भी पाया कि रिलायंस पावर और रिलायंस इंफ्रा ने 8 कर्जदार एंटिटीज को रिलेटेड एंटिटी बताया था. लेकिन RHFL द्वारा लोन दिए जाने के ठीक पहले उन्होंने इन कंपनियों को नॉन-रिलेटेड पार्टीज बता दिया. इन रीक्लासिफाइड एंटिटीज को कुल 1,323.4 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया.
पहली रिपोर्ट में 15 मामलों में संभावित लोन एवरग्रीनिंग (पुराने कर्ज ना चुका पाने वाली एंटिटी को नया कर्ज देना) देखी गई, जिनमें कुल 785.8 करोड़ रुपये के कर्ज दिए गए. साथ ही 412.9 करोड़ रुपये के संभावित सर्कुलर ट्रांजैक्शंस के मामले भी सामने आए.
दूसरी रिपोर्ट 'फंड ट्रेसिंग एक्टिविटी' से संबंधित थी. इसके मुताबिक रिव्यू पीरियड में 150 लोन केस में वितरित 12,573 करोड़ रुपये PILEs कैटेगरी में थे. इनमें से 100 अब भी खुले हैं, मतलब 8,884.5 करोड़ रुपये के कर्ज अब भी ओपन हैं.
रिपोर्ट कहती है, 'इन 100 ओपन लोन केसेज की जांच से पता चलता है कि RHFL द्वारा दिए गए कुछ कर्ज वापस सर्कुलर ट्रांजैक्शंस के जरिए RHFL के पास आ गए. फिर इस तरह के लोन में एक बड़ा हिस्सा कुछ कर्जदारों ने RHFL के साथ अपने पुराने लोन चुकाने के लिए किया. मतलब इन एंटिटीज ने बड़ी मात्रा में लोन एवरग्रीनिंग की.'
ग्रांट थॉर्नटन ने ये भी पाया कि RHFL ने कमजोर फाइनेंशियल्स वाली कई एंटिटीज को सैंक्शन डेट के पहले ही पैसा पहुंचा दिया. RHFL ने ऐसी एंटिटीज को कर्ज दिए, जिनका कोई ठोस बिजनेस ट्रैक रिकॉर्ड नहीं था.
रिपोर्ट के मुताबिक रिव्यू पीरियड में RHFL ने कुल 324.9 करोड़ रुपये का लोन चार ऐसी एंटिटीज को दिया, जिनकी पर्याप्त रीपेमेंट कैपेसिटी नहीं थी.