देश में तेजी से बढ़ रहे जंक फूड के सेवन को नियंत्रित करने के लिए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में एक महत्वपूर्ण सिफारिश की गई है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (Ultra-Processed Foods) पर हाई टैक्स लगाया जाना चाहिए. इसे 'हेल्थ टैक्स' के रूप में प्रस्तावित किया गया है. ये उन ब्रैंड्स को टारगेट करता है, जो जंक फूड्स को बढ़ावा देते हैं.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में खानपान में अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के बढ़ते चलन से पैदा हो रहीं चिंताओं को दूर करने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है. देश का फूड रेगुलेटर FSSAI अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को नियंत्रित करने पर विचार कर सकता है, जिसमें स्पष्ट परिभाषाएं और मानक शामिल हैं. इसमें सख्त लेबलिंग भी जरूरी किया जाए.
WHO और अन्य स्वास्थ्य संगठन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के सेवन को लेकर चिंता जताते रहे हैं. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, जैसे कि पैकेज्ड स्नैक्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स, इंस्टेंट नूडल्स और रेडी-टू-ईट मील्स में उच्च मात्रा में शुगर, नमक और अनहेल्दी फैट्स पाए जाते हैं.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कंज्यूमर प्रोटेक्शन के प्रयासों को मजबूत किया जा सकता है ताकि आक्रामक मार्केटिंग और भ्रामक न्यूट्रिशन क्लेम्स को टारगेट किया जा सके, खास तौर पर उन ब्रैंड्स के लिए जो बच्चों और युवाओं को टारगेट करने वाले प्रॉडक्ट्स बनाते हैं.
सर्वेक्षण में सिफारिश की गई है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को चीनी, नमक और सैचुरेटेड फैट्स के लिए पोषक तत्व सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए ताकि विज्ञापनों को रेगुलेट किया जा सके.
प्रॉडक्ट्स के पैकेट्स पर फ्रंट-ऑफ-पैक लेबल लगाना जरूरी किया जा सके और अनहेल्दी फूड्स पर सख्त मार्केटिंग प्रतिबंध लगाए जा सकें, खास तौर पर 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए बनाए गए प्रॉडक्ट्स पर.
सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्कूलों और सार्वजनिक क्षेत्रों में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड्स को समाप्त किया जाना चाहिए, जबकि अफोर्डेबल हेल्दी फूड्स प्रोडक्शन को बढ़ावा देना चाहिए.
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का 2.5 लाख करोड़ रुपये का बिजनेस है, जो फूड्स को चटकदार स्वाद और मार्केटिंग स्ट्रैटजी पर निर्भर है. इसमें कंज्यूमर बिहेवियर को टारगेट करते हुए भ्रामक विज्ञापन तैयार किए जाते हैं और बड़े-बड़े सेलिब्रिटीज भी ऐसे विज्ञापन करते हैं. इसके चलते बच्चों और कम उम्र के युवाओं पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है.
22 देशों पर की गई एक स्टडी में बताया गया है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के संबंध में सेल्फ-रेगुलेशन यानी स्व-नियमन बहुत प्रभावी नहीं रहा है. Obesityevidencehub की एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन, मेक्सिको, साउथ अफ्रीका, स्पेन, पुर्तगाल, बहरीन, बारबाडोस, चिली, डोमिनिका, फिजी, मलेशिया, मॉरीशस, मोरक्को, नॉर्वे, ओमान, फिलीपींस समेत कम से 54 देशों ने इस तरह के टैक्स लगाए हैं. कई देशों में इसे SSB टैक्स (Sugar-Sweetened Beverages Tax) कहा गया है.
ब्रिटेन, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका के बारे में रिपोर्ट बताती है कि SSB टैक्स ने चीनी की खपत को कम कर दिया है. इस टैक्स के चलते ब्रिटेन और अन्य देशों में SSB प्रॉडक्ट्स का री-फॉर्मूलेशन किया गया है, जिससे पेय पदार्थों में चीनी की मात्रा कम हो गई है. भारत में अगर ये सिफारिश स्वीकार की जाती है तो ये देखना दिलचस्प होगा कि इसके क्या परिणाम आते हैं.