2021 और 2022 के शुरुआती दौर में माल ढोने वाले जहाजों का जो किराया (Freight Rate) आसमान पर पहुंच गया था, वो फिर से सामान्य होता नजर आ रहा है.
डिमांड में उछाल, कंटेनर्स व पोर्ट्स की कमी और बड़ी शिपिंग कंपनियों और माल ढोने वालों के बीच सांठ-गांठ ने भारत समेत पूरी दुनिया के लिए शिपिंग की लागत को बढ़ा दिया. यही नहीं पूरी दुनिया में शिपिंग के जरिए सामान पहुंचाने में भी देरी नजर आई.
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल (Engineering Export Promotion Council) के चेयरमैन अरु गरोड़िया के मुताबिक, ढुलाई भाड़ा करीब 3 से 5 गुना बढ़ने के बाद अब वापस कम होना शुरू हो गया है.
इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक,
US ट्रेड रूट के 20 फीट के कंटेनर की मौजूदा लागत $1,400 है, जो कोविड-19 के आंकड़ों से महज 5% ज्यादा है. 2021 में इसी कंटेनर की लागत $6,000 हुआ करती थी.
UAE ट्रेड रूट के इसी 20 फीट के कंटेनर की लागत घटकर $60 हो गई है.
जर्मनी ट्रेड रूट के इसी 20 फीट कंटेनर की लागत $500-$600 हो गई है
गरोडिया बताते हैं, चीन की बात करें तो इसके आंतरिक मसलों की वजह से देश की इकोनॉमी सिकुड़ रही है और इंपोर्ट में भारी कमी आई है. यहां पर भी शिपिंग का रेट कम हुआ है. अमेरिका, चीन, UAE और यूरोपियन यूनियन का ट्रेड रूट फिलहाल सबसे ज्यादा व्यस्त है.
केयरएज (CareEdge) में एसोसिएट डायरेक्टर अरुणव पॉल के मुताबिक, वैश्विक स्तर की मंदी और कंटेनर सप्लाई की उपलब्धता के बीच, शिपिंग रेट हर दिन घटता जा रहा है. कुछ मामलों में तो, ये कीमतें निगेटिव में भी चली जा रही हैं, क्योंकि कंपनियां बमुश्किल तेल की रिकवरी कर पा रही हैं.
छोटी, मझोली और बड़ी यानी सभी तरह की कंपनियों को शिपिंग का भाड़ा कम होने से फायदा हो रहा है. दवाइयां बनाने वाली कंपनी सिप्ला (Cipla) ने सितंबर तिमाही के एनालिस्ट कॉल में कहा था, इनपुट कॉस्ट में कमी, गिरते शिपिंग रेट और फॉरेक्स का पक्ष में होना कंपनी के लिए ऑपरेशनल मुनाफे को बेहतर करने में काम आया.
सिप्ला के ग्लोबल CFO आशीष अदुकिया (Ashish Adukia) ने कहा, कुल मिलाकर, हवाई और समुद्र में माल ढोने के खर्च में कमी आई है. सालाना आधार पर, हवाई रेट में 8-9% की गिरावट रही, वहीं, समुद्री आधार पर ये गिरावट 60-70% की रही. उन्होंने कहा, 'हम इसके आगे भी जारी रहने का अनुमान लगा रहे हैं.'
ऑनलाइन कंटेनर मार्केटप्लेस कंटेनर एक्सचेंज (Container xChange) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में लॉन्ग टर्म फैक्टर, जैसे महंगाई, बढ़ती ब्याज दरें, गुड्स से सर्विसेज की तरफ बढ़ते खर्च और स्ट्रक्चरल शिफ्ट 2024 में भी जारी रहेंगे. लोग केवल जरूरी चीजों पर ही फोकस करेंगे, जिससे इंपोर्ट किए जाने वाले मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की डिमांड पर असर पड़ेगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, 'कंटेनर मार्केट का ये ट्रेंड आगे भी जारी रहेगा और हम अगले 12-18 महीने में भी इसकी डिमांड बढ़ने के आसार नहीं देखते.'