'आ गया नया इको फ्रेंडली डिशवॉशर, बर्तन चमकाए और हाथों को कोमल बनाए!'
'इस्तेमाल करें 'ABC' ऑर्गेनिक टूथब्रश, दांतों को चमकाए, लंबा चले!'
'नया 'ग्रीन' XYZ क्लीनर, फर्श चमकाए, कोई नुकसान भी न पहुंचाए!'
आए दिन हम अखबारों, TV चैनलों, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब चैनल्स वगैरह पर ऐसे विज्ञापन देखते-सुनते रहते हैं. आखिर...
कौन हैं ये लोग, कहां से आते हैं, क्या आधार है कंपनियों के इन दावों का?
ये विज्ञापन हमारा और आपका ध्यान तो खींचते हैं, लेकिन इन प्रोडक्ट्स में कितनी सच्चाई रहती है, इनके दावों में कितना दम होता है?
आखिर कब तक कंपनियां ग्रीन, ऑर्गेनिक, इको फ्रेंडली, कार्बन न्यूट्रल, पाॅल्यूशन फ्री जैसे दावों के जरिये लोगों को बेवकूफ बनाती रहेंगी?
क्या कंज्यूमर होने के नाते हमारा अधिकार नहीं बनता कि हम इन दावों की हकीकत जानें?
इन दावों की हकीकत जानना ग्राहकों का अधिकार है, तभी तो एक लंबी प्रक्रिया के बाद केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने बड़ा कदम उठाया है.
भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित ऐसे मामलों और ग्रीनवाशिंग यानी गलत दावों की जानकारी पर रोक लगाने के लिए, CCPA ने दिशानिर्देश जारी किए हैं. इन दिशानिर्देशों के तहत अब कंपनियों को रेगुलेट किया जाएगा.
CCPA की गाइडलाइंस के मुताबिक, ग्रीन और ऑर्गेनिक के नाम पर धोखा नहीं चलेगा. इको फ्रेंडली, ऑर्गेनिक, कार्बन न्यूट्रल, जीरो पॉल्यूशन और क्लीन एंड ग्रीन के दावों पर सरकार ने सख्ती दिखाई है. अब फैक्ट्स और वेरिफाई करने लायक सबूतों के बिना दावों पर रोक लगाई जाएगी.
अगर कोई कंपनी अपने किसी प्रॉडक्ट को लेकर ऐसे दावे करती है तो उसे सबूत देना होगा. अगर किसी रिसर्च या स्टडी के आधार पर दावा किया गया हो, उसकी पूरी डिटेल सामने रखनी होगी, पूरा ब्यौरा देना जरूरी होगा.
केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामले विभाग की सचिव और CCPA की चीफ कमिश्नर निधि खरे ने ये जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि इन गाइडलाइंस का उद्देश्य ट्रूथफुल प्रैक्टिसेज को बढ़ावा देना है, जिनमें पर्यावरण से जुड़े मामलों पर किए गए दावे सही हों और सार्थक हों. ऐसा करने से कंज्यूमर्स का प्रॉडक्ट और कंपनी के प्रति विश्वास बढ़ेगा.
ग्रीनवाॅशिंग पर कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी की चीफ कमिश्नर निधि खरे की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी, जिसमें ASCI, FICCI, ASSOCHAM और CII के प्रतिनिधियों के अलावा शिक्षा जगत, व्यवसाय जगत और उपभोक्ता मामलों से जुड़े कार्यकर्ता संगठन के सदस्य शामिल थे.
काफी विचार-विमर्श के बाद इस समिति ने अपनी सिफारिशें दीं. इसके आधार पर उपभोक्ता विभाग ने 20 फरवरी 2024 को ड्राफ्ट गाइडलाइंस पर पब्लिक कमेंट्स मांगे थे, जिसमें 27 अहम सुझाव प्राप्त हुए. कुछ प्रमुख सुझाव थे-
पर्यावरण से जुड़े दावों में विश्वसनीय प्रमाण और वैज्ञानिक साक्ष्य की जानकारी प्रस्तुत की जानी चाहिए.
नैचुरल, ऑर्गेनिक, री-जेनरेटिव और टिकाऊ (Sustainable) जैसे शब्दों का सत्यता के साथ प्रयोग हो.
'प्राकृतिक', 'जैविक', 'शुद्ध' जैसे पर्यावरणीय दावों के लिए पर्याप्त जानकारी देना जरूरी हो.
CCPA ने सुझावों पर विचार करने के बाद, ग्रीनवाशिंग और भ्रामक पर्यावरणीय दावों पर रोक लगाने और रेगुलेट करने के लिए दिशानिर्देश, 2024 जारी किए.
अक्सर हम देखते हैं कि कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती हैं. अब वे ऐसा नहीं कर पाएंगी. गाइडलाइंस में ग्रीनवाशिंग और पर्यावरणीय दावों से संबंधित शब्दों जैसे कि इको फ्रेंडली, नैचुरल, ऑर्गेनिक वगैरह की स्पष्ट परिभाषाएं दी गई हैं, ताकि कंपनियों और कंज्यूमर्स, दोनों की एक जैसी समझ हो.
प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों और सर्विस प्रोवाइडर्स को अपने पर्यावरण संबंधी दावों को सबूतों के साथ प्रमाणित करना आवश्यक है. ऐसे दावों के समर्थन में डेटा और मेथेडोलॉजी की विस्तार से जानकारी देनी होगी.
उचित प्रमाण के बिना 'इको-फ्रेंडली', 'हरित' (Green) और 'टिकाऊ' (Sustainable) जैसे अस्पष्ट या भ्रामक शब्दों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया है.
पर्यावरण से जुड़े दावों की पुष्टि के लिए थर्ड पार्टी सर्टिफिकेशन भी मान्य होगा. कंपनियों को महत्वपूर्ण जानकारी का स्पष्ट तरीके से खुलासा करना जरूरी होगा.
दावों में जरूरी पहलुओं (वस्तु, मेकिंग प्रोसेस, पैकेजिंग वगैरह) के बारे में स्पष्ट रूप से बताना चाहिए और इनके संबंध में विश्वसनीय प्रमाण या वैज्ञानिक साक्ष्य देना चाहिए.
CCPA के इस कदम के बाद उम्मीद की जा रही है कि कंपनियां, लोगों को किसी भुलावे या बहकावे में नहीं रख पाएंगी, जिससे लोग किसी धोखे का शिकार नहीं होंगे. कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने कहा है कि CCPA, पब्लिक और कंज्यूमर्स के हित में इन दिशानिर्देशों को प्रभावी बनाने के लिए इंडस्ट्रीज, उपभोक्ता संगठनों और रेगुलेटरी बॉडीज के साथ मिलकर काम करेगा.