भारतीय परिवारों का खाने पर खर्च उनकी कुल मासिक खर्च के आधे से भी कम रह गया है. औसतन अगर ये माना जाए कि किसी भारतीय परिवार का महीने का कुल खर्च 10,000 रुपये है तो खान-पान पर उनका खर्च 5,000 रुपये से भी कम हो रहा है.
आजाद भारत में यानी 1947 के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि परिवार के कुल मासिक खर्च का आधे से भी कम हिस्सा खाने पर खर्च हो रहा है. प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (PM-EAC) की ओर से जारी किए गए वर्किंग पेपर में ये बात कही गई है.
वर्किंग पेपर का टाइटल है - 'भारत के खाद्य उपभोग और नीतिगत निहितार्थों में परिवर्तन: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 और 2011-12 का एक व्यापक विश्लेषण'.
इस वर्किंग पेपर के अनुसार, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भोजन पर कुल घरेलू व्यय का हिस्सा काफी हद तक कम हो गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक, कुल मिलाकर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के औसत मासिक खर्च (Average Monthly Per Capita Expenditure) में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है.
प्रति व्यक्ति खर्च की मात्रा अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में अलग-अलग है. खपत और खर्च का आकलन 2011-12 से 2022-23 के बीच किया गया है.
ग्रामीण परिवारों की खपत बढ़ोतरी जहां 164% थी.
वहीं शहरी परिवारों की खपत बढ़ोतरी 146% रही.
पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च में बढ़ोतरी 151% रही.
वहीं तमिलनाडु में ये बढ़ोतरी लगभग 214% रही.
सिक्किम में खर्च में 394% की भारी बढ़ोतरी देखी गई.
रिपोर्ट के अनुसार, 'पूरी संभावना है कि खानपान पर खर्च में कमी सरकार की खाद्य सुरक्षा नीतियों का व्यापक प्रभाव दिखाता है, जिसके तहत देशभर में गरीबी रेखा से नीचे और कम आय वाले परिवारों को मुफ्त अनाज (गेहूं/चावल) दिए जाते हैं.'
इसमें सुझाव दिया गया है कि कृषि नीतियों को अनाज से परे तैयार करना होगा, जिसका उपभोग समाज के एलीट क्लास में घट रहा है. कृषि नीतियों को सिर्फ अनाज को ध्यान में रखकर नहीं तैयार करना चाहिए. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी नीतियों का किसानों के कल्याण पर सीमित प्रभाव पड़ता है.
देश के फूड कंजप्शन पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव दिखाई दे रहे हैं. अब पैकेज्ड फूड पर खर्च की हिस्सेदारी काफी बढ़ी है. पैकेज्ड फूड पर बढ़ोतरी सभी क्षेत्रों में देखने को मिली है, लेकिन देश के टॉप 20% परिवारों और शहरी क्षेत्रों में ये बढ़ोतरी काफी ज्यादा है.
हालांकि फूड प्रोसेसिंग एक ग्रोइंग सेक्टर है और इसमें जॉब क्रिएशन कैपिसिटी ज्यादा है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड की बढ़ती खपत से स्वास्थ्य पर असर पड़ने की संभावना है.
पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड्स की बढ़ती खपत ने पोषण संबंधी चिंताएं भी पैदा की हैं और रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दिशा में रिसर्च की जरूरत है.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है, 'ऐसे फू्डस की 'न्यूट्रिशन कंटेंट' को रेगुलेट करने और हेल्दी ऑल्टरनेटिव यानी हेल्दी फूड ऑप्शन को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी लाने की जरूरत पड़ सकती है.'