रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements) पर चीन के सख्त प्रतिबंध लगाने से वैश्विक स्तर पर ऑटोमोबाइल (Automobile Sector), डिफेंस (Defence Sector) और क्लीन एनर्जी (Clean Energy Sector) जैसे सेक्टर्स मुश्किल में हैं. इस कदम से भारत समेत कई देशों की प्रोडक्शन लाइनअप (Production Line) के साथ-साथ डिप्लोमैटिक संबंधों पर भी असर पड़ रहा है. रास्ते नहीं तलाशे जाने पर ग्लोबल सप्लाई चेन (Global Supply Chain) गड़बड़ाने की भी आशंका जताई जा रही है.
चीन ने 4 अप्रैल 2025 से 7 रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) और संबंधित मैग्नेट्स के निर्यात के लिए विशेष लाइसेंस अनिवार्य कर दिए हैं, जिसका कारण उसने राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रसार-नियंत्रण बताया है.
सैमेरियम, गैडोलिनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेटियम, स्कैंडियम और येट्रियम जैसे तत्व इलेक्ट्रिक मोटर्स, ब्रेकिंग सिस्टम, स्मार्टफोन्स, एयरोस्पेस कंपोनेंट्स और मिसाइल तकनीक में महत्वपूर्ण हैं.
चीन इस कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के लगाए गए टैरिफ के जवाब में रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.
ऐसे में ऑटो, डिफेंस और अन्य सेक्टर्स दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. हालांकि S&P ग्लोबल मोबिलिटी में भारत के लिए लाइट व्हीकल प्रोडक्शन फोरकास्टिंग के एसोसिएट डायरेक्टर गौरव वंगल ने NDTV Profit को फोन पर बताया कि वर्तमान स्थिति स्थिर और नियंत्रण में है. ऑटोमोबाइल कंपनियां और आपूर्तिकर्ता विकल्प तलाश रहे हैं, जैसे उत्पादों में बदलाव और अन्य स्रोतों से सामग्री लेना. हालांकि आगे उन्होंने ये भी जोड़ा कि लगातार निगरानी जरूरी है, क्योंकि लंबे समय तक रुकावट से प्रोडक्शन लाइन पर बड़ा असर पड़ सकता है.
आइए इस विषय को जरा विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.
रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) कुल 17 ऐसे मेटेरियल तत्व होते हैं जो केमिकल रूप से मिलते-जुलते हैं. इनमें से कुछ खास जैसे Neodymium, Praseodymium, Dysprosium, Terbium तकनीक की दुनिया में बेहद अहम हैं. ये एलिमेंट्स स्मार्टफोन्स, विंड टरबाइन्स, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs), डिफेंस इक्विपमेंट्स और ग्रीन एनर्जी उपकरणों में जरूरी होते हैं.
Rare Earth Magnets (जैसे Neodymium-Iron-Boron) हल्के और शक्तिशाली मैग्नेट होते हैं, जो EV मोटर्स, ट्रांसमिशन, ब्रेक, पावर विंडो और वाइपर्स तक में लगाए जाते हैं. इनके बिना EV या हाई-टेक डिफेंस प्रोडक्ट्स की कल्पना नहीं की जा सकती.
How China controls rare earth metals: इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी और US जियोलॉजिकल सर्वे (2025) के अनुसार, चीन REE के कच्चे उत्पादन का करीब 60% और उसकी प्रोसेसिंग का 90% हिस्सा अकेले संभालता है. यही वजह है कि वह वैश्विक सप्लाई चेन में 'गेटकीपर' बन चुका है. अब चीन ने इन एलिमेंट्स के निर्यात पर नए एक्सपोर्ट लाइसेंस और एंड-यूजर सर्टिफिकेट को अनिवार्य कर दिया है.
इसके साथ ही, एक नेशनल ट्रैकिंग सिस्टम भी लागू किया गया है, जो तय करेगा कि किन देशों को एक्सपोर्ट की मंजूरी दी जाए और किन्हें नहीं.
भारत ने FY25 में लगभग ₹306 करोड़ के 870 टन Rare Earth Magnets आयात किए. अप्रैल 2025 से चीन ने इन मैग्नेट्स की सप्लाई रोक दी है. खबरों के मुताबिक, बजाज ऑटो, TVS, टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों के पास केवल जून तक का स्टॉक बचा है. अगर सप्लाई नहीं खुली, तो जुलाई से EV टू-व्हीलर्स का प्रोडक्शन रुक सकता है.
बड़ा खतरा कीमतों में बढ़ोतरी का है, जिसका सीधा असर हम और आप जैसे ग्राहकों पर पड़ेगा. SIAM और अन्य ऑटो कंपनियों ने केंद्र सरकार से तात्कालिक हस्तक्षेप की मांग की है.
डिफेंस सेक्टर में भी REE का इस्तेमाल मिसाइल गाइडेंस सिस्टम, नाइट विजन डिवाइसेज और रडार में होता है. भारत की 'आत्मनिर्भर भारत' डिफेंस नीति को इससे बड़ा झटका लग सकता है. वहीं, इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में भी स्मार्टफोन, लैपटॉप और हाई-एंड चिप्स के लिए इन एलिमेंट्स की जरूरत पड़ती है. ऐसे में मोबाइल और गैजेट्स महंगे हो सकते हैं.
वोक्सवैगन (Volkswagen) और फोर्ड (Ford) जैसी कंपनियों ने उत्पादन धीमा कर दिया है. वहीं, दूसरी ओर यूरोपियन यूनियन इस प्रतिबंध के खिलाफ WTO में शिकायत करने की योजना बना रहा है.
अमेरिका घरेलू माइनिंग और सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन पर काम कर रहा है. कहा जा रहा है कि चीन इस कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के लगाए गए टैरिफ के जवाब में रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.
भारत के पास लगभग 70 लाख टन REE का भंडार है, लेकिन प्रोसेसिंग तकनीक और इकोनॉमिक स्केल की कमी है. वर्तमान स्थिति की बात करें तो भारत में इंडिया रेयर अर्थ (India Rare Earths Ltd.) जैसी कंपनियों के पास कमर्शियल स्केल की सुविधा नहीं है.
चीन के पोर्ट्स पर भारत की शिपमेंट अटकी हुई हैं और सरकार अब एक हाई-लेवल इंडस्ट्री डेलीगेशन चीन भेजने की तैयारी में है.
वैकल्पिक स्रोतों की खोज: भारत ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और जापान जैसे देशों से आपूर्ति के लिए बातचीत कर रहा है. हालांकि, इन स्रोतों से आयात की लागत ज्यादा होगी और प्रोडक्ट महंगे होंगे.
घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: सरकार जल्द ही नीति और निजी कंपनियों की भागीदारी के जरिए घरेलू प्रोसेसिंग बढ़ाने की दिशा में कदम उठा सकती है.
रिसाइकलिंग और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन: ई-वेस्ट से REE निकालने की तकनीकों को बढ़ावा दिया जा सकता है, ताकि दीर्घकालीन आत्मनिर्भरता हासिल हो.
अंतरराष्ट्रीय साझेदारी: भारत को अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ टेक्नोलॉजी और माइनिंग में रणनीतिक साझेदारी करनी होगी.
चीन का ये कदम केवल सप्लाई चेन पर नहीं, बल्कि भविष्य की टेक्नोलॉजी पर नियंत्रण की लड़ाई है. जानकारों का मानना है कि भारत को न सिर्फ मौजूदा संकट का हल खोजना है, बल्कि दीर्घकालीन समाधान की दिशा में तेजी से काम करना होगा.