भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र की परिकल्पना के साथ चल रहा है. कोई भी राष्ट्र जब ऐसा ऊंचा लक्ष्य लेकर चलता है तो इसके लिए जरूरी है कि उसने इसे हासिल करने के लिए पुख्ता जमीन तैयार की हो, पॉलिसी और सामाजिक स्तर पर ठोस फैसले लिए हों और आगे भी हर जरूरी कदम उठाने में न हिचकिचाए.
विकास एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है, इसे बनाए रखना जरूरी होता है. फिलहाल देश में लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, आगे किसकी सरकार होगी और नई सरकार क्या कदम उठाएगी, ये तो 4 जून को साफ हो ही जाएगा. लेकिन मोदी सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में विकास के पहिए की रफ्तार बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए हैं और उनका क्या असर हुआ है, इस पर हम आपके लिए '10 Years Of PM Modi' सीरीज लेकर आए हैं.
आजादी के बाद से भारत के सामने संप्रभुता ही नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती थी. ये चुनौती कई बार पड़ोसी मुल्कों से मिली, तो कभी आतंकवाद और नक्सलवाद ने हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश की.
इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए हमेशा भारत को अपनी सैन्य तैयारी चुस्त रखने की जरूरत हमेशा बनी रही. आज के दौर में जब हिंद महासागर के 'गलियारे' पर दुनिया की तमाम बड़ी ताकतों की नजर है, ऐसे में भारत को नौसेना को भी मुस्तैद रखना जरूरी है. मतलब हमारी सैन्य जरूरतें ज्यादा और गंभीर हैं.
लेकिन तमाम स्वदेशी योजनाओं के बावजूद अब भी हम दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातक हैं. मतलब डिफेंस बजट ज्यादा रखना हमारी मजबूरी है, इसमें भी पेंशन और वेतन के बाद एक बड़ा हिस्सा आयात में जाता है.
यहां हम मोदी सरकार के दौरान बीते 10 सालों में रक्षा बजट की बढ़त, आयात के मौजूदा हाल के साथ-साथ दुनिया में हमारे खर्च की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करेंगे.
बीते 10 साल में रक्षा बजट तीन गुना तक बढ़ चुका है. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2013-14 में रक्षा बजट के लिए 2,03,672 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. जबकि 1 फरवरी 2024 को निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए रक्षा क्षेत्र के लिए 6,21,541 करोड़ रुपये से ज्यादा का बजट पास किया है. लेकिन क्या सही मायने में रक्षा बजट तीन गुना बढ़ा है? क्या वाकई आज हम रक्षा पर तीन गुना खर्च कर रहे हैं?
दरअसल यहां दो फैक्टर अहम हो जाते हैं. पहला, हमें हर साल बढ़ती महंगाई को इसमें एडजस्ट करना होगा. दूसरा, डॉलर-रुपये के संतुलन को भी ध्यान में रखना होगा. रुपये की स्थिति बीते 10 साल में डॉलर की तुलना में काफी खराब हुई है. 2014 में एक डॉलर 60-62 रुपये के आसपास था, जबकि आज करीब 82 रुपये का एक डॉलर है. आखिर भारत दुनिया का सबसे बड़ा आर्म्स एक्सपोर्टर है और ट्रांजैक्शंस का एक बड़ा हिस्सा डॉलर में ट्रेड करता है.
स्थिति को थोड़ा बेहतर समझने के लिए हम डॉलर में आंकड़ों को समझ सकते हैं. SIPRI के मुताबिक, भारत रक्षा पर 2014 में 50 बिलियन डॉलर खर्च किए, जबकि 2023 में भारत का रक्षा खर्च करीब 83 बिलियन डॉलर है. मतलब बीते दस साल में खर्च डेढ़ गुने से कुछ ज्यादा बढ़ा है.
अगर GDP के परसेंटेज के हिसाब से देखें तो 2014 में GDP का 2.5% हिस्सा रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित किया गया था. जबकि 2024 में रक्षा बजट GDP के 2% हिस्से से भी कम (1.9%) रहा. मतलब GDP के हिस्से के तौर पर रक्षा बजट में कमी आई है.
वैसे बता दें 1988 में भारत GDP का 3.7% तक रक्षा पर खर्च कर रहा था. लेकिन इकोनॉमिक रिफॉर्म्स के बाद रक्षा बजट को 2-3% के तय वैश्विक पैमाने से मिलाने की कोशिश की गई. इस बीच भारत की अर्थव्यवस्था ने भी तेजी से विकास किया, जिसके चलते कम परसेंटेज के बावजूद जरूरत का पैसा आवंटित हो पाया.
SIPRI (Stockholm International Peace Research Institute) के मुताबिक 2014 में ग्लोबल डिफेंस बजट 1,776 बिलियन डॉलर था. तब भारत का रक्षा बजट 50 बिलियन डॉलर, मतलब दुनिया के रक्षा बजट का 2.8% था.
2023 में दुनिया का रक्षा बजट 2,443 बिलियन डॉलर है. इसमें भारत की हिस्सेदारी 3.4% (83 बिलियन डॉलर) है. मतलब दस साल में दुनिया के रक्षा बजट में भारत की हिस्सेदारी 0.6% बढ़ी है.
वैश्विक रक्षा खर्च (2023) जुड़ी कुछ अहम जानकारी:
ग्लोबल डिफेंस स्पेंडिंग में अमेरिका की हिस्सेदारी अकेले ही 37% (916 बिलियन डॉलर) है.
इसके बाद चीन (12%), रूस (4.5%), भारत (3.4%), सऊदी अरब (3.1%), UK (3.1%) और जर्मनी (2.7%) का नंबर है.
31 नाटो सदस्यों ने मिलकर 2023 में 1341 बिलियन डॉलर रक्षा खर्च के लिए आवंटित किए. ये वैश्विक बजट का 55% हिस्सा है.
2013 में भारत का रक्षा बजट दुनिया में 9वें नंबर पर था. 2014 में ये भारत 7वें पायदान पर आया.
जबकि 2023 में भारत का रक्षा बजट दुनिया में सिर्फ अमेरिका, चीन और रूस से ही कम है. मतलब भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट आवंटित करता है.
बीते 15 सालों के ट्रेंड को देखें तो ग्लोबल डिफेंस इंपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी में गिरावट दर्ज की गई है.
अगर हम 2009 से 2013 के बीच दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार की खरीदारी करने वाले देशों की बात करें तो तब भी भारत पहले नंबर पर था. तब कुल ग्लोबल आर्म्स इंपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 14% थी. दूसरे नंबर पर चीन और पाकिस्तान का नंबर था, जिनकी हिस्सेदारी 5-5% की थी.
2014 से 2018 के बीच भारत की आर्म्स इंपोर्ट की वैश्विक हिस्सेदारी में कमी आई. हालांकि तब भी भारत नंबर एक हथियार खरीदार बना रहा और ग्लोबल इंपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी 9.1% रही. वहीं 2019 से 2023 के बीच भारत की हिस्सेदारी कुछ बढ़कर 9.4% हो गई.
SIMPRI के मुताबिक, 2013 में भारत ने कुल 5.37 बिलियन डॉलर का रक्षा आयात किया था.
2014 में रक्षा आयात में जबरदस्त गिरावट आई और आयात महज 3.33 बिलियन डॉलर का ही रहा.
2018 तक लगातार इसमें गिरावट आती रही. इसके बाद 2021 में 4.17 बिलियन डॉलर का आयात किया गया, जो 2022 में गिरकर 2.85 बिलियन डॉलर रह गया.
कुल मिलाकर कहा जाए तो इन 10 सालों में भारत में रक्षा आयात की वैश्विक हिस्सेदारी में ठीक-ठाक कमी आई है. वैसे भारत के डिफेंस ट्रेडिंग पार्टनर्स में भी काफी बदलाव आ रहे हैं. पारंपरिक तौर पर रूस भारत का आर्म्स सप्लायर रहा है. लेकिन अब पश्चिमी देश भी तेजी से तरक्की कर रहे हैं.
भारत को रक्षा निर्यात के मामले में फ्रांस (33%) अब लगभग रूस (36%) के बराबर पहुंच चुका है. जबकि अमेरिका, इजरायल और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के साथ भी रक्षा कारोबार में काफी इजाफा हुआ है.
कुलमिलाकर भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के मामले में तरक्की तो की है, लेकिन अभी लंबा रास्ता बाकी है.