हरियाणा में शुरुआती रुझानों के साथ शुरू हुआ कांग्रेस का जश्न मद्धिम पड़ गया है. वोटों की गिनती की शुरू हुई तो गेम कांग्रेस के पाले में था. ये सीन कुछ देर तक टिका भी रहा, लेकिन दोपहर होते-होते सीन बदल गया. नतीजे घोषित होने का इंतजार अब भी है, लेकिन ट्रेंड BJP के पक्ष में टिका हुआ है.
BJP की ओर से निवर्तमान CM नायब सिंह सैनी फिर से सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं, जबकि कांग्रेस की ओर से भूपेंद्र सिंह हुड्डा अलग ताल ठोंकते दिख रहे हैं. लेकिन हरियाणा में जिस तरह से अचानक BJP ने बढ़त बनाई है, वो चौंकाने वाला है. बड़ा सवाल यही है कि BJP के कौन-से नैरेटिव काम आए और पार्टी की हैट्रिक लगने के चांसेस बनने लगे. आइए समझने की कोशिश करते हैं.
हरियाणा में BJP के खिलाफ जो एंटी-इनकम्बेंसी बनती दिख रही थी, उसे पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदलकर दूर करने की कोशिश की. मनोहरलाल खट्टर करीब 10 साल मुख्यमंत्री रहे. लेकिन चुनाव से चंद महीने पहले उनको जिस तरह से हटाया गया, उसने दिखा दिया कि BJP ऐसा कर 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी खत्म करना चाह रही है. जाट वर्सेज नॉन-जॉट के समीकरण के बीच OBC चेहरे नायब सिंह सैनी को तवज्जो दी गई. वे खट्टर के करीबी भी बताए जाते हैं, सो इस फैसले से खट्टर को दिक्कत भी नहीं हुई.
हरियाणा में कुमारी शैलजा और भूपेंद्र हुड्डा दोनों ही CM पद के दावेदारों में शामिल हैं और इसी वजह से दोनों नेताओं के बीच खटपट की खबरें अक्सर सुर्खियां बनती रहीं. हुड्डा प्रमुख जाट नेता हैं, जबकि शैलजा दलित राजनीति का चेहरा. शैलजा को प्राथमिकता नहीं दिए जाने को BJP ने मुद्दे की तरह भुनाया.
कुमारी शैलजा को उनकी इच्छा के बावजूद कांग्रेस ने विधानसभा का टिकट नहीं दिया गया और उनके करीबियों को भी कम टिकट मिले. BJP ने इस मुद्दे को खूब उठाया और संदेश देने की कोशिश की कि कांग्रेस दलित नेताओं की कद्र नहीं करती. PM मोदी तक भी इशारों में प्रहार करते दिखे. शैलजा को BJP ने इसके काउंटर नरेटिव की तरह इस्तेमाल किया.
हरियाणा में BJP ने कांग्रेस शासनकाल के भ्रष्टाचार और अपने राज में बिना भेदभाव नौकरी देने को मुद्दा बनाया. BJP ने कांग्रेस पर खर्ची-पर्ची के जरिये नौकरी देने का मुद्दा उठाया. खर्ची यानी पैसे और पर्ची माने सिफारिश.
BJP ने खर्ची-पर्ची के जरिए भूपेंद्र हुड्डा की पिछली सरकार को घेरती रही. वहीं अपने कार्यकाल को लेकर कहा कि उनके राज में बिना भेदभाव के नौकरियां दी गईं. इस विषय की भी खूब चर्चा रही. BJP अगर चुनाव जीतती है तो इसका रोल अहम रहेगा.
1980 में अपनी स्थापना के 2 साल बाद ही BJP हरियाणा चुनाव में उतरी थी. तब BJP ने महज 6 सीटें जीती थीं. फिर 1987 के चुनाव में 16, साल 1996 में 11, साल 2000 में 6 और 2005 में BJP को 2 सीटों पर जीत मिली थी.
इसके बाद साल 2009 में भी पार्टी को महज 4 सीटें ही मिलीं. हरियाणा चुनाव में BJP का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2014 के चुनाव में दिखा और पार्टी को करीब 33% वोट मिले और 47 सीटों पर जीत मिली. 2019 में पार्टी का वोट शेयर बढ़ा, लेकिन सीटें घर कर 40 रह गईं. अब रुझान कंटीन्यू रहे तो ये पार्टी की बड़ी जीत होगी.