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PM Modi NDTV Exclusive: जिंदगी की छोटी-छोटी सीख से बनाई बड़ी-बड़ी पॉलिसी; सबसे अलग, सबसे जुदा! PM नरेंद्र मोदी का दिल खोलकर रख देने वाला इंटरव्यू

राजनीति से लेकर आर्थिक, इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर आम आदमी के मुद्दों पर चुनावों के बीच में और नतीजों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ NDTV के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया की अब तक की सबसे बेबाक और संजीदा बातचीत.
NDTV Profit हिंदीमोहम्मद हामिद
NDTV Profit हिंदी08:02 PM IST, 19 May 2024NDTV Profit हिंदी
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लगातार 2 बार ऐतिहासिक जनादेश हासिल करने के बाद अब मोदी सरकार तीसरी बार सत्ता में वापसी का दम भर रही है और वो भी एक पर्वत से दिखने वाले लक्ष्य को सामने रखकर. मोदी सरकार का अबकी बार 400 पार का ये संकल्प ऐसे वक्त में है, जब विपक्ष न तो 2014 के चुनावों जैसा नदारद है और न ही 2019 जैसा बिखरा हुआ, क्योंकि आज INDI अलायंस का मोर्चा सामने है.

ऐसे में BJP के लिए ये चुनाव पिछले दो चुनावों से कैसे अलग है और अगर PM मोदी तीसरी बार भी देश की बागडोर संभालते हैं तो उनका विजन क्या है. कैसे वो भारत को विकसित देश बनाएंगे, ग्लोबल मैप पर भारत की साख को और मजबूत कैसे बनाएंगे.

राजनीति से लेकर आर्थिक, इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर आम आदमी के मुद्दों पर चुनावों के बीच में और नतीजों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ NDTV के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया की अब तक की सबसे बेबाक और संजीदा बातचीत.

संजय पुगलिया: NDTV के दर्शकों का स्वागत है, ये बेहद खास मुलाकात भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ, सर आपने व्यस्तता के बीच समय निकाला, आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

नरेंद्र मोदी: नमस्कार संजय जी और NDTV के सभी दर्शकों को मेरा नमस्कार

संजय पुगलिया: सर अब हम 6 चैनल और 7 डिजिटल प्लेटफॉर्म का एक बड़ा नेटवर्क हो गए हैं. अभी हमने NDTV मराठी भी लॉन्च किया और एक बिजनेस चैनल भी है, बाकी तो सब पता ही है आपको. तो एक नए नेटवर्क के रूप में हम उभर रहे हैं. और हमको लगता है कि आपने जितनी बातें कही हैं. उसका एक निचोड़ निकालने का इस चर्चा में हम प्रयास करें,

मेरा पहला सवाल आपसे ये होगा आपने 2 वाक्यों का प्रयोग किया कि अब अयोध्या में 1000 साल की बुनियाद रखी जा रही है और 100 साल का एजेंडा बन रहा है जो मोदी युग के तीसरे अध्याय में इसकी झलक मिलेगी. 2047 की बात तो आप करते ही हैं. गवर्नेंस में इस बार आपका सबसे बड़ा फोकस क्या होने जा रहा है.

नरेंद्र मोदी: आपने देखा होगा कि मैं टुकड़ों में नहीं सोचता हूं, और मेरा बड़ा कॉम्प्रिहेंसिव और इंटीग्रेटेड एप्रोच होता है. दूसरा, सिर्फ मीडिया अटेंशन के लिए काम करना, ये मेरी आदत में नहीं है. मुझे लगा कि किसी भी देश के जीवन में कुछ टर्निंग प्वाइंट्स आते हैं, अगर हम उसे पकड़ लें तो बहुत बड़ा फायदा होता है. व्यक्तिगत जीवन में भी, उत्साह बढ़ जाता है, नई चीज बन जाती है. वैसे ही जब हम आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहे थे, तब मेरे में सिर्फ 75 साल तक सीमित नहीं था, मेरे मन में आजादी के 100 साल थे. मैंने सभी संस्थाओं से पूछा कि देश जब 100 साल का होगा तब आप क्या करोगे, आप अपनी संस्था को कहां ले जाएंगे.

जैसे अभी 90 साल का एक कार्यक्रम था RBI का तो मैं गया था. मैंने कहा, RBI जब 100 साल का होगा तब आप क्या करेंगे, देश जब 100 साल का होगा तब आप क्या करेंगे. हमने अगले 25 साल को यानी 2047 को ध्यान में रखते हुए लाखों लोगों से बात की, एक महामंथन किया. 15-20 लाख सुझाव मुझे यूथ से आए हैं. एक बहुत बड़ी एक्सरसाइज हुई, कुछ तो अफसर रिटायर्ड भी हो गए, इतने लंबे समय से मैं इस काम को कर रहा हूं. मंत्रियों, सचिवों, एक्सपर्ट्स सबके सुझाव हमने लिए हैं.

उसको भी हमने बांटा है, पहले 25 साल, 5 साल, 1 साल और 100 दिन, चरणबद्ध तरीके से इसका एक खाका तैयार किया है. इसमें कई चीजें जुड़ेंगी, कुछ चीजें छोड़नी पड़ सकती हैं, लेकिन मोटा-मोटा हमको पता है कि कैसे होगा. हमने 25 दिन अभी इसमें और जोड़े हैं. मैंने देखा कि यूथ बहुत उत्साहित है. उमंग को अगर चैनेलाइज कर देते हैं, तो अतिरिक्त फायदा मिल जाता है. इसलिए मैं 100 दिन प्लस 25 दिन, 125 दिन काम करना चाहता हूं.

अभी हमने MyBharat लॉन्च किया है, आने वाले दिनों में माय भारत को किस प्रकार से देश के युवा को जोड़ूं, और मैं युवा शक्ति को बड़े सपने देखने की आदत डालूं, युवाओं के बड़े सपने साकार करने के लिए उनकी आदतों में कैसे बदलाव लाऊं. उस पर मैं फोकस करना चाहता हूं.

मैं मानता हूं कि इन सारे प्रयासों का परिणाम होगा. मैं विरासत और विकास दोनों को जोड़कर चलता हूं. तब मैने लाल किले से भी कहा था और आज मैं दोबारा कह रहा हूं कि अब देश कुछ ऐसी घटनाएं घटीं, जिसने 1000 साल तक हमको बड़ी विचलित अवस्था में जीने को मजबूर कर दिया. अब वो घटनाएं घट रही हैं, जो हमें 1000 साल के लिए उज्जवल भविष्य की ओर ले जा रही हैं. तो मेरे मन में साफ है कि ये समय हमारा है, ये भारत का समय है, अब ये मौका हमें छोड़ना नहीं चाहिए.

संजय पुगलिया: आपने बिल्कुल ठीक है और इसके लिए जो बिल्डिंग ब्लॉक्स हैं, एक जो बड़ी चीज उभरकर आई वो था इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम, सड़क, पुल, हाईवे 60 परसेंट से ज्यादा बन गए. एयरपोर्ट डबल हो गए, लोग बहुत ट्रैवेल कर रहे हैं. दरअसल, ये सब इतनी तेजी से बना, उसके बाद भी सब छोटे पड़ रहे हैं. तो आप इसको अभी इंक्रिमेंटल ग्रोथ देखते हैं, या कोई नया फोकस आपके मन में हैं.

नरेंद्र मोदी: एक तो आजादी के बाद, लोग तुलना करते हैं कि जो देश हमारे साथ आजाद हुए, वो इतना आगे निकल गए, हम क्यों नहीं निकल पाए. दूसरा गरीबी को हमने एक वरदान बना लिया, ठीक है चलता है, क्या है...

एक बड़ा और दूर का सोचना, शायद गुलामी के दबाव में कहो या भारत के लोगों का मन ही नहीं है, इसी मिजाज में हम चलते रहे. मैं मानता हूं कि इंफ्रास्ट्रक्चर का दुरुपयोग हमारे देश में बहुत हुआ, इंफ्रास्ट्रक्चर का पहले मतलब ये होता था कि जितना बड़ा प्रोजेक्ट उतनी ज्यादा मलाई. ये मलाई फैक्टर से इंफ्रास्ट्रक्चर जुड़ गया था, उस कारण से देश तबाह हो गया, और मैंने देखा कि सालों तक भी इंफ्रास्ट्रक्चर या तो कागज पर है या तो वहां एक पत्थर लगा हुआ है, शिलान्यास हुआ है. जब मैं आया तो मैंने प्रगति नाम का मेरा एक रेगुलर प्रोग्राम था. मैं रेगुलर इसे रिव्यू करने लगा, और इसे गति देने लगा.

कुछ हमारा माइंडसेट, हमारी ब्यूरोक्रेसी, सरदार साहब (सरदार वल्लभ भाई पटेल) ने कुछ कोशिश की थी. वो लंबे समय तक रहते तो हमारी सरकारी व्यवस्थाओं का जो मूलभूत खाका होता है,उसमें बदलाव आता. वो नहीं आया. ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट यानी गवर्नमेंट अफसरों की ट्रेनिंग का होगा. सरकारी अफसर को ये पता होना चाहिए कि उसकी लाइफ का परपज क्या है. ये तो नहीं कि मेरा प्रोमोशन कब होगा या अच्छा डिपार्टमेंट कब मिलेगा, वो यहां तक सीमित नहीं हो सकता है.

तो ह्मयून रिसोर्स डेवलपमेंट के लिए हम टेक्नोलॉजी कैसे लाए, इस पर हमारा काम है. एक प्रकार से इंफ्रास्ट्रक्चर में भी, फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर. अब इंफ्रास्ट्रक्चर के तीन स्टेप में भी एक और बात है मेरे मन में, एक तो स्कोप बहुत बड़ा होना चाहिए, टुकड़ों में नहीं होना चाहिए. दूसरा स्केल बहुत बड़ा होना चाहिए और स्पीड भी उसके अनुसार होना चाहिए. यानी स्कोप, स्केल और स्पीड, उसके साथ स्किल होनी चाहिए. अगर ये चारों चीजें हम मिला लेते हैं, मैं समझता हूं कि हम बहुत अचीव कर लेते हैं. और मेरी कोशिश यही होती है, स्किल भी हो, स्केल भी हो, और स्पीड भी हो और कोई स्कोप जाने नहीं देना चाहिए. ये मेरी कोशिश रहती है.

अब देखिए हमारे कैबिनेट के निर्णय, पहले कैबिनेट के नोट बनने में तीन महीने लग जाते थे. मैंने कहा- ऐसा नहीं चलेगा, पहले बताइए, कहां रुकावट है. धीरे-धीरे करते करते मैं इसे 30 दिन ले आया. हो सकता है आने वाले दिनों में मैं इसे और कम कर दूंगा. स्पीड का मतलब ये नहीं है कि सिर्फ कंस्ट्रक्शन की स्पीड बढ़े, निर्णय और प्रक्रियाओं में भी गति आनी चाहिए. हर चीज की तरफ मैं ध्यान केंद्रित करता हूं.

आपको ध्यान होगा, जिस पर बहुत कम लोगों का है. मैं मानता हूं कि आप एक पूरा टीवी प्रोग्राम कर सकते हैं इस पर, इसका नाम है गतिशक्ति. जैसे दुनिया में हमारे डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की चर्चा होती है. लेकिन गतिशक्ति की उतनी चर्चा नहीं है. टेक्नोलॉजी का एक अद्भुत उपयोग, स्पेस टेक्नोलॉजी का एक अद्भुत उपयोग, और भारत में कहीं पर भी इंफ्रास्ट्रक्चर का प्रोजेक्ट करना है, लॉजिस्टिक्स खर्च को कम करना है, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट बढ़ाना है. गतिशक्ति एक ऐसा प्लेटफॉर्म है. जब मैंने पहली बार इसको लॉन्च किया तो राज्यों के चीफ सेक्रेटरीज खुश हो गए. हमारी गतिशक्ति प्लेटफॉर्म पर जो डेटा है, 1600 लेयर्स हैं. कोई भी चीज डालेंगे तो 1600 लेयर्स से वेरिफाई होकर आता है कि यहां पर कर सकते हैं और या नहीं कर सकते हैं. ये अपने आप में एक बड़ी ही यूनीक चीज है. इंफ्रास्ट्रक्चर प्लानिंग में हमे बहुत बड़ी सुविधा रहती है. इसलिए हमें लगता है कि हम बहुत गति से आगे बढ़े हैं.

अब UPI की बात करें, फिनटेक की दुनिया में आज ये बहुत बड़ा काम हुआ है. इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती के लिए करीब 11-12 लाख करोड़ रुपये खर्च करते हैं, जो पहले कभी डेढ़ या दो लाख करोड़ रुपये रहता था. रेलवे में भी, आधुनिक रेलवे बनाने की दिशा में काम हुआ, इतना ही नहीं, हमने अनमैंड क्रॉसिंग (मानवरहित क्रॉसिंग) की समस्या को पूरी तरह से जीरो कर दिया. रेलवे स्टेशन की सफाई देखिए, हर चीज में बारीकी से ध्यान दिया गया है. हमने इलेक्ट्रिफिकेशन पर बल दिया, करीब करीब 100 परसेंट इलेक्ट्रिफिकेशन पर हम चले गए हैं.

पहले हमारे यहां गुड्स ट्रेन थी या पैसेंजर ट्रेन थी, मैंने उसमें एक यात्री ट्रेन की परंपरा शुरू की. जैसे रामायण सर्किट की ट्रेन चलती है, एक बार पैसेंजर अंदर गया, तो पूरे 18-20 दिन की यात्रा के दौरान उसे सारी सुविधाएं मिलती हैं. सीनियर सिटिजन के लिए बहुत बड़ा काम हुआ है. जैन तीर्थ क्षेत्रों के लिए यात्रा चल रही है, द्वादश ज्योतिर्लिंग की चल रही है, बुद्ध सर्किट की चल रही है. यानी इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाकर छोड़ देने स बात नहीं बनती है. हमने उसका ऑप्टिमम यूटिलाइजेशन का भी प्लान साथ साथ करना चाहिए और उस दिशा में हम काम कर रहे हैं.

संजय पुगलिया: आपने जो अभी जिक्र किया उससे मुझे जो समझ आया, जो हेडलाइन है वो ये कि ब्यूरोक्रेसी में आपने बहुत परिवर्तन पहले ही किए हैं, आपने सरदार पटेल का भी हवाला दिया, मुझे लगता है कि इन सारे कामों को अंजाम देने में गवर्नेंस स्ट्रक्चर में ब्यूरोक्रेटिक बदलाव बड़े पैमाने पर आप करने जा रहे हैं.

नरेंद्र मोदी: पहली बात ये है कि एक तो ट्रेनिंग बहुत बड़ी चीज है, रिक्रूटमेंट प्रोसेस बहुत बड़ी चीज है, और मैंने इस पर बड़ा बल दिया है. ट्रेनिंग संस्थाओं को हमने पूरी तरह से बदल दिया है. टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग हमारे यहां हर लेवल पर है, उस दिशा में हम बल दे रहे हैं, अब रिक्रूटमेंट में भी मैंने लोअर लेवल के इंटरव्यू सब समाप्त कर दिए हैं, वो भ्रष्टाचार का अड्डा बन गए थे. गरीब आदमी को लूटा जाता था. अब मेरिट के आधार पर कंप्यूटर तय करता है उनको नौकरी दे देते हैं. इससे समय भी बच जाता है, हो सकता है उसमें 2-3 परसेंट ऐसे लोग भी आ जाएंगे जो शायद न होते तो अच्छा होता, लेकिन बेईमानी से तो 15 परसेंट लोग आ जाते हैं.

दूसरी बात है, आजकल मेरी कैबिनेट में एक महत्वपूर्ण परंपरा चली है. पार्लियामेंट का कोई बिल आता है न, तो ग्लोबल स्टैंडर्ड की एक नोट आती है साथ में. दुनिया में उस फील्ड में कौन सा देश सबसे अच्छा कर रहा है. उसके कानून नियम क्या हैं. हमें वो अचीव करना है तो वो हमें कैसे करना चाहिए, यानी अब मेरे हर कैबिनेट नोट को ग्लोबल स्टैंडर्ड से मैच करके लाना होता है. और इस कारण मेरी ब्यूरोक्रेसी की आदत हो गई है, कि सिर्फ बातें करने से नहीं होगा कि दुनिया में हम सबसे बढ़िया हैं. दुनिया में बढ़िया क्या है बताओ और उससे हम कितना दूर हैं. वहां जाने का हमारा रास्ता क्या है. अब जैसे हमारे यहां 1300 आयलैंड (द्वीप) हैं. आप हैरान हो जाएंगे, जब मैंने आकर पूछा, तो हमारे पास कोई रिकॉर्ड ही नहीं था, कोई सर्वे ही नहीं था. मैंने स्पेस टेक्नोलॉजी का उपयोग करके, भारत के पास जितने आयलैंड हैं उसका सर्वे किया. कुछ आयलैंड तो करीब करीब सिंगापुर की साइज के हैं. इसका मतलब भारत के लिए नए सिंगापुर बनाना मुश्किल काम नहीं है, अगर हम लग जाएं तो. हम दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. यानी ब्यूरोक्रेसी में चेंज, डिसिजन मेंकिंग में चेंज, बड़ी योजनाओं को अंजाम देना है तो उस दिशा में हम काम कर रहे हैं.

संजय पुगलिया: ये आपने बड़ा इंटरेस्टिंग जिक्र किया, सिंगापुर का एक उदाहरण देकर, फिर ये अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि इस बार जब हम इंफ्रास्ट्रक्चर और डेवलपमेंट की बात कर रहे हैं, तो कुछ ऐसी चीजें हो जाएंगी बहुत जल्दी, जो शायद हमारी सामूहिक सोच अभी सोच भी नहीं पा रही है.

नरेंद्र मोदी: बहुत होगा जी, अब जैसे डिजिटल एम्बैसी की कल्पना है, हम काफी मात्रा में इसको प्रोमोट कर रहे हैं. आप जो डिजिटल क्रांति भारत में देख रहे हैं, शायद मैं समझता हूं कि गरीब को इम्पावरमेंट का एक सबसे बड़ा साधन ये डिजिटल डिवॉल्यूशन है. असमानता कम करने में डिजिटल डिवॉल्यूशन बहुत बड़ी मदद करेगा. मैं समझता हूं कि AI, दुनिया ने ये मानना शुरू किया है कि AI में भारत पूरी दुनिया को लीड करेगा. हमारे पास उस तरह का टैलेंट है यूथ है, जो बहुत कुछ कर सकता है. दूसरा भारत के पास विविधताएं बहुत हैं, हमारे डेटा की ताकत बहुत है.

मैं अभी कंटेंट क्रिएटर्स और गेमिंग वालों से मिला था, मैंने उनसे पूछा कि क्या कारण है जो ये इतना फैल रहा है. वो बोले कि डेटा बहुत सस्ता है. दुनिया में डेटा इतना महंगा है, वो बोले कि मैं दुनिया के गेमिंग कम्पटीशन में जाता हूं, तो इतना महंगा पड़ता है, भारत में जब बाहर के लोग आते हैं तो उन्हें आश्चर्य होता है. आज ऑनलाइन सब चीजें एक्सेस हैं. कॉमन सर्विस सेंटर करीब पांच लाख से ज्यादा है. यानी हर गांव में और बड़े गांव में 2-3 कॉमन सर्विस सेंटर हैं. अगर किसी को रेलवे रिजर्वेशन कराना है तो वो अपने गांव में ही कॉमन सर्विस सेंटर से करा लेता है. ये सिटिजन सेंट्रिक व्यवस्थाएं हुईं हैं, इसका बहुत बड़ा लाभ है.

गवर्नेंस में मेरा एक फिलॉसफी है, उसको मैं कहता हूं P2G2 यानी प्रो पीपुल-गुड गवर्नेंस. मुझे याद है मैं न्यूयॉर्क में प्रोफेसर पॉल रॉमर्स से मिला था. वो नोबेल प्राइस विनर हैं. उनके साथ काफी सारी बातें हुईं, तो वो मुझे सुझाव देते थे कि डॉक्यूमेंट रखने वाले सॉफ्टवेयर की जरूरत है, जब मैंने उनको कहा कि मेरे देश में डिजीलॉकर है, मैंने उनको मोबाइल में सारी चीजें बताईं तो वो इतना उत्साहित हो गए, दुनिया जो सोचती है, हम कई गुना इस डिजिटल की दुनिया में आगे बढ़ चुके हैं. आपने G20 में भी देखा होगा, भारत के डिजिटल डिवॉल्यूशन की चर्चा थी.

संजय पुगलिया: ये बिल्कुल सही कहा आपने, डिजिटल में जो पब्लिक डिजिटल इंफ्रास्टक्चर भारत ने बनाया है, वो दुनिया भर के देश आपसे कॉपी करके लेना चाह रहे हैं. और एक खुद का अनुभव बताऊं आजकल 10 में से 9 लोग जो छोटे रोजगार वाले हैं. उनको आप कैश देना चाहें तो 10 में से 9 लोग मना करते हैं कि कैश नहीं लेंगे, ये बड़ा परिवर्तन है.

नरेंद्र मोदी: देखिए, ये रेहड़ी-पटरी वाले लोग हैं न, उनको बैंक वाले पैसे नहीं देते थे. ये मेरे डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का फायदा हुआ कि रेहड़ी-पटरी वालो को बैंक से लोन मिला. हर रेहड़ी-पट्टी वाले के यहां आपको क्यू-आर कोड मिलेगा. उसको मालूम है कि मैं इसका उपयोग कैसे करुंगा. वो पढ़े लिखे नहीं हैं तो उनको वॉयस से मैसेज आता है. उसको पता है कि मेरा पैसा मेरे अकाउंट में जमा हो गया. व्यवस्था पर विश्वास भी बढ़ा है उसका.

संजय पुगलिया: आपकी जो ग्रोथ और विकास के टारगेट हैं, उसमें एग्रीकल्चर से लोगों को शिफ्ट करना और मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाना, PLI की सफलता बहुत सारे सेक्टर्स में बहुत अच्छी रही. लेकिन यहां पर हमको लगता है कि बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है, ताकि लोग भारत में प्रोड्यूस करें, आईफोन एक उदाहरण है, उसको एक्स्ट्रापोलेट (विस्तार) करने की जरूरत है. इस पर क्या सोचते हैं

नरेंद्र मोदी: देखिए जिन लोगों ने बाबा साहब अंबेडकर का अध्ययन किया है न, बाबा साहब अंबेडकर एक बहुत बढ़िया बात बताते थे. हमारे देश के राजनेताओं ने उसकी अनदेखी की है. बाबा साहब कहते थे इस देश में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन बहुत जरूरी है. क्योंकि देश का दलित, आदिवासी जमीन का मालिक है ही नहीं. वो एग्रीकल्चर में कुछ नहीं कर सकता है. उसके लिए इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन का हिस्सा बनना बहुत जरूरी है. इसलिए मैं मानता हूं कि भारत में हम एग्रीकल्चर पर जितना बोझ हम कम करेंगे, आज उस पर बोझ बहुत है. बोझ कम करने के लिए कानून काम नहीं करता है, डायवर्सिफिकेशन काम करता है. डायवर्सिफिकेशन तब होता है जब आपके डी-सेंट्रलाइज्ड तरीके से इंडस्ट्रियल नेटवर्क हो. अगर दो बेटे हैं तो एक बेटा इंडस्ट्री के काम में चला जाएगा और एक बेटा खेती संभालेगा, तो खेती पर जो बोझ है वो कम हो जाएगा. एग्रीकल्चर को वायबल, मजबूत बनाने के लिए भी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट जरूरी है. हम एग्रीकल्चर का वैल्यू एडिशन करने वाली इंडस्ट्री जितनी ज्यादा बढ़ाते हैं, तो सीधा-सीधा फायदा है. नहीं तो हम डायवर्सिफिकेशन की तरफ ले जाएं तो उसका फायदा है.

मेरा गुजरात का अनुभव रहा है. गुजरात तो एक ऐसा राज्य है, जिसके पास खुद के अपने कोई मिनरल्स नहीं हैं. ज्यादा से ज्यादा नमक के सिवा कुछ है नहीं गुजरात के पास. ऐसे समय में गुजरात एक ट्रेडर स्टेट बना था. एक तो 10 साल में 7 साल अकाल, एग्रीकल्चर में भी हम पिछड़े थे. एक जगह माल लेते थे, दूसरी जगह देकर गुजारा करते थे. उसमें से रिवॉल्यूशन आया, एग्रीकल्चर में रिवॉल्यूशन आया, इंडस्ट्री में रिवॉल्यूशन आया, वो मेरा अनुभव मुझे यहां बहुत काम आ रहा है. हमारी इंडस्ट्री में हमें क्लस्टर डेवलप करने चाहिए. जैसे मेरी एक छोटी सी स्कीम है, वन डिस्ट्रक्ट-वन प्रोडक्ट, ये डिस्ट्रक्ट की पहचान बन रही है, इसमें वैल्यू एडिशन हो रहा है, टेक्नोलॉजी आ रही है, क्वालिटी आ रही है.

आज देखिए भारत की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में बहुत बड़ी संभावनाएं हैं, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए बहुत संभावनाएं हैं. हमने स्पेस को ओपन-अप कर दिया. हमने देखा कि स्पेस में इतने स्टार्टअप्स आए हैं. ये सारे स्टार्टअप टेक्नोलॉजी को लीड कर रहे हैं. हम मोबाइल फोन इंपोर्टर थे, आज हम मोबाइल फोन के दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मैन्युफैक्चरर हो गए हैं. आज हम दुनिया के अंदर आईफोन को एक्सपोर्ट कर रहे हैं. दुनिया में 7 में से 1 आईफोन हमारे यहां बनता है. गुजरात में जो मेरा डायमंड का अनुभव रहा, आज दुनिया में 10 में से 8 डायमंड वो होते हैं, जिस पर किसी न किसी हिंदुस्तानी का हाथ लगा होता है. अब उसका अगला चरण मैं देख रहा हूं, वो है ग्रीन डायमंड का, लैब ग्रोन डायमंड (लैब में बने डायमेंड) का. दुनिया में बहुत बड़ा मार्केट हो रहा है. मैं जब गुजरात में था तो थोड़ी शुरुआत की थी, अब काफी बढ़ रहा है. आने वाले दिनों में लैब ग्रोन डायमंड में भी हम काफी प्रगति करेंगे.

सेमीकंडक्टर, हम कुछ ही दिनों में चिप लेकर आएंगे, मैं मानता हूं कि ट्रांसपोर्टेशन के साथ जुड़ी हुई चिप्स का जो कारोबार है. उसमें हो सकता है हम हब बन जाएं. हम डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग में बहुत तेजी से काम कर रहे हैं. करीब 1 लाख करोड़ रुपये का डिफेंस प्रोडक्शन देश में शुरू हुआ है. करीब 21 हजार करोड़ रुपये का डिफेंस एक्सपोर्ट हुआ है. हम पहले हर छोटी चीज भारत से लाते थे. हमारे आंत्रप्रेन्योर को भी लगा है कि हम बना सकते हैं और दुनिया हमसे खरीद रही है. मैं समझता हूं कि भारत पूरी तरह इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन में टेक ऑफ स्टेज पर है.

संजय पुगलिया: आपने बिल्कुल ठीक कहा कि टेक ऑफ स्टेज पर है और आपने जो इनोवेशंस किए हैं, उसके कारण अब ग्लोबल इन्वेस्टर्स को भारत में इन्वेस्ट करने के लिए जिज्ञासा और दिलचस्पी बहुत है. लेकिन वो सोचते हैं कि कुछ बोल्ड फैसले आपकी तरफ से, नई सरकार की तरफ से बड़े जरूरी होंगे, ताकि बड़ा इन्वेस्टमेंट आए, और इस स्केल को जिसकी कल्पना आ भी करते हैं, उसको बहुत बढ़ा सकें.

नरेंद्र मोदी: पहली बात कि बाहर से जब लोग आते हैं तो वो सिर्फ भारत सरकार देखकर आए, इतने से बात बनती नहीं. स्टेट गवर्नमेंट और लोकल सेल्फ गवर्नमेंट, तीनों की नीतियों में एक सूत्रता चाहिए. अगर मान लीजिए अगर भारत सरकार कोई पॉलिसी लेकर आती है, और दुनिया की कोई इंडस्ट्री आती है. भारत के पास तो एक इंच जमीन नहीं है, वो क्या करेगी. वो तो स्टेट को कहेंगे कि देखो वो आया है. उस स्टेट की पॉलिसी मैच होनी चाहिए. फिर जिस गांव या शहर में जा रहा है, वहां के जो कानून है, वो उसके अनुकूल होने चाहिए. मैंने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का मूवमेंट चलाया था, उसके पीछे मेरा इरादा था कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय स्वराज समुदाय, तीनों के निर्णय ऐसे हों जो इन चीजों के लिए अनुकूल हों. अभी भी कुछ रुकावट है, लेकिन अब एक कम्पटीशन मैं देख रहा हूं. और मैं हमेशा Competitive, Cooperative federalism को मानता हूं. राज्यों के बीच में एक तंदुरुस्त स्पर्धा हो, अब वो स्पर्धा राज्यों के बीच में धीरे-धीरे आ रही है. वो अपने नियमों को ठीक-ठाक कर रहे हैं. ब्यूरोक्रेसी में बदलाव कर रहे है. अगर मुझे राज्यों का सहयोग मिल गया. तब तो मैं मानता हूं कि दुनिया में कोई व्यक्ति भारत के सिवा कहीं नहीं जाएगा.

संजय पुगलिया: ये एक बहुत जरूरी काम है, और इससे जुड़ा हुआ दूसरा है, जिसके बार में आपकी छवि पहले से ही यही है, कि फिस्कल डिसिपलिन के मामले में आप बहुत सख्त हैं. लेकिन आजकल गारंटियों का मुकाबला चल रहा है. और आप डबन डाउन करते हैं कि ईज ऑफ लिविंग के लिए लोगों की जिंदगियों को खुशहाल बनाना है. तो कुछ इन्वेस्टर्स को ये आशंका होती है कि फिस्किल डिसिपलिन का क्या होगा.

नरेंद्र मोदी: मेरे केस में किसी को आशंका नहीं है, जिन लोगों ने गुजरात के कार्यकाल को देखा है. मैं फाइनेंशियल डिसिपलिन का बहुत आग्रही रहा हूं, नहीं तो कोई देश चल नहीं सकता है. फिस्कल डेफिसिट उसका एक क्राइटेरिया होता है. अभी आपने देखा होगा, चुनाव के पहले मेरा बजट आया, सबके पुराने आप मीडिया के आर्टिकल देखें, ये तो चुनाव के साल का बजट है, मोदी रेवड़ियां बांटेगा, चुनाव जीतेगा. जब बजट आ गया, तो लोगों को आश्चर्य हुआ कि ये तो चुनावी बजट है ही नहीं.

संजय पुगलिया: आपके पास फिस्कल स्पेस था खर्च करने के लिए और आपने नहीं किया

नरेंद्र मोदी: मैंने डेवलपमेंट के लिए खर्च करना तय किया, क्योंकि मुझे मालूम है मुझे गरीबी से इस देश को मुक्त करना है. तो मुझे गरीब को एम्पावर करना होगा. गरीब को अवसर देना होगा. गरीब, गरीबी में रहना नहीं चाहता है, वो बाहर निकलना चाहता है. उसको हाथ पकड़ने वाला कोई चाहिए. देखिए- UPA सरकार जब थी, फिस्कल डेफिसिट उन्होंने स्वीकार नहीं किया, इसका साइड इफेक्ट इतना हुआ . मैं मानता हूं फिस्कल डेफिसिट को आपको रिलिजियसली फॉलो करना चाहिए.

दुनिया में क्या हाल हुआ, कुछ लोगों को लगा कि कोरोना में नोट छापो और बांटो, दुनिया में लोग अब भी महंगाई से बाहर नहीं आ रहे हैं. फिस्कल डेफिसिट को हमने कंट्रोल किया. दूसरा मैंने देखा है कि जैसे-जैसे टैक्सेशन आप कम करोगे, आपका रेवेन्यू बढ़ता जाएगा. इनकम टैक्स भरने वालों की संख्या डबल हो रही है. GST रजिस्ट्रेशन की संख्या बढ़ रही है. लोगों को भरोसा है कि सरकार की तरफ से कोई दिक्कत नहीं है.

दूसरा विषय वेलफेयर का है, मैं वेलफेयर को एक प्रकार से भारत के सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर का एक बहुत बड़ा महत्व का हिस्सा मानता हूं, अगर हम वेलफेयर स्कीम को टारगेटेड करें और क्वालिटी ऑफ लाइफ से जोड़कर करें तो वो एसेट बन जाती है. आपने देखा होगा कि मेरे हर एक काम में वेलफेयर स्कीम उनके लिए क्वालिटी ऑफ लाइफ की गारंटी बनती है. एक बार अच्छी जिंदगी की आदत लग जाए तो वो अच्छी जिंदगी जीने का प्रयास करता है. मेरी वेलफेयर स्कीम का सार ये है. जैसे- मैं अनाज मुफ्त नहीं देता हूं, मैं पोषक आहार पर बल देता हूं. मेरे देश को स्वस्थ बचपन चाहिए, वो ही मेरे देश को एक स्वस्थ भविष्य देगा. ऐसी हर चीज पर मैं बहुत बल देकर काम करता हूं.

कैपेक्स में भी पहले करीब 2 लाख करोड़ रुपये था, हम करीब 11-12 लाख करोड़ रुपये कैपेक्स तक पहुंच गए, कितने लोगों को रोजगार के अवसर मिल गए. कितने लोग नए आ गए फील्ड में काम करने वाले.

संजय पुगलिया: आजकल नए युवा भी इन्वेस्टमेंट में बहुत आ रहे हैं. मेरी अपनी राय ये है कि बाजार ने इलेक्शन का नतीजा पहले ही समझकर के बहुत तेजी से ऊपर का रुख कर लिया था. अभी थोड़ी बाजार में नर्वसनेस है कि नतीजे कैसे आएंगे. तो उस पर आप कुछ टिप्पण करना चाहेंगे.

नरेंद्र मोदी: हमारी सरकार ने बहुत सारे इकोनॉमिक रिफॉर्म्स किए हैं, और प्रो-आंत्रप्रेन्योरशिप पॉलिसीज हमारी इकोनॉमी को बहुत बड़ा बल देती है, जो स्वाभाविक है. हमने 25,000 से यात्रा शुरू की थी 75,000 पहुंचे हैं. जितने ज्यादा सामान्य नागरिक इस फील्ड में आते है, इकोनॉमी को बहुत बड़ा बल मिलता. मैं चाहता हूं कि हर नागरिक में जोखिल लेने की क्षमता बढ़नी चाहिए, ये बहुत जरूरी होता है. 4 जून, जिस दिन चुनाव का नतीजा आएगा. आप इस हफ्ते भर में देखना, भारत का शेयर मार्केट कहां जाता है, उनके प्रोग्रामिंग वाले सारे थक जाएंगे.

अब आप देखि PSUs के शेयर आज कहां पहुंचे हैं. PSUs का पहले मतलब ही होता था गिरना, अब स्टॉक मार्केट में इनकी वैल्यू कई गुना बढ़ रही है. HAL को ही देख लीजिए, जिसे लेकर इन लोगों ने जुलूस निकाला, मजदूरों को भड़काने की कोशिश कर रहे थे. आज HAL ने चौथी तिमाही में रिकॉर्ड प्रॉफिट दर्ज किया है. HAL ने 4,000 करोड़ रुपये का प्रॉफिट कमाया है, ऐसा तो इसके इतिहास में भी कभी नहीं हुआ. मैं मानता हूं कि ये एक बहुत बड़ी प्रगति है.

संजय पुगलिया: इकोनॉमी गवर्नेंस से अब थोड़ा पॉलिटिक्स की तरफ चलें और रोजगार का मुद्दा उठाएं तो विपक्ष का एक आरोप है कि रोजगार क्रिएट नहीं हुए हैं, तो रोजगार क्रिएट नहीं हुए हैं या उसका स्वरूप बदल गया है.

नरेंद्र मोदी: पहली बात है कि इतना सारा काम मानव बल के बिना संभव नहीं है, सिर्फ रुपये हैं, तो रोड नहीं बन जाता है. रुपये है, इसलिए रेलवे का इलेक्ट्रिफिकेशन नहीं हो जाता है. मैनपावर लगता है. मतलब रोजगार के अवसर बनते हैं. विपक्ष की बेरोजगारी की बातें हैं, उसमें कोई मुद्दा कोई सच्चाई नजर नहीं आती है. मैं मानता हूं परिवारवादी पार्टियों को इस देश के युवा में क्या बदलाव आए हैं, उनको कुछ समझ नहीं आता है. जैसे कि स्टार्टअप- 2014 के पहले कुछ सैकड़ों स्टार्टअप थे, आज सवाल लाख स्टार्टअप हैं. एक स्टार्टअप यानी 5-5 साल ब्राइट नौजवानों को काम देता है. आज 100 यूनिकॉर्न हैं, यानी 8 लाख करोड़ रुपये का कारोबार. ये वो लोग हैं, जो 20, 22, 25 साल के हैं, बेटे-बेटियां हैं हमारे. आप देख लेना कि गेमिंग की फील्ड में भारत पूरी दुनिया में लीड करेगा. एंटरटेनमेंट इकोनॉमी से अब हम क्रिएटिव इकोनॉमी की तरफ हम मुड़ गए हैं. मैं पक्का मानता हूं कि हमारे क्रिएटर्स मार्केट को शेयर कर लेंगे.

एविएशन सेक्टर को ले लीजिए, हमारे देश में करीब 70 एयरपोर्ट थे. आज करीब 150 एयरपोर्ट हो गए हैं. हमारे देश कुल हवाई जहाज, प्राइवेट और सरकार मिलाकर करीब 600-700 हैं. 1,000 नए हवाई जहाज का ऑर्डर है. कितने प्रकार के लोगों को रोजगार मिलेगा, कोई कल्पना कर सकता है क्या. इसलिए ये जो नैरेटिव है पॉलिटिकल फील्ड में जो लोग हैं, उन्होंने रिसर्च नहीं किया है, उनकी गाड़ी वहीं अटकी हुई है.

PLFS का जो डेटा है, उसका कहना है कि बेरोजगारी आधी हो गई है. 6-7 साल में 6 करोड़ नई जॉब्स जेनरेट हुई हैं. EPFO, ये भी रिकॉर्डेड होता है, कोई हवाबाजी तो है नहीं. 7 साल में 6 करोड़ से ज्यादा नए अवसर रजिस्टर्ड हुए हैं. सरकारी नौकरी को लेकर मैंने एक बहुत बड़ा अभियान चलाया था, तो ये लोग कहते थे मुझे कि नौकरी देने में इतना हो-हल्ला करते हैं. अभी ये जो SKOCH ग्रुप की जो रिपोर्ट आई है, वो बड़ी दिलचस्प है. इसमें कहा गया है कि पिछले 10 साल में हर वर्ष 5 करोड़ पर्सन ईयर रोजगार जेनरेट हुआ है. उन्होंने पैरामीटर के रूप में 22 चीजों को लिया है. ये सारी चीजें धरती पर दिखती भी हैं, ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ कागजों में दिखती है. मैं नॉन गवर्नमेंट जो अलग अलग व्यवस्थाएं हैं, उससे जो बातें आई हैं, मैं उसकी बात कर रहा हूं.

संजय पुगलिया: सर ये पहला चुनाव है जो बोरिंग चुनाव है, सबसे ऐतिहासिक चुनाव है, जिसमें जनादेश क्या आएगा सबको पहले से मालूम है, तो भी हम डिबेट चलाते हैं थोड़ी बहुत, किसको कितनी सीटें आएंगी, तो साउथ इंडिया और ईस्ट इंडिया को लेकर बड़ा भरोसा जाहिर किया है कि BJP को बड़ी सफलता मिलेगी, आप ओवर कॉन्फिडेंट तो नहीं हैं.

नरेंद्र मोदी: पहली बात है कि मैं कॉन्फिडेंस होता है तो भी कभी जताता नहीं हूं, ओवर कॉन्फिडेंस में जीता नहीं हूं. मैं जमीन पर नित्य जीवन का हिसाब किताब करके कदम रखने वाला इंसान रहा हूं. सोचता बड़ा हूं, सोचता दूर का हूं, लेकिन जमीन से जुड़ा रहता हूं. देखिए दक्षिण भारत कहो, या पूर्वी भारत कहो, उत्तरी भारत कहो, या पश्चिमी भारत कहो या मध्य भारत कहो. देश के जनमन में स्थिर है कि ये काम करने वाली सरकार है, देश को आगे ले जाने वाली सरकार है. हमारा भला करने वाली सरकार है. हमारी समस्या की उसको समझ है. जब नागरिक को ये पता होता है कि मेरा दुख उसको पता है. डॉक्टर अच्छा कौन लगता है, आपको अच्छा डॉक्टर वो लगता है जिसके पास जाते ही, जो आपको देखते ही कहे कि आपको पेट में दर्द हुआ है, लेकिन आपकी आंख में क्या हुआ है. वो जिसको पता रहता है ना, ऐसा डॉक्टर अच्छा लगता है. आज देश को लग रहा है कि आज एक ऐसी सरकार है, जिसको हमारे दुखों की चिंता है. हमारे सपनों का उसका अंदाज है, और जो हमारे सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयास करता है. इस कारण मैं मानता हूं कि सामान्य मानवीय के मन में भारतीय जनता पार्टी है.

एक जमाना था, हमारे यहां कहते थे पशुपति से तिरुपति तक, रेड कॉरिडोर था, पूरा नक्सल बेल्ट बना दिया गया था. सिकुड़ता-सिकुड़ता अब ये हट गया है, लोग शांति से जीने लगे हैं. उस मां को कितना आनंद होता है कि उसका बच्चा सही दिशा में जाएगा. वो जंगल में रही है, लेकिन उसको लगता है कि ये मेरे बच्चों का भविष्य देखता है, चिंता करता है. आज देखिए हिंदुस्तान के हर कोण में नॉर्थ ईस्ट देखिए, बंगाल देखिए, असम देखिए, ओडिशा देखिए, तेलुगु भाषी राज्य देखिए, कर्नाटक देख लीजिए, भारतीय जनता पार्टी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है. अब जम्मू कश्मीर में देखिए, वहां के मतदाताओं ने 40 परसेंट वोट किया है, 40 साल के बाद इतनी वोटिंग हो, सरकार के प्रति भरोसा है. और इसलिए मैं कहता हूं कि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक रूप से एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड सेट होने वाला है.

संजय पुगलिया: आपकी ऐसी मान्यता है ऐसे में जो विपक्ष के गठबंधन की परिस्थिति है, उसमें विरोधाभास भी सामने आते हैं. ममता बनर्जी ने कहा कि मैं अलायंस में नहीं रहूंगी, फिर कहा कि सरकार बनेगी तो मैं सरकार को बाहर से समर्थन दूंगी. अखिलेश किधर हैं, पता नहीं. ऐसे में स्थिर सरकार और अस्थिर सरकार, ये भी एक वोटर सोचता है कि मैं किस विषय पर निर्णायक तौर पर तय करूं कि वोट देना है. तो विपक्ष की ये जो परिस्थिति है जो लोकतंत्र को बचाने की गारंटी देता है, उसकी हालत पर आपकी राय.

नरेंद्र मोदी: इतना बड़ा देश,जिसको आप वोट देने जा रहे हो, आप उसको जानते हो क्या, उसका नाम पता है क्या, उसके अनुभव का, क्षमता का पता है क्या. तो ये देश की जनता देखती है. कोई पार्टी अपने नाम बताएं या न बताएं, वो तौलती है, और हमारा पलड़ा बहुत भारी है और उसमें हमें कुछ कहने की जरूरत नहीं है. दूसरा विषय, INDI अलायंस, की फोटो खिंचाने के अलावा कोई गतिविधि दिखती है क्या. फोटो ऑप में पहली INDI अलायंस में जितने चेहरे थे, जाते-जाते, संख्या भी कम हो गई क्वालिटी भी. यानी थर्ड कैटेगरी का व्यक्ति जाता है, फोटो निकलवाकर आ जाता है. उनका कोई कॉमन एजेंडा है क्या, कैम्पेन की कोई स्ट्रैटजी है क्या, कुछ नहीं है. हर कोई अपनी ढपली बजा रहा है, ऐसे में देश को विश्वास नहीं हो सकता है.

अब, कांग्रेस के सबसे विश्वस्त साथी कौन हैं, तो लेफ्ट है. जिनके मन में ये कमिटमेंट है कि भाजपा वाले जाने चाहिए. उससे बड़ा कमिटमेंट तो कोई हो नहीं सकता.इन्होंने जाकर केरल में उसी को पराजित करने के लिए उसके सामने खुद खड़े हो गए, और जो भाषा को प्रयोग हुआ है केरल के चुनाव में, पूरे देश में ऐसी भद्दी भाषा उपयोग में नहीं आई है. मुख्यमंत्री तक के लोगों ने जिस तरह से कांग्रेस के लिए बोला है, मैं अलायंस के लोगों के लिए ये बात कर रहा हूं.

ये बात फिक्स हो गई है, INDI अलायंस के सारे नेता ज्यादातर जमानत पर हैं, और ये सारे केस उनके जमाने के हैं, हमारे जमाने के केस नहीं हैं. अगर सारे एक साथ बिठाओगे तो लगेगा कि ये उसका बेटा है, ये उसका बेटा है...या ये इसका बाप, ये उसका बाप है. यानी ऐसा लगता है कि वो अपने बच्चों को सेट करने के लिए INDI अलायंस में जान भरने की कोशिश कर रहे हैं. देश के बच्चों का भविष्य नजर ही नहीं आता है उसमें, जब ऐसा होता है तो मैं नहीं मानता हूं कि वो देश के लोगों को विश्वास जीत सकते हैं. दूसरी तरफ 10 साल का हमारी सरकार का मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड है. चाहे आतंकवाद के खिलाफ हमारा काम हो, चाहे सुरक्षा के विषय में काम हो, चाहे विकास के मुद्दे पर काम हो, चाहे विदेश नीति हो, चाहे संकट के समय हमारी पहल हो. मैं समझता हूं कि देश की जनता इन सारी बातों को देखती है और उसको तौलती है, और इसलिए देश के सामान्य मानवीय ने मन बना लिया है कि भारत को बहुत आगे ले जाना है तो भारतीय जनता पार्टी, NDA एक विश्वस्त संगठन है, विश्वस्त लीडरशिप है और जिसको हम जानते हैं, जिसका हम ट्रायल ले चुके हैं. जिसको हम नाप चुके हैं. और इसलिए ये सहज समर्थन लगता है.

संजय पुगलिया: चूंकि ऐसा बढ़िया पॉजिटिव माहौल बना हुआ है, मोमेंटम आपकी तरफ है, ऐसे में दो सवाल और हैं, जो विपक्ष वाले आपकी तरफ उठाते हैं, उसमें से पहले ये है कि, तुष्टिकरण की बात आप हमेशा करते रहे हैं, उनका कहना है कि कम्यूनल रंग तो आपने भी दिया है.

नरेंद्र मोदी: यही कह-कहकर उन्होंने अपनी राजनीति चलाई है, और कभी कभी हम भी सोचते थे, कि हां भई जरा संभलकर चलो, लेकिन हर चीज को जब मैं यहां से बैठकर देखता हूं, तो इन्होंने संविधान का अपमान करने के सिवाय कुछ किया नहीं है. संविधान सर्व पथ संभाव की बात कर रहा है. ये लोग घोर साम्प्रदायिक लोग हैं, इनकी हर चीज का आधार साम्प्रदायिक है, और सम्प्रदाय में भी वोट बैंक की राजनीति है. और सम्प्रदाय से भी बाहर कहां जाना है, तो वो जाति है. एक तरफ सम्प्रदाय का वोट बैंक और फिर एक जाति को उठाना. उन्होंने सिर्फ यही खेल किया है. अब मुझे लगता है कि कम्यूनल का लेबल लगे तो लगे, मुझे जिसको कम्यूनल कहना है कहे, इन लोगों के पापों को मैं एक्सपोज करके रहूंगा. और मैं घटनाओं के साथ बताता हूं कि इन्होंने ये नियम ऐसे बनाया था.

मेरा मंत्र है सबका साथ, सबका विकास, गांव के अंदर 100 लोग हैं जिनको बेनेफिट मिलता है. फिर ये मत पूछा कि किस जाति का है, किस बिरादरी का है, किसका रिश्तेदार है, रिश्वत देता है कि नहीं. 100 घर मतलब सबको मिलना चाहिए. इसलिए मेरी योजना है सैचुरेशन है. हर स्कीम के लाभार्थियों को 100 परसेंट मिलना चाहिए, और जब मैं 100 परसेंट कहता हूं न, वो सच्चा सामाजिक न्याय है, तब वो सच्चा सेकुलरिज्म है और तब किसी को शिकायत का मौका नहीं रहता है. लोगों को विश्वास रहता है कि चलो, उसको जून में मिल गया तो मुझे भी दिसंबर आते-आते मेरा नंबर भी लग जाएगा. मुझे किसी को भी एक रुपया देने की जरूरत नहीं है. मुझे मिलने ही वाला है.

इसके कारण गवर्नेंस पर भी भरोसा हो जाता है. इन लोगों का तरीका है कि सबके कुछ नहीं करना है. मैं जो 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देता हूं, मैं भी ये कह सकता था कि इसको दूंगा और उसको नहीं दूंगा, लेकिन मैं ये नहीं कहूंगा, क्योंकि मुझे सबका साथ सबका विकास...इसी मंत्र पर चलना है.

उन्होंने वोटबैंक के लिए SC, ST, OBC के आरक्षण पर डाका डाला हुआ है, उनकी नजर यहीं है, ये लोग वोट जिहाद को समर्थन कर रहे हैं. ये सारी चीजें, साम्प्रदायिक प्रवृत्तियां सेकुलरिज्म का नकाब पहनकर कर रहे है. मुझे उनका ढोंगी सेकुलरिज्म का नकाब देश के सामने उतारकर दिखाना है कि ये घोर साम्प्रदायिक लोग हैं और ये वो लोग हैं जो अपने सत्ता सुख के लिए देश को तोड़ सकते हैं, वो आपके हर सपने को तोड़ सकते हैं.

अब आप देखिए इनके मेनिफस्टो में ही ये हिम्मत की है, वो कहते हैं कि ठेक यानी कॉन्ट्रैक्ट धर्म के आधार पर दिए जाएंगे. अरे भई, अगर कोई ब्रिज बनाना है, उसके लिए एक्सपर्टीज किसके पास है. एक्सपीरियंस किसके पास है. रिसोर्सेज किसके पास हैं, टेक्निकल मैनपावर किसके पास है. उसको ब्रिज बनाने को दो. अगर आप ठेके ऐसे ही दे देंगे तो वो ब्रिज क्या बनाएगा, क्या होगा मेरे देश का.

संजय पुगलिया: विपक्ष एक और आशंका जाहिर करता है कि देखिए 400 सीट तो इसलिए मांग रहे हैं कि क्योंकि इनको संविधान बदलना है.

नरेंद्र मोदी: पहली बात है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में पहले ही 2019-24 के दौरान 400 सीट है. हम जीतकर करीब 360 सीट आए थे और हमारा NDA+ 400 सीट रहा है. इसलिए 400 सीट और संविधान को जोड़ना उनकी मूर्खतापूर्ण बातचीत है. सवाल ये है कि ये लोग हाउस को चलने ही नहीं देना चाहते हैं. कांग्रेस ने संविधान का क्या किया. ये संविधान की बातें करते हैं. मैं पूछता हूं कि कांग्रेस के संविधान का क्या हुआ. क्या ये परिवार कांग्रेस पार्टी के संविधान को स्वीकार करता है.आपको याद होगा टंडन जी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया था, संविधान के तहत बने थे. नेहरू जी को टंडन जी मंजूर नहीं थे, नेहरू जी ने ड्रामा किया, बोले- मैं कार्यसमिति में नहीं रहूंगा. आखिरकार कांग्रेस पार्टी को चुने हुए अध्यक्ष को हटाना पड़ा, सिर्फ इस परिवार को खुश करने के लिए.

सीताराम केसरी, कांग्रेस के अध्यक्ष थे. व्यवस्था के तहत बने हुए थे. उनको बाथरूम में बंद कर दिया गया, रातों रात उठाकर बाहर फेंक दिया और मैडम सोनिया जी कांग्रेस की अध्यक्षा बन गईं. जो इस प्रकार से कांग्रेस पार्टी पर कब्जा करते हैं, मैं जानना चाहूंगा कि कांग्रेस के आज जितने ये पदाधिकारी हैं. वो कब कांग्रेस के मेंबर बने थे. देश को वो डिक्लेयर करें, देश के संविधान के हिसाब से.

संजय पुगलिया: आपने केसरी जी का जिक्र किया तो एक डिस्क्लेमर देना मुनासिब होगा कि उस वक्त मैं वहां मौजूद था, जब उनको भगाया गया था.

नरेंद्र मोदी: अब बताइए, संविधान की बात बोलने का उनका हक है क्या. दूसरा- इन्होंने संविधान के साथ क्या किया. मैं तो कहता हूं कि जब पहला संविधान बना, उस संविधान की एक आत्मा भी है शरीर भी है. संविधान की आत्मा क्या थी, संविधान निर्माताओं ने बड़ी बुद्धिमानी की थी, लिखित में जो चीज रखी जाएगी, वो वर्तमान और भविष्य के लिए होगी, लेकिन हमारा एक भव्य भूतकाल है. हमारी भव्य विरासत है. उसका क्या करेंगे. फिर तो संविधान बहुत बड़ा होता चला जाएगा. तो उन्होंने बड़ी बुद्धिपूर्वक संविधान को चित्रों से मढ़ा. सारे चित्र भारत की हजारों साल की विरासत हैं. रामायण हो, महाभारत हो, छत्रपति शिवाजी महाराज हों, सारी चीजें उसमें हैं.

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पहला काम क्या किया, संविधान की इस पहली प्रति को डिब्बे में डाल दिया और बाद में जो संविधान छपा वो इन चित्रों के बिना छपा और 15 अगस्त के बाद के हिंदुस्तान से शुरू किया, अपने परिवार का जय-जयकार करने के लिए.

शरीर पर इस तरह प्रहार करने के बाद, अगला प्रहार उन्होंने संविधान की आत्मा पर किया. पहला संशोधन पंडित नेहरू ने अभिव्यक्ति की आजादी पर कैंची चलाकर किया. फिर संविधान की भावना पर उन्होंने प्रहार किया. 356 का दुरुपयोग करके 100 बार देश की सरकारों को उन्होंने तोड़ा. फिर इमरजेंसी लाए. यानी एक प्रकार से उन्होंने संविधान को उन्होंने डस्टबिन में डाल दिया. इस हद तक उन्होंने संविधान का अपमान किया.

फिर इनके बेटे आए, पहले नेहरू जी ने ये पाप किया, फिर इंदिरा जी ने किया फिर राजीव जी आए. राजीव जी तो मीडिया को कंट्रोल करने के लिए कानून ला रहे थे. शाहबानो का सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट उखाड़कर फेंक दिया और संविधान को बदल दिया, क्योंकि वोटबैंक की राजनीति करनी थी. फिर उनके सुपुत्र आए, शहजादे जी (राहुल गांधी). वो तो कुछ हैं भी नहीं एक एमपी के सिवा. कैबिनेट के निर्णय का कागज उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंदर फाड़कर फेंक दिया. ये संविधान की बातें करते हैं.

जो चारा चोरी में जेल में बैठे हुए हैं, जिन्हें बीमारी के कारण जेल से बाहर आने की इजाजत मिली है. वो संविधान-संविधान करते रहते हैं. जिन्होंने संविधान की सारी भावनाओं को तोड़ते हुए, जब महिला आरक्षण बिल आया था, संसद के अंदर बिल की प्रति को उन्होंने छीन लिया और फाड़ दिया, और संसद का वो आखिरी दिन था. संविधान का घोर अपमान करने वाले लोग आज संविधान सिर पर रखकर नाच रहे हैं. ये झूठ बोल रहे हैं.

संजय पुगलिया: भारत ने आपके नेतृत्व में गजब का काम किया है और वो है, दुनिया एकदम बदल गई है, जो ये सोचते थे कि दुनिया हम चलाते हैं, वो डिफेंसिव में हैं. भारत इंडिपेंडेंट और एग्रेसिव पॉलिसी लेकर आया है, जाहिर है कि इसको लेकर आपकी बड़ी योजनाए हैं, लेकिन एक विषय है, वो है पड़ोसी देशों का, उस मामले में रिश्तों को मैनेज करने में चुनौतियां हैं हमारे सामने.

नरेंद्र मोदी: दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं होता, जिसमें चुनौतियां नहीं होती. हमारी विदेश नीति का आधार यही रहा है- नेबरहुड फर्स्ट. हमारी विदेश नीति का आधार रहा है, एक्ट ईस्ट पॉलिसी. हमारी विदेश नीति का आधार पहले रहता था, कौन कितनी दूर पर रखते हैं. अब हम कहते हैं कि कौन कितना निकट है. हमने विश्व के साथ एक स्थान बनाया हुआ है और पड़ोस में कम्पटीशन भी काफी है. हमारी कोशिश है सबको साथ लेकर चलने की.

संजय पुगलिया: एक सवाल जो मैं बहुत समय से आपसे पूछना चाहता था, बहुत सारे नीति निर्माता, नेता आपको लेकर विस्मित रहते हैं कि ये जो पॉलिसी बनाते हैं. जो डिजाइन बनाते हैं, कैसे इन चीजों को तैयार करते हैं. मुझे ऐसा लगता है कि आप 'Rare Self Taught Leader' हैं, और उसमें जो सबसे बड़ी भूमिका रही है. वो है 50-55 साल की आपकी यात्रा, दरअसल, आपने फिजिकल यात्राएं बहुत की हैं. बहुत ज्यादा घूमे हैं. आपको ट्रैवल ने कितना शेप किया है.

नरेंद्र मोदी: एक तो आपने एक सही आंकलन किया है, ये मेरा सौभाग्य रहा है कि मैं एक परिव्राजक रहा हूं. इसलिए शायद हिंदुस्तान के 90 परसेंट से ज्यादा डिस्ट्रिक्ट ऐसे होंगे, जहां मैं रातें गुजारी हैं. ये मेरे राजनीतिक जीवन के पहले की बात है. बिना रिजर्वेश के ट्रेन में घूमा हूं. जनरल बोगी में खड़े-खड़े सफर किया है, पैदल चला हूं, ट्रक में बैठकर चला हूं. जो जमीनी दुनिया है, उसी से मैं जुड़ा भी हूं, उसी से मैं निकला हूं, और अनुभव बहुत बड़ा है, बहुत काम आता है.

दूसरा, हमारे देश में जितने प्रधानमंत्री आए, वो दिल्ली के गलियारों से ही ज्यादातर निकले हैं. बहुत कम प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने राज्य के सरकारों में काम किया, जिन्होंने किया बहुत कम समय के लिए किया और बहुत लोगों को मौका मिला. मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं, जो एक लंबे समय तक एक प्रगतिशील राज्य का मुख्यमंत्री रहकर आया हो. तो जन-आकांक्षाओं से मैं परिचित था. जन-आकांक्षाओं और सरकारों के बीच टकराव कहां होता है, कमियां कहां होती है, राज्य में मेरा अनुभव था. मेरे पास अनुभव का एक बहुत बड़ा खजाना है.

मैं जीवन भर अपने आपको एक विद्यार्थी मानता हूं. तो मैं एकेडेमिक दुनिया से सीखने का प्रयास करता हूं, कि वो क्या सोचते हैं, मैं ब्यूरोक्रेटिक अनुभवों की जो दुनिया है, उसको समझने का प्रयास करता हूं. मैं क्षेत्र के संबंधित लोगों से मिलता हूं. जैसे-मैं आजकल बजट बनाता हूं, इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर है तो मैं इससे जुड़े लोगों के साथ वर्कशॉप करता हूं. किसान है तो किसान का वर्कशॉप करता हूं. उससे नए आइडियाज आते हैं. ये मैं बजट के पहले भी करता हूं और बजट के बाद भी करता हूं. इस बजट में उपयोग नहीं कर पाता हूं तो अगले बजट में इसका उपयोग करता हूं.

मैं बहुत खुले मन का इंसान हूं. दुनिया भर की चीजें, विदेशों से भी लेकर आता हूं. छोटा सा उदाहरण बताता हूं- मैं एक बार जापान गया, बहुत साल पहले की बात है. मैं CM तो था, मेरे पास थोड़ा समय था, तो सोचा थोड़ा बाहर जाते हैं. हम पैदल ही जा रहे थे, फुटपाथ पर मैंने देखा कि गोल गोल सी कुछ चीजें लगी थीं. मैंने कभी ऐसा देखा नहीं था, मेरे मन में प्रश्न उठा, मैंने किसी को पूछा कि ये क्या है. उन्होंने बताया कि जो प्रज्ञा चक्षु लोग होते हैं, इनके चलने के लिए ये रखा जाता है. मैं स्टडी किया, मैंने पाया कि बस स्टैंड आया तो उनके लिए मोड़ भी था. मैंने उसकी मोबाइल फोन पर फोटो ली. उस समय भी मैं मोबाइल फोन कैमरा वाला रखता था, मेरा शौक टेक्नोलॉजी का था.

जैसे ही मैं अहमदाबाद पहुंचा, मैंने हमारे सिटी कमिश्नर को फोन किया. मैंने पूछा हमारा काकरिया का काम हो गया है क्या, फुटपाथ बन गई क्या, उन्होंने कहा- थोड़ी बहुत बन गई है. मैंने कहा- एक काम करो तुम सुबह आ जाओ, मुझे तुम्हें कुछ बताना है. जब सुबह वो आया तो मैंने बताया कि काकरिया में जो फुटपाथ बनेगी वहां हम ये चीज करेंगे. प्रज्ञा चक्षु का काम आने वाली ये अच्छी चीज मुझे दिखी है. तुरंत हमने इसको लागू भी कर दिया. यानी कोई भी चीज सीखने का मेरा मन हमेशा रहता है. पॉलिसी जब मैं बनाता हूं, तब मैं इन सारी चीजों की एक साथ प्रोसेसिंग शुरू हो जाती है.

अब मुझे याद है, जब कोरोना आया, बड़े-बड़े नोबेल प्राइज विनर आकर मुझ पर दबाव डालते थे, नोट छापो-नोट बांटो. वो मुझसे कहते थे कि अमीरों को पैसे दो वरना इकोनॉमी खत्म हो जाएगी, रोजगार खत्म हो जाएगा. मैंने बिल्कुल वो नहीं किया. मेरी पहली प्रोयोरिटी रही कि गरीब भूखा नहीं रहना चाहिए, गरीब के घर का चूल्हा जलना चाहिए. दूसरा, छोटे-छोटे लोगों को मैं ताकत दूं, वो चलने चाहिए. मैंने छोटे लोगों को क्रेडिट गारंटी की दिशा में बल दिया. उसका परिणाम ये हुआ कि जो हमारी स्मॉल और मीडियम स्केल की इंडस्ट्री थी, उनकी जिंदगी चलती रही. और मुझे पता था कि अगर मैं तीन महीने इसमें निकाल दूंगा, फिर मैं इन चीजों से बाहर आ जाउंगा, हुआ ये कि हम बहुत तेजी से बाहर निकल आए. दुनिया आज लड़खड़ा रही है. हम बहुत तेजी से स्थिरता से चले हैं.

जब नीतियां बनती हैं. तो आप एकेडेमिक तराजू से मेरी नीतियों को नहीं तौल सकते हैं. सिर्फ अनुभव के दायरे में भी नहीं देख सकते हैं. दूसरा मेरी नीतियों में एक विषय मेरी बहुत मदद करता है मैं जो भी करूंगा, मेरे देश के लिए करूंगा, कन्फ्यूज नहीं होता है. दूसरा, वो इंसान नीति सही बना सकता है जिसका कोई निजी स्वार्थ नहीं होता है, मेरी पार्टी का भला होगा या नहीं होगा, मोदी का भला होगा कि नहीं होगा, मोदी के किसी रिश्तेदार का भला होगा कि नहीं होगा.ये सब मेरे जीवन में है ही नहीं. एकदम सीधे तरीके से मेरी पॉलिसी बनती है और उसका मुझे बहुत फायदा होता है.

संजय पुगलिया: आपसे आखिरी सवाल, इसी से जुड़ा हुआ, भारत के बहुत सारे नौजवान लड़के लड़कियां, उनके मन में एक ख्वाब है, बताते नहीं हैं कि उनको भी मोदी जैसा लीडर बनना है. तो आपकी ये जो Rare Quality है, एक तो है Self Taught Leadership की, दूसरी, जिन्होंने आपसे डील किया, वो बताते है कि आप Extraordinary good listener हैं, आप सुनते बहुत हैं लोगों को. इस यूथ को आप क्या कहेंगे, अगर उनको आप जैसा बनना हो तो वो क्या करें.

नरेंद्र मोदी: मैंने एक काम किया था, कोविड के समय, मैं वीडियो कॉन्फ्रेंस करता था, मैंने नौजवानों को एक रिक्वेस्ट की थी, आप घर में हो आजकल मोबाइल और कैमरा वगरैह भी है. घर में दादा-दादी भी हैं, उनका वीडियो रिकॉर्डिंग कीजिए, उनका इंटरव्यू कीजिए, कि जब वो स्कूल में पढ़ते थे तो कैसा होता था. उनके समय शादियां कैसे होती थीं, पहले जब घर छोटे होते थे और मेहमान आते थे तो कैसे रहते थे. पहले बारात 5-7 दिन रहती थी, तो कैसे रहते थे. क्या होगा इससे कि अपने परिवार के लोग कैसी जिंदगी जीते-जीते यहां तक पहुंचे हैं, आप उनके कनेक्ट करोगे, मैं मानता हूं कि हमारे देश के नौजवानों ने आजादी के बाद भारत की विकास यात्रा कैसे चली है, इसको खोजी मन से खोजना चाहिए. पहले कैसे होता था, कोयले वाली ट्रेनें चलती थीं तो कोयला कैसे आता था, ट्रेन चलाने वाले कैसे इतनी आग में रहते थे. जो नौजवान इस 75 साल की यात्रा को जानने समझने का प्रयास करेगा, वो आगे की यात्रा का हिस्सेदार बनेगा. उसमें से उसके अंदर लीडरशिप क्वालिटी पैदा होगी. उसको लगेगा कि मैं इसमें वैल्यू एडिशन करूं. मेरे आगे के लोगों ने इतना कुछ किया है, अब मैं कुछ करूं. ये उसकी प्रेरणा बनेगा. दूसरा- बनने का ख्वाब लेकर चलेगा तो, निराशा जल्द आ जाएगी, कुछ करने का इरादा लेकर निकलेगा तो करते करते, धीरे-धीरे संतोष का विस्तार होता जाएगा. अब जो संतोष का विस्तार है, वो सामर्थ्य का विस्तार बन जाता है और वो उसको लीडर बना सकता है, और मैं तो चाहता हूं कि देश में वैसे ही लीडरशिप जितनी ज्यादा निकले, उतना ही देश को लाभ होगा.

संजय पुगलिया- सर, जहां बात आपने समाप्त की है, वहां से अध्यात्म पर अलग से चर्चा करने का एक सत्र करना पड़ेगा, आपके पास समय की कमी है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद

नरेंद्र मोदी: बहुत बहुत धन्यवाद, मैं मानता हूं कि लोकतंत्र के उत्सव में अब तो बहुत कम समय बाकी रहा है, ज्यादातर तो चुनाव पूरा हो गया है. नौजवान बढ़-चढ़कर भाग लें. लोकतंत्र को उत्सव के रूप में सेलिब्रेट करना चाहिए, ये सिर्फ मैं कोई कॉन्ट्रैक्ट साइन करने के लिए नहीं जा रहा हूं, कि चलो भी सरकार को पांच साल देने के लिए एक पिन दबाकर आ जाओ. मैं कोई कॉन्ट्रैक्ट के लिए पिन दबाने नहीं जा रहा हूं. मैं मेरे देश को चलाने का भागीदार बन रहा हूं. एक उत्सव के रूप में चलाना चाहिए, तब बहुत बड़ा फायदा होगा देश का.

संजय पुगलिया- NDTV के दर्शकों की तरफ से मैं आपको बहुत सारी शुभकामनाएं देता हूं.

नरेंद्र मोदी: धन्यवाद

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