अजित पवार को महाराष्ट्र में फिर से उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. वे रिकॉर्ड छठवीं बार उपमुख्यमंत्री बने हैं. विरासत में राजनीतिक जमीन पाने वाले अजित पवार का सफर बीते कुछ सालों में काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है. हालात यहां तक पहुंचे कि जिस चाचा से उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा, आज उन्हीं के साथ उनकी राजनीतिक अदावत है. बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि अजित पवार, चाचा शरद पवार की राजनीतिक विरासत पर उन्हीं से संघर्ष कर हक जमाने में कामयाब रहे हैं.
शरद पवार के परिवार में कुल 7 भाई और 4 बहनें थीं. इन्हीं 7 भाईयों में से एक शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार थे, जिनके बेटे अजित पवार हैं.
अजित पवार का जन्म 22 जुलाई 1959 को हुआ. कोऑपरेटिव्स की दुनिया पवार परिवार की पावर का अहम हिस्सा रही है. 23 साल की उम्र में अजित पवार ऐसे ही कोऑपरेटिव शुगर फैक्टी के बोर्ड में शामिल होने में कामयाबह रहे.
1991 में वे पुणे डिस्ट्रिक सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन बने और अगले 16 साल तक वे इस पद पर रहे. 1991 में ही वे पहली बारामती से सांसद चुने गए. हालांकि बाद में उन्होंने सीट शरद पवार के लिए खाली कर दी, जो उपचुनाव में जीतकर PV नरसिम्हा राव की सरकार में रक्षा मंत्री बने.
1995 में वे महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के लिए बारामती सीट से खड़े हुए और जीते. वे लगातार 7 बार इस सीट से विधानसभा चुनाव जीते हैं. 2024 में उन्होंने अपने भाई के बेटे और NCP-SP प्रत्याशी युगेंद्र पवार को हराया.
1999 में उन्हें विलासराव देशमुख की सरकार में अक्टूबर 1999 से दिसंबर 2003 तक सिंचाई मंत्रालय का प्रभार मिला. इसके बाद वे लगभग एक साल के लिए ग्रामीण विकास मंत्री भी रहे. 2004 में जब दोबारा NCP-कांग्रेस की सरकार बनी, तो अजित पवार को जल संसाधन मंत्रालय दिया गया. उन्हें पुणे जिले का प्रभारी मंत्री भी बनाया गया. 2009 से 2014 के बीच पृथ्वीराज सरकार में भी उनके पास अलग-अलग मंत्रालय रहे.
2010-12 के बीच वे पहली बार उपमुख्यमंत्री बने. इस बार समेत वे कुल 6 बार उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं. इसके बाद पृथ्वीराज चव्हाण के ही कार्यकाल में दिसंबर 2012 से सितंबर 2014 तक उनका बतौर उपमुख्यमंत्री दूसरा कार्यकाल रहा.
2019 में नतीजों के बाद जब शिवसेना की कांग्रेस और NCP के साथ सरकार बनाने को लेकर बात चल रही थी, तब अप्रत्याशित तरीके से अजित पवार, देवेंद्र फडणवीस के साथ नजर आए और उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद की तीसरी बार शपथ ली. हालांकि बाद की राजनीतिक उथल-पुथल में वे वापस शरद पवार के साथ आ गए और फडणवीस को चंद दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा.
उद्धव सरकार में भी उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया. शिंदे की बगावत के बाद जब सरकार गिर गई, तो 2023 में वे भी महायुति के साथ आ गए और पांचवी बार उपमुख्यमंत्री बने थे.