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BQ Explainer: देशद्रोह कानून पर विधि आयोग की सिफारिश- 'आतंरिक सुरक्षा के लिए ये कानून जरूरी, सजा बढ़ाई जाए'

लॉ कमीशन ने कुछ संशोधन के साथ देशद्रोह कानून को बनाए रखने और न्यूनतम सजा को बढ़ाए जाने की सिफारिश की है.
NDTV Profit हिंदीनिलेश कुमार
NDTV Profit हिंदी04:15 PM IST, 02 Jun 2023NDTV Profit हिंदी
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11 मई 2022. वो तारीख, जब सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून यानी IPC की धारा 124-A के तहत मामले दर्ज करने पर रोक लगा दी थी. तत्कालीन चीफ जस्टिस NV रमण की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने देशभर में इस कानून के तहत चल रही जांचों, लंबित मुकदमों और कार्रवाइयों पर भी रोक लगा दी थी और कहा था कि इसकी समीक्षा और पुन: परीक्षण होने तक इसका इस्तेमाल न किया जाए. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपना मत रखने के लिए भी कहा था.

देशद्रोह या राजद्रोह कानून पर रोक लगे एक साल से ज्यादा समय बीत चुका है. अब भारतीय विधि आयोग (Law Commission of India) ने कहा है कि देशद्रोह कानून को रद्द करने की जरूरत नहीं है. विधि आयोग ने कुछ संशोधन के साथ देशद्रोह कानून को बनाए रखने और न्यूनतम सजा को बढ़ाए जाने की सिफारिश की है. सिफारिशों से जुड़ी एक रिपोर्ट कानून मंत्रालय को भेजी गई है.

'संशोधन करें पर खत्म नहीं'

विधि आयोग का कहना है कि IPC की धारा 124-A (देशद्रोह) को कुछ संशोधनों के साथ बरकरार रखा जाना चाहिए. आयोग ने इस कानून में अधिक स्पष्टता लाने के लिए संशोधन की सिफारिश की है. आयोग ने कहा है कि देशद्रोह कानून को खत्म न किया जाए, भले ही केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर कुछ संशोधन किए जा सकते हैं.

ये मामला क्या था, विस्तार से नीचे समझेंगे. फिलहाल ये जान लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट ने इसमें क्या फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था, 'सरकार की आलोचना या प्रशासन पर कमेंट कर देने मात्र से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता.'

​अब ये समझते हैं कि देशद्रोह कानून पर विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में क्या-क्या कहा है.

विधि आयोग का प्रस्ताव

  • विधि आयोग ने कहा कि भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए देशद्रोह कानून को बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा मौजूद है.

  • भारत के खिलाफ कट्टरता फैलाने और सरकार के प्रति नफरत पैदा करने में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका है. नागरिकों की स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित की जा सकती है, जब राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.

  • अक्सर विदेशी ताकतों और फंडिंग के जरिये देश में कट्टरता, हिंसा फैलाई जाती है, इसलिए और भी जरूरी है कि धारा 124ए लागू रहे.

  • IPC की धारा 124-A (देशद्रोह) की सजा बढ़ाई जाए. इसे न्यूनतम 3 साल से बढ़ाकर 7 साल तक की जेल के साथ दंडनीय बनाया जाए. बता दें कि इसके लिए अधिकतम सजा उम्र कैद है.

  • कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने कवरिंग लेटर में 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी (सेवानिवृत्त) ने कुछ सुझाव दिए हैं.

  • उन्होंने कहा है, IPC की धारा 124-A जैसे प्रावधान न हों तो सरकार के खिलाफ हिंसा भड़काने वाली किसी भी अभिव्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष कानूनों और आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाए, जिसमें आरोपियों से निपटने के लिए बेहद कड़े प्रावधान हों.

  • रिपोर्ट में आगे कहा गया कि कुछ देशों ने देशद्रोह कानून को खत्म कर दिया है, लेकिन केवल इस आधार पर भारत में भी IPC की धारा 124-A को केवल इस आधार पर निरस्त कर देना, मौजूदा जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेने जैसा होगा.

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि इस कानून को निरस्त करने से देश की अखंडता, सुरक्षा और संप्रभुता पर असर पड़ सकता है.

विधि आयोग के अनुसार, 'अक्सर ये कहा जाता है कि राजद्रोह का अपराध एक औपनिवेशिक विरासत है जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है और उन पर आधारित है. खास तौर पर स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इसके 'बेजा इस्तेमाल' के इतिहास को देखते हुए ये बात कही जाती है, लेकिन ऐसे में तो भारतीय कानूनी प्रणाली का पूरा ढांचा ही एक औपनिवेशिक विरासत है.

CRPC 1973 की धारा-196(3) के अनुरूप धारा-154 में एक प्रावधान जोड़ा जा सकता है, जो देशद्रोह के संबंध में FIR दर्ज करने से पहले आवश्यक प्रक्रियागत सुरक्षा उपलब्ध कराएगा.
जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, विधि आयोग के अध्यक्ष (अपने सुझाव पत्र में)

क्या है देशद्रोह या राजद्रोह कानून?

BQ Prime Hindi से बातचीत के दौरान सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कुमार आंजनेय शानू ने बताया कि IPC की धारा 124 (A) के अनुसार, देशद्रोह या राजद्रोह एक गैर जमानती अपराध है. इस कानून के अंतर्गत देश और सरकार के प्रति मौखिक, लिखित, संकेतों और दृश्य-श्रव्य रूप में घृणा, अवमानना या उत्तेजना पैदा करने के प्रयासों को शामिल किया गया है. हालांकि घृणा, अवमानना या हिंसा फैलाने के प्रयास के बिना की गई टिप्पणियों को देशद्रोह की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता.

उन्होंने बताया, 'इस अपराध के तहत गिरफ्तार होने पर जमानत नहीं मिलती. इसके लिए न्यूनतम 3 साल से लेकर अधिकतम उम्र कैद तक की सजा हो सकती है. सजा में कैद के साथ जुर्माना लगाए जाने का भी प्रावधान है. वहीं, इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी से भी रोका जा सकता है.' विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में न्यूनतम 3 साल की सजा को बढ़ाकर 7 साल करने की सिफारिश की है.

अब 'केदारनाथ बनाम बिहार राज्य' मामला समझ लीजिए

'केदारनाथ बनाम बिहार राज्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 124-A के तहत लगाए गए देशद्रोह के आरोपों को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया. साल 1962 में बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण को लेकर राजद्रोह का मामला दर्ज कराया था. हालांकि इस पर पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी 5 जजों की संविधान पीठ ने केदारनाथ सिंह को दी गई राहत बरकरार रखी.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देश में पहले मौजूद अपने पूर्व स्वरूप 'फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया' से सहमति जताई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कमेंट कर देने भर से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बनता.' अपने आदेश में पीठ ने कहा, 'राजद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा या असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'केवल नारेबाजी देशद्रोह के दायरे में नहीं आती. राजद्रोह कानून का इस्तेमाल तब ही हो जब सीधे तौर पर हिंसा भड़काने का मामला हो.' इस केस के फैसले को लेकर विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि फैसले के बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए संशोधन किया जा सकता है, लेकिन देशद्रोह कानून को बरकरार रखना जरूरी है.

अगस्त में होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

देशद्रोह कानून के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पीपुल्स यूनियन फॉर लि​ब​र्टीज, मेजर जनरल (रिटायर्ड) SG वोमबटकेरे और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि असहमति की आवाज को रोकने और दबाने के लिए सरकारें इस कानून का इस्तेमाल कर रही हैं और इसे अपना हथियार बनाते हुए लोगों को जेल में डाल रही हैं. इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2022 को देशद्रोह कानून पर रोक लगा दी थी.

सुप्रीम कोर्ट में चल रही अंतिम सुनवाई 1 मई 2023 को हुई थी. केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल R वेंकटरमानी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि इस कानून की समीक्षा पर अंतिम चरण की चर्चा जारी है और इसके लिए हितधारकों से परामर्श चल रहा है. उन्होंने कहा था कि ये अभी एडवांस चरण में है, जिसमें थोड़ा समय लगेगा. संसद के मानसून सत्र में बिल लाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अगस्त के दूसरे हफ्ते तक के लिए सुनवाई टाल दी है. तब तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राजद्रोह के मामलों पर रोक रहेगी.

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